Bombay Leaks Desk
मुंबई: आज ही के दिन एक परिवार के बीच चल रहे मलयुद्ध की वजह से एक अख़बार का जन्म हुआ।मलाई खाने के चक्कर में चाचा भतीजों के बीच मलयुद्ध शूरु हुआ यह मलयुद्ध पहले तो घर की चार दीवारी के पीछे था लेकिन थमने का नाम न लेकर पहुंच गया कारोबरा के बीच और फिर उर्दू के एक पुराने अखबार यह उर्दू टाइम्स दफ्तर तक जा पहुंचा।
मुंबई में विशेष रूप से मुसलमानों के दर्द को महसूस करना और उसपर मरहम लगाने के तथाकथित तरीके,कौम का रोना रो रो कर अपनी तिजोरी भर कर अख़बार प्रकाशित किया गया आखिर में इसका अंत होगया।लेकिन इस अंत के बाद एक अखबार की उत्पत्ति और इस उत्पत्ति के चक्कर मे एक परिवार दो भागों में बंट गया।एक परिवार की बागडोर भतीजो के हाथ में थी तो दूसरे की बागडोर चाचा के हाथों में थी।
इस बटवारे के बाद उर्दू टाइम्स कुछ दिनों तक बंद रहा और चाचा भतीजों को और परिवार को टूटने से बचाने के लिए समाज के कई सज्जन आगे आए लेकिन बात नहीं बनी वजह साफ़ थी की भतीजों की दलील चाचा चाची के सामने ऐसे ही थी जैसे भेड़िए के सामने बकरी के बच्चे की जो किसी भी हाल में स्वीकार नहीं थी और फिर घर बटे,रिश्ते बटे , कारोबार बटे लेकिन नहीं बटा तो विचार और मांसिकता और पॉलीसी।
दर असल पूरे मामले का असल कारण था चाचा भतीजे के बीच पारिवारिक सम्पत्ति का बटवारा बताया जा रहा था।सईद अहमद और इम्तेयाज के बीच चल रहे विवाद में मुंबई का एक पुराना उर्दू अखबार कई महीनों तक बंद रहा।दोनों फक्ष किसी नतीजे पर नही पहुँचे पाए उसके बाद उर्दू टाइम्स के पार्टनर सईद अहमद के भतीजे इम्तेयाज ने दूसरा अखबार लाने की कोशिश की।इम्तेयाज ने उर्दू टाइम्स के नाम से मिलता जुलता नाम रजिस्टर्ड कराने की पूरी कोशिश की लेकिन चाचा सईद की वजह से नाकामी हाथ लगी जिसके बाद वह 2010 में साप्ताहिक के तौर पर रजिस्टर्ड मुबंई के एक उर्दू अखबार को दैनिक कर उर्दू टाइम्स की मार्किट पर अपना कब्ज़ा जमाना चाहते है।जो कि अब डेली निकलता है लेकिन जिस लक्ष्य को लेकर इस परिवार का बचवारा हुआ वह लक्ष्य आज भी दोनों पक्षों की पहुंच से दूर है।
उर्दू टाइम्स के पुराना स्टाफ इम्तेयाज अहमद के साथ हो गया कुछ विकलांग अपाहिज जिन्हें कहीं कोई काम धाम नहीं मिला वह उर्दू टाइम्स में ही चाचा सईद को सब्ज़ बाग दिखा कर टाइम पास करना शुरू कर दिया। पुराने स्टाफ़ के बल पर इम्तेयाज उर्दू टाइम्स की मार्केट पर कब्ज़ा ज़माने का सपना देख रहे हैं।आलम यह रहा कि जब स्टाल पर इस नए अखबार को जनता ने देखा तो वह पचा नहीं पाए क्योंकि उस दौरान उर्दू टाइम्स विवाद के चलते बंद था इम्तियाज़ ने उस मार्केट पर जो कि उर्दी टाइम्स में खड़ी की गई थी उसे हथियाने की कोशिश की लेकिन उर्दू टाइम्स के पाठक इस नए अखबार को पचा नहीं पाए।इस से पहले की वह पचा पाते चाचा ने उर्दू टाइम्स को कोर्ट की रॉयलटी भरते हुए शुरू कर दिया और इम्तियाज़ का उर्दू टाइम्स की मार्केट पर कब्ज़े का सपना अधूरा रह गया जो कि आज साल भर हो जाने के बाद पूरा नहीं हुआ।हालांकि उर्दू टाइम्स के बंद होने के बाद घरेलू विवाद का फाएदा सीधे सीधे जागरण समूह के रोज़नामा इंक़लाब को मिला है और उसके ज़्यादातर पाठकों ने इंक़लाब को अपना लिया है। इसलिए इम्तेयाज के लिए आज के समय में यह नया तजुरबा साल भर बीत जाने के बाद कारगर नहीं साबित हुआ।हालांकि इम्तेयाज़ के इस अखबार का जो नाम है उसको उर्दू टाइम्स की तरह हूबहू नकल किया गया लेकिन पाठकों ती आँख में धूल झोंकने में भतीजे इम्तियाज़ कामयाब न हो सके।
उर्दू टाइम्स का इतिहास और अतीत मुम्बई के पाठक वर्ग से लेकर हर किसी की ज़ुबान पर है और ऐसे में नए अखबार के लिए मुम्बई में पैठ बनाना आसान नहीं है।वैसे इस पारवारिक झड़गे की मुख्य वजह पेड न्यूज़ से मिले माल और एक पेज पर दो दलों को हराना जिताना बताया जा रहा है।हालांकि इम्तेयाज अहमद इन सब मुद्दों पर उस समय महज़ यह कहकर निकल गए कि जल्द ही सब कुछ साफ़ हो जाएगा और भिड़ गए नए अखबार का प्रचार करेन में।साल भर होने को आए अभी भी मार्केट और जनता दोनों की किस्मत पर खरा नहीं उतर सका।
वैसे उर्दू टाइम्स ने भी मुम्बई विश्व प्रहरी टाइम्स के नाम से एक तजुरबा 12 साल पहले किया था मगर नाकामी हाथ लगी लेकिन तब विवाद नहीं था बल्कि तब चाचा भतीजे दोनों की सोच एक थी और दोनों पेड न्युज़ और एक ही पेज पर एक ही पार्टी के उम्मीदवार क हरा जिता कर मलाई खाते थे उसके बाद भी यह तजुरबा कारगार साबित नहीं हुआ।
इस एक साल के दौरान चाचा सईद सांताक्रुज़ मे मौजूद प्राप्रर्टी बेच दी क्योंकि कोर्ट की रायलटी 12 लाख भऱनी पड़ रही और आलम यह है कि उर्दू टाइम्स के कर्मचारियों का पिलले कई महीनों से वेतन तक नहीं दिया जा रहा है।और यह इस परिवार के बटवारे के बाद की तबाही का कारण है जिसकी भरपाई अब करना संबव नहीं हालांकि इस अलगाव के बाद चाचा सईद ने काफी कोशिशें की लेकिन किसी तरह से कामयाबी हासिल नहीं हुआ।
वहीं इम्तेयाज़ ने पिछले एक साल में इस नए अखबार को लेकर काफी संघर्ष किया लेकिन समस्या यह रही कि इस नए उर्द अखबार को पाठक भी पचा नहीं पाए और जो पचा पाए वह इस धोखे में थे की कि इसकी डिजाइन उर्दू टाइम्स के जैसे है यह सोच कर पचाने की कोशिश की लेकिन पाछकोंकी सोच पर खरा नहीं उतर पाया क्योंकि अखबार चलाने के लिए मार्किटिंग की जो सब से अहम ज़रूरत है वह इस नए अख़बार और उर्दू टाइम्स दोनों की पहुचें से बाहर है क्योंकि जो पाठक या व्यापारी पहले उर्दू टाइम्स को विज्ञापन देते थे अब अगर उन्हें विज्ञापन देना है तो दोनों को देना पड़ेगा किसी एक को देकर दूसरे को नाराज़ न होते देख पाठकों ने जागरण समूह के प्रोफेश्नल अखबार इंकलाब का रुख किया और यही वजह रही कि दोनों एक विज्ञापन देने वाला व्यापारी इन दोनों से पीछा छुड़ा का एक प्रोफेश्नल को अखबार को विज्ञापन देने में भलाई समझता है।इसके पीछे के सब से बड़ी वजह यही है कि इनके बीच हुए बटवारे।
अब ऐसे में कौम और उर्दू का दर्द का रोना रो रो कर कब तक अखबार प्रकाशित किया जा सकता है इसकी कोई गारंटी नहीं क्योंकि पाठकों को यह समझ गया है कि परिवार में फूट का आधार बना कोई अखबार तो वह भला कौम को कैसे जोड़ सकता है और जो खुद के परिवार का उद्धार नहीं कर सकता तो वह भला कौम का उद्धार कैसे कर सकता है।
Post View : 30