अब्बास नकवी: दुनियाँ के इतिहास में महामारी का ये वो प्रथम स्टेज था ,जब राहुल गांधी के सचेत करने के बाद भी भारत ने इसे गंभीरता से लेना मुनासिब नही समझा था। क्योंकि ये वो दौर था , जब भारत मे न सिर्फ नमस्ते ट्रंप की ज़ोर शोर से तैयारी चल रही थी बल्कि एमपी में कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए सम्पूर्ण मंत्रिमंडल अपना पसीना बहा रहा था। कोरोना जैसी महामारी को भारतीय मीडिया नजर अंदाज करके अहमदाबाद में नमस्ते ट्रंप की पीआर में जुटकर ट्रंप के पोस्टर और स्टेडियम को गूगल बना रहा था। कोरोना अब तक अंतरराष्ट्रीय महामारी बनकर उभर चुका था।लेकिन भारत के टीवी चैनल के लिए कोरोना को एक मामूली खबर बताई जाती रही।
आज दुनियाँ कोरोना के प्रकोप से त्राहि त्राहि कर रही है। इस बीच एक बड़ी बहस दुनिया के विश्व पटल पर बेबस होकर खड़ी है। वजह कोरोना का इलाज महज एक तालाबंदी के इर्द गिर्द आकर खत्म हो चुका है। ऐसे में एक बड़ा सवाल कि , क्या महज़ एक तालाबंदी को लेकर कोरोना के संक्रमण को रोका जा सकता है। या फिर हमारे पास संक्रमण को लेकर आगे कोई दूसरा उपाय नही है ,हम हथियार डाल चुके है अगर ऐसा है तो देश दुनिया को तबाही की तरफ जाने से कोई नही रोक सकता।
खुद को सुपर पावर की श्रेणी में रखने वाला अमेरिका , जो कभी तालाबंदी के खिलाफ था ,आज उसने भी तालाबंदी की अवधि को बढ़ा दिया है। क्योंकि कोरोना अब अमेरिका के कई ग्रमीण इलाको में मजबूती के साथ अपनी जड़ें फैला रहा है।
ऐसे में बहोत अहम सवाल ये है कि क्या हमारे पास खुद की कोई रणनीति नही है। क्या महामारी के इस दौर में हमारी बुद्धि इतनी भ्रष्ट हो चुकी है , कि हमारे पास तालाबंदी के सिवा कोई कारगर उपाय नही!
आइये आज हम आपके साथ एक तस्वीर साझा करते है कि हम क्यों कोरोना के खिलाफ हथियार डालकर महज़ तालाबंदी से जीत की आस लेकर चल रहे है।
भारत मे 737 जिलों में 377 जिले कोरोना के काल से प्रभावित है। जबकि देश में 5 ऐसे राज्य है जहां कोरोना संक्रमण ने 1000 से ज्यादा आंकड़ा पर दिया है। ये वो सरकारी आंकड़े है ,जिनका सैम्पल टेस्ट मंद गति से कराया जा रहा है ।जैसे जैसे टेस्ट हो रहे है आंकड़े सामने आ रहे है।
केंद्रीय स्वस्थ मंत्रालय आबादी के आंकड़ो पर दलील देता है कि , देश में कोरोना संक्रमित के दुगने होने की रफ्तार दुनिया के बाकी बड़े देशो से भारत में बहोत कम है।
ऐसे में सबसे अहम और गौर करने वाली बात ये है कि , जब भारत टेस्ट ही सबसे कम कर रहा है तो देश में कोरोना संक्रमित लोगो की वास्तविक जानकारी का आधार क्या है !
कांग्रेस ने हाल ही में सरकार से टेस्ट के विस्तृत आधार की मांग की है। कांग्रेस ने आरोप लगाए है कि 10 लाख की आबादी पर देश में जो टेस्ट हो रहे वो प्रयाप्त नही है , सरकार महज तालाबंदी करके वायरस का पीछा नही कर सकती । क्योंकि हमें टेस्ट की रफ्तार का आंकड़ा बढ़ाने की सख्त जरूरत है।
आपके जानकारी के लिए बताना चाहूंगा कि तालाबंदी से लोगो को परहेज है भी और नही भी। लेकिन फिलहाल वायरस से निपटने के लिए महज़ तालाबंदी ही एक रास्ता नही है।उसके लिए सिस्टम में सुधार की जरूरत है। ठोस और कारगर रणनीति और टेस्ट में तेज़ी की जरूरत है। हमे तालाबंदी के साथ साथ बदहाल होती अर्थव्यवस्था पर अभी से रणनीति तय करनी होगी ,अन्यथा जिस रफ्तार से अर्थव्यवस्था का किला गिरने लगा है तो वो दिन दूर नही ,जब तालाबंदी अर्थव्यवस्था की जड़ो को खोखला करके कई दशक पीछे धकेल देगी।
क्या सरकार के पास कोरोना का ईलाज महज एक तालाबंदी पर सिमट कर रह गया है !या फिर तालाबंदी के साथ कोई मुकम्मल तैयारी भी है ! जो कोरोना और अर्थव्यवस्था से लड़ने के लिए सक्षम है।
सरकार को इस बात का जवाब देना होगा कि आने वाले कल में देश में जो बेरोजगारी की सुनामी इंतज़ार में बैठी है , उसके लिये सरकार की क्या तैयारी है !
जरूरत है आज देश मे वायरस के खिलाफ टेस्ट की संख्या बढ़ाने की ,लेकिन अब तक स्वस्थ मंत्रालय देश मे सबसे कम टेस्ट होने की वजहों का सही जवाब देने में असमर्थ रहा है।
अब हम थोड़ा देश के बाहर भी नजर दौड़ा लेते है।अप्रेल तक दुनिया के सभी देशों में कोरोना टेस्ट दर भारत से कही ज्यादा देखी गई है। जवाब में स्वस्थ मंत्रालय द्वारा अपनी वेबसाइट पर अमेरिका से भारत के टेस्ट आंकड़ो पर एक ग्राफिक्स जारी करता है कि , अमेरिका में जब 10 हजार मामले थे तो 1,39,878 टेस्ट अमेरिका ने किए थे।
जबकि भारत में 10 हजार केस पर 2,17,554 टेस्ट किये गए थे। स्वस्थ मंत्रालय का अपना दावा है कि भारत ज्यादा टेस्ट कर रहा है। लेकिन पॉजिटिव मामले देश में कम मिल रहे है।
सवाल ये भी बनता है कि क्या हम इस डेटा के जरिये 33 लाख टेस्ट करने वाले अमेरिका के सामने खुद को किस श्रेणी में खड़ा कर सकते है। हम किसी भी हालत में ऐसा नही कर सकते क्योंकि हमारी टेस्टिंग क्षमता बहोत कम है।
हालांकि भारत ने अप्रेल तक अपनी टेस्टिंग क्षमता में कुछ विस्तार जरूर किया । लेकिन उसमे भी कई सवाल अबतक खड़े है। कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट में लगने वाला समय क्या है ! रिपोर्ट 6 से 8 घंटे में आ रही हैं या फिर रिपोर्ट आने में 24 से 48 घंटे का वक़्त लग रहा है।
हालांकि सरकार के पास इस सवाल का कोई जवाब नही है। पीएम ने “मन की बात’ में कई तरह के तरीके बताए कोरोना से बचाव के लिए ,टेस्टिंग लैब की संख्या जरूर बताई , लेकिन पीएम मन की बात में सैम्पल टेस्ट की बात पर ख़ामोश रहे।
आइये हम आपको बताते है कि 15 अप्रेल तक देश में 2,74,599 सैम्पल टेस्ट किये गए।
8 अप्रेल तक 1,27,919 सैम्पल टेस्ट हुए थे।
एक हफ्ते में महज़ 1,46,680 सैम्पल टेस्ट हुए।
हर दिन का औसत निकाले तो 20 हजार से ज्यादा टेस्ट में जाता है।
और देश दूनिया के सामने कोरोना के खिलाफ महज़ दो ही हथियार है (तालाबंदी और टेस्ट ) बाकी कोई दूसरा हथियार फिलहाल अब तक तैयार नही हो सका ।
आइये आपको बाकी कुछ देशो का भ्रमण करा दूँ जहां काफी हद तक कोरोना के खिलाफ मजबूत रणनीति के चलते उठाये कदम कारगर साबित हुए।
दक्षिण कोरिया ने तालाबंदी की जगह न सिर्फ तेज़ी से टेस्ट का रास्ता अपनाया बल्कि उससे ज्यादा खुद की मज़बूत रणनीति पर काम किया। हर एक व्यक्ति की पारदर्शी सूचना और समय पर लिया गया एक्शन के चलते दक्षिण कोरिया ने कोरोना पर शिकंजा कस दिया।
दूसरी तरफ जर्मनी कोरिया के मॉडल को पीछे छोड़ते हुए 18 लाख टेस्ट के साथ आगे बढ़ा है।
जर्मनी को भी छोड़िए हम सीधे चलते है चाईना से सटे ताइवान में । जिसके बारे मे कहा गया था कि चीन के बाद अगर कोई देश विनाशकारी लिस्ट में शामिल होगा तो वो है ताईवान । क्योंकि ताइवान ,चीन से बिल्कुल सटा हुआ देश है । जहाँ हर रोज़ सैकड़ो उड़ानो का आदान प्रदान वुहान से होता है। ताईवान के साढ़े आठ लाख लोग चीन में रहते है।यहां पर चौकाने वाली बात ये है कि ताईवान ने न तो टेस्ट में दुनिया का रिकार्ड बनाया न तो तालेबंदी को अंजाम दिया।ताईवान 250 करोड़ की आबादी वाला देश है।जहाँ कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा दहाई में भी नही पहुँच सका तो संक्रमित लोग 400 के अंदर रोक दिये गए।
हम आपको बताते है कि कैसे ताईवान ने खुद को इस वायरस से सेफ़ किया। 31 दिसंबर को वुहान में संक्रमण की खबर के बाद ताइवान ने बिना देरी किये चीन से आने वाली उड़ानो को सीमित कर दिया। तब तक कोरोना का नाम कोविड 19 नही था। ताइवान चीन से आने वाले हर एक नागरिक की स्क्रीनिंग के साथ साथ उन्हें क्वारन्टाइन के सुपुर्द करता गया।
ऐसा इसलिए कि ताईवान ने 2003 सार्स की सीख से नेशनल हेल्थ कमांड सेंटर बनाया हुआ था। कोरोना के उदय के बाद 30 जनवरी को ही इसे सक्रिय कर दिया था । साथ ही चीन ने अपने सेंट्रल एपेडेमिक कमांड सेंट्रल को भी एक्टिव कर दिया था। इसके बाद ताइवान अपने मंत्रिमंडल के साथ मिलकर एक नई रणनीति में न सिर्फ जुट गया । बल्कि बिना देरी किये लागू भी करता गया। देश राज्य और जिलों की सभी सीमाओं को सील कर दिया गया और नियमित तौर पर प्रेस ब्रेफिंग में ताईवान ने जोरी पकड़ ली।
10 फरवरी को ताइवान में 16 मामलों के साथ तथा चीन में 31 हजार के संक्रमित आंकड़ों की प्रष्ठभूमि विश्व पटल पर दिखने लगी तो ताइवान ने बिना समय गवाये चीन से जुड़ी सभी उड़ाने पूरी तरह से रद्द कर दी।
चीन ,हांगकांग और मकाऊ से आने वाले सभी यात्रियो को सख्त स्क्रीनिंग के साथ क्वार्ण्टाइन में भेजा जाने लगा।
दुनिया के इतिहास में महामारी का ये वो प्रथम स्टेज था जब राहुल गांधी के सचेत करने के बाद भी भारत ने इसे गंभीरता से लेना मुनासिब नही समझा था। क्योंकि ये वो दौर था , जब भारत मे न सिर्फ नमस्ते ट्रंप की ज़ोर शोर से तैयारी चल रही थी बल्कि एमपी में कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए सम्पूर्ण मंत्रिमंडल अपना पसीना बहा रहा था। कोरोना जैसे बीमारी को भारतीय मीडिया नजरअंदाज करके अहमदाबाद में नमस्ते ट्रंप की पीआर में जुटकर ट्रंप के पोस्टर और स्टेडियम को गूगल बना रहा था। कोरोना अब तक अंतरराष्ट्रीय महामारी बनकर उभर चुका था।लेकिन भारत के टीवी चैनल के लिए कोरोना को एक मामूली खबर बताई जाती रही। इधर ताईवान के डिजिटल मंत्रालय ने आर्टिफिशल इंटिलिजेंट का इस्तेमाल करते हुए हर जरूरी डेटा को एक दूसरे से जोड़ना शुरू कर दिया।
बीमा कपनियो से विदेशो से आने जाने वालों का न सिर्फ डेटा बल्कि वीज़ा विभाग से जानकारी एकत्र की जाने लगी थी।
जिसके बाद 18 फरवरी तक ये तमाम जानकारियां मेडिकल स्टोर ,अस्पताल लैब और सभी वाजिब जगहो पर उपलब्ध हो चुकी थी।
वजह ताईवान में जो भी मरीज जाए उसकी यात्रा का इतिहास सभी के पास मौजूद रहे। ऐसे सभी लोगो के शरीर का तापमान लेकर उन्हें क्वार्ण्टाइन में भेजा जाता रहा।
फिलहाल आमतौर पर सरकारे ऐसी सूचनाओं का इस्तेमाल नागरिकों पर नियंत्रण करने के लिए करती रही है।
ताइवान के लिए ये कहना गलत नही होगा कि उसने सर्वप्रथम इस मामले में अपनी जनता का विश्वाश हासिल किया।लोगो को फोन पर रेड ज़ोन इलाके का अलर्ट जाने लगा , मास्क पहुँचाया जाने लगा। खास चीज़ ये कि सरकार ने सभी निर्यात बंद कर अपने स्तर पर उत्पादन शुरू कर दिया। देखते ही देखते
जनवरी तक ताईवान के पास साढ़े 4 करोड़ सर्जिकल मास्क बनाकर तैयार थे।
ताईवान ने 2 करोड़ एन 95 मास्क और एक हजार निगेटिव प्रेशर आइसोलेशन रूम बना कर खड़े कर दिए। आइसोलोशन एक खास तरह का कमरा होता है , जो हवा का दबाव इतना कम रखता है , कि संक्रमित हवा बाहर निकल जाती है।
ताईवान की रणनीति काम आई और उसने एक दिन में एक करोड़ मास्क बनाने का एलान कर दिया।
ताईवान की महामारी के खिलाफ जीत कि चार वजह रही -लोकतंत्र पारदर्शिता विश्वाश और तकनीक जिसके चलते ताईवान ने कोरोना पर काबू में कर लिया।
यहां एक बात आपको बताने और गौर करने वाली है कि ताईवान में पढ़े लिखे लोगो को ही चुनने की परंपरा है।वहां के राष्ट्रपति लंदन कालेज से पीएचडी है। उपराष्ट्रपति महामारी के अच्छे विशेषज्ञयों में गिने जाते है।किसी देश की कामयाबी और जीत के पीछे चुने हुए अच्छे लोगो का चयन काफी मायने रखता है।
ऐसे समय में जब भारत ये दावा करे कि देश में कोरोना के बढ़ने की रफ्तार कम है ,तो दावों पर ध्यान से गौर करना चाहिए। तब गौर करने वाली बात और अहम हो जाती है जब ये दावा किया जाए कि हमने समय पर सही तैयारी और रणनीति को अंजाम दिया! इस संकट में भारत अपनी बेहतर क्षमता का केसा इस्तेमाल कर रहा है। ये हम सबके सामने है बेशक सरकारे गरीबो को खाना पहुँचा रही है।सभी के बराबर समय पर टेस्ट हों रहे है ,सैम्पल टेस्ट में सरकार के अनुसार हम किसी से पीछे नही है ,घर घर लोगो को सहूलियतें प्रदान की जा रही है ,शायद यही वजह है कि ‘ मन कि बात ‘ को जनता मन से न सिर्फ सुनती है बल्कि पूरी निष्ठा के साथ उसपर अमल करती आ रही है। लेकिन मज़दूरों का पलायन , किसानों की फसल , घरों में भूखे मर रहे लोगो , अस्पतालो में मास्क मेडिकल उपकरण ,वेंटिलाइज़र ,डॉक्टरों इलाज के वक़्त संक्रमित होने के बाद हो रही मौते ।इन सब पर खास रणनीति की जरूरत है जिसपर ध्यान देना मुनासिब नही समझा गया अब तक । देखा जाए तो सरकार से कही चार हाथ आगे हर छोटी बड़ी संस्थाएं ,मंदिर मस्जिद ट्रस्ट आम लोग खुद के अपने पेसो से आज लोगो की मदद कर रहे है।तालाबंदी तो चोर से घर कि सुरक्षा का एक जरिया मात्र है।लेकिन चोर का इंतेज़ाम करना उसे खत्म करना होगा उसके लिए हमे ठोस रणनीति और मजबूत कदम की जरूरत है।
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