कौशांबी: योगीराज में भूमाफियाओं की हालत पतली है लेकिन कुछ जगहों पर आज भी भूमाफिया और अवैध रूप से जमीन कब्जा करने वाले सरकारी अफसरान को आज भी अपने जेब में रख कर बड़े ही आसानी से किसी की भी जमीन पल भर में कब्जा कर के बेच भी लेते हैं। ऐसी ही एक घटना उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले की है जहां 75 साल से जमीन पर कब्जा और रजिस्ट्री रहने के बावजूद भूमाफियाओं ने तत्कालीन तहसीलदार से साठ गांठ कर के न केवल जगह पर अपना नाम चढ़ाया बल्कि उसे बेच भी दिया मामले की जानकारी असल कब्जेदार और मालिकों को हुई तो अब वह कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं हालांकि जगह पर अभी भी असल मालिकों और उनके परिवार वालों का ही कब्जा है।
कौशांबी जिले में सराय आकिल थाना क्षेत्र में अतरसुइया इलाके में में मौजूद 75 वर्ष पुरानी बाग और ट्यूबवेल पर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर खुद को अतरसुइया का रहिवासी बताने वाले तस्लीम रज़ा और शाह हुसैन ने अपनी मिल्कियत होने का दावा ठोका और खसरा खतौनी में गुप चुप तरीके से नाम चढ़ाया और उसे तुरंत 450000 में हैदर अली नाम के व्यक्ति से बेच दिया। तत्कालीन तहसीलदार रामजी राय की मिली भगत से 75 वर्ष पुराने इस कब्जे पर बिना नोटिस जारी किए ही खसरा खतौनी में असल मालिकों के नाम काट कर फर्जी दावेदारों का नाम चढ़ा दिया गया। हैरानी इस बात की इस बारे में असल मालिक और कब्जेदारों को एक नोटिस तक नहीं दी गई मामले की भनक असल मालिकों कब्जे दारों को तब हुई जब उन्होंने रिकार्ड पर किसी और को नाम देखा जो आनन फानन में नाम चढ़ा कर मिल्कियत को बेच चुके थे।19 अप्रेल को इस मामले में मंझनपुर तहसील कोर्ट ने दोनों पक्षों की बहस में दस्तावेजों को देखा और 24 अप्रेल को तहसीलदार भोपाल सिंह ने आदेश देने की तारीख तय की।
अतरसुइया में मौजूद बाग और ट्यूबवेल जो की 12 बीघा के आस पास है यह मिल्कियत खोंपा के रहने वाले स्वर्गी
मुहम्मद शफी के नाम पर 1949 से सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज है उनके देहांत के बाद यह जगह उनके बेटे मुहम्मद तकि के नाम पर रिकॉर्ड में चढ़ा दी गई मुहम्मद तकि का देहांत 2015 में हुआ जिसके बाद परिवार में मौजूद उनके बेटों ने सन 2021 इस मिल्कियत में अपना नाम खसरा खतौनी में दर्ज कराया जिनके नाम सईददुज्जमा , असीफुज्जमा , सबीहुज्जमा के बेटे मोहम्मद जावेद ,मुहम्मद जुनेद,मुहम्मद शुएब, स्वर्गी मुहम्मद फसीहुज्जमा हैं।
इसी दौरान खुद को अतरसुइया का रहिवासी बताने वाले जबकि अतरसुइया में किसी जमाने में किराए पर रहने वाले अड़हरा के रहिवासी तस्लीम रज़ा और शाह हुसैन ने फर्जी दस्तावेजों के सहारे तत्कालीन तहसीलदार रामजी राय से साठ गांठ कर के खसरा खतौनी में अपना नाम दर्ज करा लिया इसकी भनक जब असल मालिक और कब्जेदारों को हुई तो उन्होंने इसपर मंझनपुर तहसील में केस दायर करते हुए रोक लगाई इस दौरान तहसीलदार भोपाल सिंह ने इस मामले की सुनवाई हुई।जिसके बाद फर्जी दस्तावेजों की बुनियाद पर दावा करने वाले तस्लीम रज़ा और शाह हुसैन को अपने दस्तावेज दिखाने के लिए कहा गया लेकिन यह दस्तावेज दिखाने में नाकाम रहे जिस पर तहसीलदार ने रुपए का जुर्माना भी लगाया जिसके बाद तस्लीम रज़ा और शाह हुसैनने रेवेन्यू बोर्ड में अपील की।क्योंकि तस्लीम रज़ा और शाह हुसैन ने इसे आनन फानन में बेचना चाहते थे।हालांकि इस मामले में दो बार जांच हुई है और इस जांच में दो बार लेखपाल ने रिपोर्ट भी पेश की अपनी रिपोर्ट में लेखपाल ने असल कब्जेदारों के कब्जे का उल्लेख करते हुए बताया है की जो लोग 75 साल से सरकारी रिकॉर्ड पर हैं उनके परिवार के लोगों का ही इस जगह पर कब्जा है और इस जगह के मालिक भी वही हैं।
असल मालिकों रेवेन्यू बोर्ड से भी रोक लगाने में कमायाब हो गए लेकिन रेवेन्यू बोर्ड ने 1 साल बाद यानी 2022 में इस केस को तहसीलदार मंझनपुर कार्यालय में सुनवाई के लिए ट्रांसफर कर के मामले की सुनवाई करने का आदेश दिया।आपको बता दें इस दौरान तस्लीम रज़ा और शाह हुसैन ने अपने आपको जिस मिल्कियत का दावेदार बताया है उन्होंने इसके लिए जम कर फर्जीवाड़ा किया है।
पंजीकृत इकरारनामा दिनांक 02.02.2022 को आपस में साजिश रच कर अपना नाम दाखिल कराया। जबकि प्रार्थी और विपक्षीगण का सजरा और परिवार अलग-अलग है और विपक्षीगण ग्राम अड़हरा का निवासी है और प्रार्थी के पिता ग्राम खोपा के निवासी रहे और प्रार्थी के पिता का विपक्षीगण से दूर-दूर तक कभी कोई रिश्ता ही नहीं रहा।
विपक्षीगण द्वारा साजिश करके बनाये गए फर्जी परिवार रजिस्टर में शाह हुसैन की जन्मतिथि दिनांक 01.01.1964 व तसलीमरजा की जन्मतिथि 01.02.1964 अंकित है, यानि दो भाइयों का जन्म मात्र एक माह के अन्तराल में हुआ है, तथा उक्त परिवार रजिस्टर में किसी भी अधिकारी का हस्ताक्षर ही नहीं हैं।
ग्राम प्रधान खोंपा द्वारा निर्गत्त प्रमाण पत्र एवं प्रार्थी के पिता के मृत्यु प्रमाण पत्र के अनुसार प्रार्थी के पिता मो० तकी पुत्र मो० सफी की मृत्यु दिनांक 04.03.2015 को हो गयी है, जबकि विपक्षीगण द्वारा मो० तकी की मृत्यु दिनांक 05.12 2003 को होने का फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र एवं परिवार रजिस्टर की नकल अभिलेखों में साजिश करके बनवाया गया है इसी तरह से क्षेत्रीय लेखपाल द्वारा की गयी जांच में प्रार्थी के पिता गो० तकी पुत्र मो० शफी की मृत्यु दिनांक 04.03.2015 एवं प्रार्थी की माता की मृत्यु दिनांक 02.03. 2007 को होना प्रमाणित करते हुये जांच रिपोर्ट दिनांक 07.09.2021 को तहसीलदार मंझनपुर को दिया गया है जिसमें प्रार्थी को एवं प्रार्थी के परिवार को मृतक मो० तकी पुत्र मो० सफी का वारिस ग्रामीणों के बयान व ग्राम प्रधान के बयान व मृत्यु प्रमाण पत्र के अनुसार घोषित/प्रमाणित किया जा चुका है।
हैरानी इस बात की है की फर्जी दावेदार अपने पिता का वही नाम बताते हैं जो असल कब्जेदारों का है लेकिन उसे 75 सालों में उस पर दावेदारी नहीं कर सका लेकिन जैसे ही उसने देखा की असल दावेदारों के परिवार के लोगों का देहांत हो गया तो उसने हू बहु वही नाम अपने पिता का बता कर दावेदारी ठोक दी उस से भी हैरान करने वाली बात यह है की इस पूरे गोरखधंधे में तत्कालीन तहसीलदार को मिली भगत सामने आई यही कारण है की गुपचुप तरीके से असल कब्जेदार और मालिकों के नाम हटा कर इन लोगों का नाम चढ़ा दिया गया।यह बात जानकारी में तब आई जब फर्जीवाड़ा कर के इस जगह को 45 लाख में बेचने को प्लानिंग की गई।
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