बॉम्बे लीक्स ,मुंबई
मायानगरी मुंबई की एक अदालत ने पति पत्नी के बीच गुजारा भत्ता के एक मामले में चौंकाने वाला आदेश जारी किया है।पारिवारिक न्यायालय ने पति को यह आदेश जारी किया है कि उसकी पत्नी के पास पल रहे कुत्तों को भी पति महीने का खर्चा देगा।मुंबई की बांद्रा पारिवारिक न्यायालय के मुताबिक घर मे पलने वाले पालतू पशु भी स्वास्थ्य जीवन के लिए आवश्यक है।अदालत का चौंकाने वाला आदेश की पालतू पशु किसी भी रिश्तों के टूटने के बाद भावात्मक कमी को दूर करते है।लिहाजा उनके लिए भी गुजारा भत्ता अनिवार्य कर दिया।ऐसे में देखा जाए तो एक तरफ कुछ महिलाये महिला कानून का गलत इस्तेमाल कर पति पक्ष पर अवैध क्रूरता को अंजाम देती आ रही है।तो वही मुँबई बांद्रा न्यायालय के कानून से अलग आदेश को देखते हुए सवाल खड़े होना लाजिमी बनता जा रहा है।
मुंबई बांद्रा पारिवारिक न्यायालय के आदेश के मुताबिक घरेलू हिंसा के एक मामले में कहा कि पालतू पशु लोगों को स्वस्थ जीवन जीने में मदद करते हैं और रिश्तों में तकरार के कारण होने वाली भावनात्मक कमी को दूर करते हैं। इस मामले में एक महिला ने अलग रह रहे अपने पति से गुजारा भत्ता मांगते हुए कहा है कि उसे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं तथा तीन पालतू कुत्ते भी उस पर निर्भर हैं। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट (बांद्रा अदालत) कोमलसिंह राजपूत ने 20 जून को दिए अंतरिम आदेश में व्यक्ति को अलग रह रही अपनी 55 वर्षीय पत्नी को हर महीने 50,000 रुपये गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया और उसकी यह दलील खारिज कर दी कि पालतू कुत्तों के लिए गुजारा भत्ता नहीं दिया जा सकता। इस मामले में विस्तृत आदेश हाल में उपलब्ध हुआ है।पत्नी पक्ष के मुताबिक महिला ने 1986 में शादी की और पति के साथ दक्षिण भारत के एक शहर में रहने लगी। उनकी दो बेटियों की शादी विदेश में हुई है। 2021 में महिला पति से अलग होकर मुंबई आ गई। याचिका में महिला ने कहा कि उसके पास कमाई का कोई जरिया नहीं है और बीमार रहती है।पहले महिला के पति ने उसे गुजारा भत्ता और बुनियादी जरूरतें मुहैया कराने का आश्वासन दिया था। महिला के मुताबिक बाकी जरूरतों के अलावा, मेरे तीन रॉटवीलर कुत्ते भी मुझ पर निर्भर हैं। इसलिए मुझे 70 हजार रुपए हर माह गुजारा-भत्ता दिलाया जाए।जबकिं पति के मुताबिक उसकी कोई गलती नहीं है, उसकी पत्नी अपनी मर्जी से घर छोड़कर गई है। पति ने कहा कि उसे बिजनेस में घाटा हुआ है, इस कारण वह उसे किसी भी तरह का भरण-पोषण नहीं दे सकता। हालांकि पति पहले कुछ पैसा महिला को देता रहता था।फिलहाल कानूनी तौर पर देखा जाए तो महिला पत्नी गुजारा भत्ता की हकदार तभी होती है जब उसके साथ घरेलू हिंसा की घटनाये घटित हो।संविधान के मुताबिक पत्नी को स्वयं पर हुए क्रूरता या दहेज उत्पीड़न को अदालत में साबित करना पड़ता है।महज एक कहानी गढ़कर पति पर आरोप लगा देने से उसे गुजारा भत्ता नही दिया जा सकता।लेकिन आज निचली अदालतों में संविधान के उलट ऐसे फैसले दिए जा रहे है।हालांकि निचली अदालतों के फैसलों को उच्च न्यायालय द्वारा खारिज करते भी देखा जा रहा है।उच्च न्यायालय कई बार निचली अदालतों के आदेश पर सवाल भी खड़े कर चुके है।लेकिन ऐसे आदेश जोकि कानून और संविधान से इतर हो ,जानकारों के मुताबिक निचली अदालतों को ऐसे फैसलों पर आज के युग में विचार करना जरूरी है।क्योंकि संविधान और कानून के उलट ऐसे आदेश महिला कानून के दुरुपयोग को आगे बढ़ाता जा रहा है।
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