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ग्लैमर की नैय्या पर यूपी चुनाव
जिस उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों की ओर पूरे देश की निगाहें लगी हों, उसमें ग्लैमर का तडक़ा न हो, ऐसा कभी हो सकता है। यह तो तय नहीं कि चुनावों में हर बार की तरह इस बार भी सितारों का कितना जमघट उतारे जाने की तैयारी है, लेकिन इससे पहले ही मैदान में हुंकारे भरने वाले प्रियंका गांधी, डिंपल यादव, स्मृति ईरानी, हेमा मालिनी, स्वाति सिंह, अनुप्रिया पटेल सरीखे राजनीतिक ग्लैमर की चमक से लोगों की आंखें चुंधियाने लगी हैं। अब यह ग्लैमर लोगों के रुझान को पार्टी के लिए वोटों में कितना तब्दील करा पाता है, यह तो वक्त ही बताएगा, परंतु चुनाव में सरगर्मियां तो बढ़ ही जाएंगी।
क्या सिर्फ ग्लैमर से रिझा पाएंगे युवाओं को?
यही नहीं, भाजपा अपना दल के गठबंधन के साथ चुनाव लड़ रही है जिसकी कमान अनुप्रिया पटेल के हाथों में है। अनुप्रिया लगातार उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल की सरगर्मियां बढ़ा रही हैं क्योंकि सफलता से पार्टी में उनका कद बढ़ेगा ही और उनकी छवि भी आकर्षक है, पर राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक अनुप्रिया पटेल का असर पूर्वी उत्तर प्रदेश की कुर्मी बहुल्य सीटों तक ही दिखेगा। वैसे प्रियंका गांधी और डिंपल यादव की जोड़ी का आम चुनाव में बहुत असर दिखेगा, ये कहना जल्दबाजी होगी। क्योंकि कांग्रेस अपना वोट समाजवादी पार्टी को ट्रांसफर करा पाए, ऐसा संभव नहीं दिखता, लेकिन वे मानते हैं कि इस जोड़ी का असर शहरी इलाके के युवा वोटरों पर जरूर होगा।
कितना काम आएगा ग्लैमर का तडक़ा?
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के औपचारिक गठबंधन से पहले ही सडक़ों पर प्रियंका गांधी और डिंपल यादव के पोस्टर लगने शुरू हो गए थे। अब गठबंधन के बनने से उत्तर प्रदेश के चुनावी घमासान में एक नया फैक्टर जुड़ गया है, प्रियंका गांधी और डिंपल यादव की जोड़ी के ग्लैमर का। इन दोनों की छवि ग्लैमरस रही है जो उत्तर प्रदेश के युवाओं को गठबंधन की तरफ आकर्षित करने में कामयाब हो सकती है। वैसे ग्लैमर का अपना पहलू होगा, लेकिन उससे ज्यादा यूथ पावर का असर होगा। प्रियंका पहले भी चुनाव प्रचार करती रहीं लेकिन अपने क्षेत्र तक, और डिंपल भी अपने इलाके तक सीमित थीं। अब दोनों बाहर निकल कर एक साथ प्रचार करेंगी तो इससे गठबंधन को फायदा होगा।
प्रियंका, डिंपल की जोड़ी रंग लाएगी?
प्रियंका के नेतृत्व में ही कांग्रेस का भविष्य देखने वाले लोगों की भी कमी नहीं है। चाहे प्रियंका हों या डिंपल यादव, दोनों की पढ़ाई लिखाई आधुनिक स्कूल-कालेजों में हुई है और उनकी अपनी लाइफ स्टाइल भी हाई प्रोफाइल जैसी है। बावजूद इसके दोनों सार्वजनिक जीवन में, राजनीति में आम लोगों को कनेक्ट करना बखूबी जानती हैं। बात 1999 की करें तो तब प्रियंका उतनी मैच्योर नहीं थीं, लेकिन बेल्लारी में सुषमा स्वराज के सामने जिस तरह से उन्होंने अपनी मां का प्रचार संभाला, वह कमाल था और वे आम लोगों में एकदम ऐसे घुलमिल गईं, ठीक इंदिरा गांधी की तरह ही। यूपी में भी वे अब तक बंद मुठ्ठी की तरह रही हैं। डिंपल का अंदाज भी वैसा ही है।
डिंपल की ताकत और कमजोरी
ताकत की बात करें तो पिछले 8 वर्षों से प्रदेश की राजनीति में डिंपल सक्रिय हैं। ऐसे में वह पूरे प्रदेश से वाकिफ हैं। महिलाओं से जुड़े मुद्दे पर लगातार काम करने के कारण महिलाओं के बीच पहले ही लोकप्रियता हासिल कर चुकी हैं। एक आदर्श बहू के रूप में खुद को स्थापित कर चुकी हैं। पूरे परिवार में वह सबसे स्वीकार्य बन कर सामने आई हैं। डिंपल का कमजोर पक्ष यह है कि उनके लिए राजनीतिक रूप से स्वतंत्र किसी प्रोजेक्ट पर अपनी छाप दिखाना अभी बाकी है। वह लोकसभा में अब तक कई मौकों पर खामोश ही रही हैं। गठबंधन में मुद्दों पर वह किस तरह लोगों से संवाद करेंगी, इसे देखना अभी बाकी है।
प्रियंका की ताकत और कमजोरी
प्रियंका की सबसे बड़ी ताकत यह है कि पब्लिक में प्रियंका को लेकर ज्यादा उत्सुकता रहती है। वह बेहतर वक्ता हैं और सहज तरीके से लोगों से संवाद करती हैं। उन्हें राजनीतिक रूप से ज्यादा समझदार माना जाता है और उनमें टीम को साथ लेकर चलने की क्षमता भी है। प्रियंका का कमजोर पक्ष भी यही है कि अब तक उन्होंने कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं संभाली है। चुनाव प्रचार में भी उनकी बहुत संक्षिप्त भूमिका रही है। पिछली बार भी गांधी परिवार के इलाके में प्रचार किया था, लेकिन उन सभी इलाकों में कांग्रेस की हार हो गई थी। अपने पति राबर्ट वाड्रा पर लगे करप्शन के आरोप को लेकर वह डिफेंसिव मोड में रहने को मजबूर रही हैं।
अन्य भी पीछे नहीं…
इनके अलावा चुनाव में दूसरी ग्लैमरस महिला नेताओं की भूमिका भी बेहद अहम मानी जा रही है। इनमें अखिलेश के छोटे भाई प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव लखनऊ कैंट से मैदान में हैं। हालांकि, अभी तक तो उनकी भूमिका केवल अपनी सीट निकालने की होगी। वहीं, भाजपा की ओर से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को अभी तक मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा है और वे यूपी का लगातार चुनावी दौरा करती रही हैं। उनकी पर्सनैलिटी का भी अपना एक आकर्षण है। स्मृति का साथ देने के लिए मथुरा से पार्टी की सांसद हेमा मालिनी भी मौजूद होंगी, लेकिन फिल्मी कलाकार बहुत बड़े पैमाने पर वोट दिला पाएं, ऐसा होता नहीं है। इसके अलावा भाजपा ने पिछले दिनों में अपने नेता दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह को भी उभारने की कोशिश की है। अच्छे प्रभाव के बावजूद उनकी भूमिका कुछ ही क्षेत्रों में प्रचार तक सीमित रह सकती है।
राखी के बहाने आठवले देंगे यूपी में दस्तक
महाराष्ट्र में दलित वोटरों पर अपनी पकड़ मजबूत रखने वाले रामदास आठवले राखी सावंत के जरिए यूपी की सियासत में भी अपनी पार्टी की उपस्थिति दर्ज कराने में जुटे हैं। कम से कम आठवले की पार्टी सुर्खियों में तो आ ही जाएगी। खबरों की मानें तो आठवले यूपी के अंदर दलित वोटों पर पकड़ रखने वाली मायावती के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश करेंगे। अगर मायावती चुनाव लड़ती हैं और राखी के चुनाव प्रचार में कई बॉलीवुड हस्तियां भी आ सकती है जिससे रैली के दौरान भारी भीड़ इकट्ठा हो सकती है और गुट को सुर्खियां हासिल हो सकती है।
बॉलीवुड कन्ट्रोवर्सी क्वीन देगी मायावती को चुनौती
उत्तर प्रदेश में इस बार बॉलीवुड की कन्ट्रोवर्सी क्वीन राखी सावंत बतौर उम्मीदवार उतरेंगी। राखी उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान किसी छोटे-मोटे नेता नहीं बल्कि बहुजन समाजवादी पार्टी की नेता मायावती के खिलाफ चुनाव लड़ेंगी। इस बात का एलान मोदी सरकार में मंत्री और आठवले गुट के अध्यक्ष रामदास आठवले का चुके हैं। अगर मायावती चुनाव नहीं लड़ती हैं तो राखी पूरे यूपी में बसपा के खिलाफ प्रचार करेंगी। राखी आरपीआई आठवले गुट की महिला शाखा की अध्यक्ष हैं। ये दूसरा मौका है जब बॉलीवुड की ये कन्ट्रोवर्सी क्वीन कोई चुनाव लड़ेगी। इससे पहले वो महाराष्ट्र में हुए विधानसभा चुनाव बतौर उम्मीदवार उत्तर-पश्चिम मुंबई से लड़ चुकी हैं। उस चुनाव में राखी की जमानत भी जब्त हो गई थी।
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