बॉम्बे लीक्स ,महाराष्ट्र
उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे गुट के बीच पार्टी की विरासत को लेकर महाराष्ट्र में जारी संघर्ष पर जल्द विराम लगने की उम्मीद देखी जा रही है।सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने गुरुवार को उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे समूहों के बीच शिवसेना पार्टी के भीतर दरार से संबंधित मामलों के एक बैच में फैसला सुरक्षित रख लिया।
गौरतलब है कि शिवसेना पार्टी के भीतर दरार के कारण जुलाई 2022 में महाराष्ट्र में सरकार बदल गई थी।बैच में कई मुद्दों पर शिंदे और ठाकरे के ग्रुप के सदस्यों द्वारा दायर याचिकाएं शामिल हैं। पहली याचिका एकनाथ शिंदे ने जून 2022 में कथित दल-बदल को लेकर संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत बागियों के खिलाफ तत्कालीन डिप्टी स्पीकर द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देते हुए दायर की थी। बाद में ठाकरे ग्रुप ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जिसमें महाराष्ट्र के राज्यपाल द्वारा विश्वास मत के लिए बुलाए जाने के फैसले को चुनौती दी गई।बता दें कि नौ महीने तक महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट को लेकर चली सुनवाई अब जाकर थमी है। सुनवाई की शुरुआत ठाकरे गुट की ओर से कपिल सिब्बल ने की थी।इसके बाद मनुसिंघवी ने दलीलें पेश की थी।इसके बाद राज्यपाल और शिंदे गुट के वकील महेश जेठमलानी, हरीश साल्वे और नीरज कौल की ओर से दलीलें पेश की गईं थी।जिसके बाद आज (गुरुवार, 16 मार्च) एक बार फिर ठाकरे गुट की ओर से अधिवक्ता कपिल सिंबल ने दलीलें पेश की।कपिल सिब्बल दलीलें खत्म करते वक्त भावुक हो गए।उन्होंने कहा कि इस कोर्ट का इतिहास संविधान और लोकतंत्र के संरक्षक के रूप में कायम रहा है।कपिल सिब्बल ने राज्यपाल द्वारा एकनाथ शिंदे की सरकार की स्थापना के लिए किए गए फैसले को रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि अगर न्यायालय ने दखल नहीं दिया तो लोकतंत्र देश से खत्म हो जाएगा।कपिल सिब्बल ने राज्यपाल की भूमिका पर कई सवाल खड़े किए। सिब्बल ने कहा,’कभी भी फूट से अलग हुआ कोई गुट एक गुट ही रहता है, वह राजनीतिक दल नहीं हो सकता। राजनीतिक दल कौन है, इसका फैसला चुनाव आयोग कर सकता है। राजनीतिक दल के चुनाव चिन्ह पर ही विधायक चुने जाते हैं। विधानमंडल में भी राजनीतिक दल की अहमियत सबसे ज्यादा है।लेकिन जब तक चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को राजनीतिक दल के तौर पर मान्यता नहीं दी थी, तब राज्यपाल ने किस आधार पर शिंदे गुट को बहुमत साबित करने का मौका दिया। राज्यपाल ने मनमाने तौर पर 34 विधायकों को असली शिवसेना मान लिया।राज्यपाल का यह काम संविधानविरोधी था।राज्यपाल सिर्फ मान्यता प्राप्त दलों से चर्चा कर सकते हैं, किसी गुट से नहीं।कपिल सिब्बल ने कहा,’यह कोर्ट के इतिहास का एक ऐसा मामला है जिस पर लोकतंत्र का भविष्य तय होने वाला है।मुझे पूरा यकीन है कि अगर कोर्ट ने मध्यस्थता नहीं की तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा।क्योंकि आने वाले वक्त में फिर किसी भी सरकार को टिकने नहीं दिया जाएगा। मैं इस उम्मीद के साथ अपनी दलीलें खत्म करता हूं कि आप राज्यपाल के आदेश को रद्द करें। महाराष्ट्र की 14 करोड़ जनता की आपसे उम्मीदें हैं।
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