• आज के ही दिन बनी थी शिवसेना , कभी न चुनाव लड़ने वाले ठाकरे रहे हमेशा सत्ता के केंद्र बिंदु।
• मराठी अस्मिता के साथ सेना के 55 साल , बेटा बना सीएम जारी रहेगी अस्मिता की जंग।
मुंबई : आज से कई दशक पहले मराठी अस्मिता के नाम पर खड़ी हुई शिवसेना ने कभी न सत्ता की कुर्सी पर विराजमान होते हुए संघर्ष के साथ पार्टी को 55 वें साल में ला खड़ा किया। हालांकि सत्ता से हमेशा दूर रहने वाले बाला साब ठाकरे की रस्मों को बेटे उद्धव ने दरकिनार करते हुए महाराष्ट्र के मुखिया की कुर्सी पर अपना वर्चस्व स्थपित कर लिया है।
जी हाँ आज के ही दिन यानी 19 जून 1966 में स्वर्गीय बाला साहेब ठाकरे द्वारा एक राजनीतिक पार्टी शिवसेना की बुनियाद रखी गई थी। स्वर्गीय ठाकरे द्वारा मराठी लोगों के अधिकारों के संघर्ष के लिए इस पार्टी का गठन किया गया था।
स्वर्गीय बाला साहेब खुद कभी चुनाव तो नहीं लड़े, लेकिन ठाकरे के बाद वर्तमान परिस्थिति ऐसी बनी में महाराष्ट्र में पुत्र और पोता महाराष्ट्र के सियासती मैदान के खिलाड़ी बनकर उभरे है। वर्तमान में महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार है और उनके बेटे उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री तो पोते मंत्री हैं।
शिवसेना पार्टी के गठन पूर्व बाला साहब ठाकरे अंग्रेजी अखबार में एक कार्टूनिस्ट हुआ करते थे। पिता ने मराठी बोलने वालों के लिए अलग राज्य बनाए जाने की मांग को लेकर आंदोलन किया था। उस दौरान बाला साहेब ने भी बॉम्बे में दूसरे राज्यों के लोगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए ‘मार्मिक’ नाम से अखबार शुरू किया था।
ठाकरे द्वारा शिवसेना के गठन के समय दिया गया नारा ‘अंशी टके समाजकरण, वीस टके राजकरण।’ अर्थात 80 प्रतिशत समाज और 20 फीसदी राजनीति। गठन के कुछ साल बाद ही शिवसेना की काफी लोकप्रियता बढ़ती गई। इस बीच महाराष्ट्र के मूल निवासियों के मुद्दे को लेकर दूसरे राज्यों से व्यापार करने महाराष्ट्र आए लोगों पर शिवसेना का आक्रमक रुख भी काफी चर्चा में रह। इसके बाद पार्टी मराठी मानुष के मुद्दे से हटकर हिंदुत्व की राजनीति में उतर गई जिसे देश भर का समर्थन प्राप्त हुआ।
साल 1990 में पहली बार शिवसेना ने महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव लड़ा था। जिसमे शिवसेना को अच्छी कामयाबी मिली।सेना ने चुनावी जंग में 183 शिव सैनिको को चुनाव मैदान में उतारा था। जिसमे सेना के 52 प्रत्याशियों को जीत मिली थी। हालांकि साल 1989 में हुए लोकसभा चुनावों में पहली बार शिवसेना का कोई नेता जीतकर देश की संसद तक पहुंचा था। जोकि मुंबई के बॉम्बे नॉर्थ सेंट्रल सीट से जीतकर विद्याधर संभाजी गोखले शिवसेना के पहले सांसद बने थे।
वर्तमान में शिवसेना के लोकसभा में 18 सांसद हैं। स्वर्गीय बाला साहेब ने हमेशा चुनाव से दूर रहते हुए 90 के दशक में महाराष्ट्र की सियासत में किंगमेकर बनकर उभरे थे। अलबत्ता साल 2019 में ठाकरे परिवार किंगमेकर से किंग की भूमिका में आ खड़ा हुआ। महारास्ट्र की सियासत में ठाकरे परिवार का वर्चस्व बरकरार है। बेटा उद्धव महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री तो पोता आदित्य चुनाव लड़कर महारास्ट्र विधानसभा पहुँचकर पिता उद्धव के मंत्रिमंडल का हिस्सा है।
मराठी मानुस और मराठी अस्मिता का मुद्दा उठाकर राजनीति के मैदान में उतरी स्वर्गीय ठाकरे की शिवसेना ने जहाँ हिंदुत्व की राह अपनाकर देशभर में ख्याति हासिल की तो वही महाराष्ट्र की सियासत के वर्तमान परिदृश्य में सेना को सत्ता बनाये रखने के लिए सेकुलरिज्म के साथ नई पारी का आगाज़ करना पड़ा। ऐसे में साफ है कि बाला साब के भतीजे एवँ सीएम ठाकरे के चचेरे भाई राज ठाकरे की मनसे शिवसेना के सेकलुरीज़म का राजनैतिक लाभ उठाते हुए स्वर्गीय ठाकरे के नक्शे कदम पर चलकर नई सियासत की बाज़ी खेल जाए।
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