साहेब-ए-आलम अंसारी (कुवैत)
भारत में समान नागरिक संहिता के लिए भारत का विधि आयोग जनमत संग्रह हेतू जो प्रश्नावली तैय्यार किया है सभी मुसलमान व इंसाफ़ पसंद अन्य नागरिक उसका विरोध करते हैं। समान नागरिक संहिता किसी भी क़ीमत पर हमें स्वीकार नहीं है। इतिहास साक्षी है कि मुसलमानों ने शरीअत में हस्तक्षेप को कभी भी और कहीं भी बर्दाश्त नहीं किया है। वर्तमान और भविष्य में भी मुसलमान शरीअत में हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेगा। सरकार और देश के विघटनकारी तत्व धर्मनिर्पेक्ष भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने का सपना देखना छोड़ दें।
सरकार और देश के विघटनकारी तत्व समान नागरिक संहिता के सम्बंध में संविधान की धारा-44 का हवाला देते हैं। धारा-44 में कहा गया है, “राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा।” इस धारा के बारे में जान लें कि यह धारा संविधान के चौथे भाग में ‘राज्य के नीति निर्देशक तत्व’ के अन्तर्गत् वर्णित है। मुसलमान व इंसाफ़ पसंद अन्य नागरिक समान नागरिक संहिता का विरोध करते हुए इस्लामी शरीअत पर अमल जारी रखने के सम्बंध में संविधान की धारा-25 का हवाला देते हैं। धारा-25 में कहा गया गया है, “लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक़ होगा।” यह धारा संविधान के दूसरे भाग में ‘मूल अधिकार’ के अन्तर्गत् वर्णित है।
नागरिकों के ‘मूल अधिकार’ का संरक्षण सरकार की संवैधानिक ज़िम्मेदारी है जबकि ‘राज्य के नीति निर्देशक तत्व’ पर अमल करना सरकार के लिए ज़रूरी नहीं है। शरीअत पर अलम के साथ ही उसका प्रचार करना मुसलमानों का मूल अधिकार है। संविधान की धारा-13 में मूल अधिकारों के बारे में यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती है या न्यून करती है और इस खंड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी।
‘मूल अधिकार’ की धाराओं के सापेक्ष ‘राज्य के नीति निर्देशक तत्व’ की धाराओं का कोई महत्व ही नहीं है। हैरत की बात है कि भारत का विधि आयोग संविधान की धारा-13 से अंभिज्ञ है। सरकार अगर ‘राज्य के नीति निर्देशक तत्व’ पर अमल करना ही चाहती है तो अशिक्षा, ग़रीबी, बेरोज़गारी इत्यादि समस्याओं के हल के लिए काम क्यों नहीं करती है? इस तरह के कार्यों पर न केवल किसी को कोई आपत्ति न होगी बल्कि पूरा देश समर्थन भी करेगा। देश पेयजल, बिजली, आश्रय, शौचालय, सफ़ाई, भुखमरी इत्यादि से क़राह रहा है। ऐसे गम्भीर माहौल में सरकार आख़िर किसके इशारे पर भेदभाव, असहमति, विघटन व विरोधाभास उत्पन्न करने वाले मुद्दों को हवा दे रही है?
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