शाहिद अंसारी
मुबंई: बालगंगा सिंचाई घोटाले में ऐंटी करप्शन ब्युरो ने तीस हज़ार पेज की चार्जशीट दाखिल की लेकिन ताज्जुब इस बात का कि इस चार्जशीट में अजीत पवार का नाम तक नहीं लेकिन इसका यह बिलुकल मतलब नहीं कि वह निर्दोष हैं।सिंचाई घोटाले में अजीत पवार के फैसले जांच के दायरे में आ चुके हैं।ठाणे ऐंटी करप्शन ब्युरो ने इस मामले में दायर हालिया चार्जशीट से इस बात का खुलासा किया है जिसमें अजीत पवार की जांच का जिक्र हुआ है.एंटी करप्शन ब्यूरो ने करोड़ों रुपये की लागत से बने बालगंगा सिंचाई प्रोजेक्ट मामले में 30 हजार पन्ने की चार्जशीट फ़ाइल की है इस चार्जशीट में अजीत पवार की जांच का जिक्र स्पष्ट रूप से मौजूद है।
इस जांच में जांच अधिकारी सुनील कलगुटर का भी रोल काफी हम रहा है कि कलगुटकर पर जांच के दौरान ही वसूली के आरोप लगने शुरू हुए लेकिन कलगुटकर के खिलाफ एसीबी ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जबकि वह इतने बड़े घोटाले के जांच कर रहे थे।शिकायत और आरोपों को बाद भी एसीबी ने बालगंगा सिंचाई घोटाले की जांच कलगुटकर के सुपुर्द की और फिर वह मौका भी आया जब एसीबी के वरिष्ठ अधिकारियों ने कलगुटकर के खिलाफ़ जांच की और उसे दोषी पाया लेकिन कलगुटकर के खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं की गई क्योंकि कलगुटकर जिस भ्रष्टाचार की जांच कर रहा था उसे उसकी जिम्मेदारी तत्कालीन एसीबी प्रमुख प्रवीण दिक्षित ने सौंपी थी।अब ऐसे में जब एसीबी अधिकारी खुद भ्रष्टाचार मे शामिल पाया गया तो भला उससे बालगंगा सिंचाई घोटाले की जांच करवाना कितना सही होगा।हालांकि अजीत पवार के नाम को लकर पहले से ही चर्चा थी कि जिस प्रकार से एसीबी अजीत पवार को छूट दे रखी है उससे एक बात तो साफ पता चलती है कि अजीत पवार का बचना तय है।जबकि इस मामले मे मुख्य आरोपी वही हैं लेकिन सारे आरोपी की फहरिस्त बन गई लेकिन अजीत पवार का मामला टाल दिया गया।संभव है कि बालगंगा के जांच अधिकारी कलगुटकर ने जिस तरह से दूसरे मामलों फर्ज़ी ट्रैप लगाए और जांच के नाम पर जमकर वसूली की तो इस मामले में अरोपियों की फहरिस्त में अजीत पवार का नाम न डालने के लिए भई जमकर मलाई खाई हो क्योंकि वह मामले बालगंगा के सामने बहुत छोटे थे इसी लिए कलगुटकर को बालगंगा घोटाले से अलग नहीं किया गया।हाईकोर्ट में दायर याचिका पर जारी सुनवाई के तहत जिन 13 सिंचाई प्रोजेक्ट्स की जांच राज्य सरकार ने ACB को करने को कहा है उनमें रायगढ़ जिले में स्थित बालगंगा उसी में से एक प्रोजेक्ट है।
चार्जशीट मौजूद तथ्य स्पष्ट रूप से कहते हैं कि एसीबी ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर आगह किया है कि तत्कालीन सिंचाई मंत्री अजीत पवार के ज़रिए लिए गए फैसलों को लेकर राज्य के प्रधान सचिव को जानकारी दी है कि उनकी भूमिका की अभी जांच बाकी है।अजीत पवार को इस पत्र के बाद राहत नहीं मिलेगी क्योंकि चार्जशीट में बतौर आरोपियों की फहरिस्त में भले ही अजीत पवार का नाम न हो लेकिन इस जिक्र से उनकी भूमिका पर सवाल जरूर उठे हैं यही नहीं बल्कि महाराष्ट्र सरकार की अनुमति लिए बगैर सरकारी संस्था सिडको द्वारा बालगंगा प्रोजेक्ट को पैसे मुहैया करना भी जांच के दायरे में आ चुका है।गौरतलब है कि सिडको बोर्ड पर भी एनसीपी का कब्ज़ा था जिस बोर्ड ने गैरकानूनी रूप से कोंकण सिंचाई विकास बोर्ड के साथ MOU करने की बात चार्जशीट में कही गई है।मात्र एक ही तरफ से नहीं बल्कि कई ऐसे अवैध कार्य हुए हैं जिसमें अजीत पवार को सत्ताधारी सरकार आसानी से अटका सकती है।
चार्जशीट में पायोनीर फाउंडेशन को लेकर भी सवालिया निशान लगाए गए हैं और जांच के देरे में लाया गया है जिसनें 5238226 रूपए दिए गए उनका काम था मात्र सर्वे करना जिसके लिए यह रकम उन्हें दी गई और यह भी बिना सोचे समझे।महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री बनने से पहले करीब बारह साल अजीत पवार ने सिंचाई विभाग का जिम्मेदारी संभाला।और इसी दौरान उन्होंने 32 सिंचाई प्रोजेक्टों की लागत 17 हजार करोड़ रुपये बढ़ाए और यही नके लिए गले की हड्डी बन गया क्योंकि मनचाहे तरीके से सरकारा खजाने को खाली करना यह दर्शाता है कि सत्ताधारी सरकार ने अपने जेव भरने के लिए इस तरह के प्रोजेक्ट का सहारा लिया।बालगंगा प्रोजेक्ट को 2009 में मंजूरी मिलने के बाद महज 6 महीने में ही उसकी लागत 414 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 1600 करोड़ रुपये कर दी गई थी।और यह अजीत पवार की रजामंदी के बाद हुआ।यही वजह है कि इस प्रोजेक्ट क लेकर जैसे ही मामला दर्ज किया गया अजीत पवार को एसीबी ने तलब किया और 2 घंटो तक पूछताछ की।चार्जशीट दाखिल करने से पहले राज्य सरकार को पत्र लिखकर अजीत पवार का जिक्र करना यह राजनीति की असल कहानी है बीजेपी ने इस मुद्दे को लकर जिस तरह से हाहाकार मचाई थी जब वह विपक्ष में थे वह हाहाकार अब नहीं दिखाई दे रही जब चार्जशीट में बौतर आरोपी अजीत पवार का नाम एसीबी ने शामिल ही नहीं किया।यह भी संभव है कि अजीत पवार का नाम अतीरिक्त चार्जशीट में बौतर आरोपी दाखिल किया जाए लेकिन यह तब की बात होगी।बेजीपी सरकार और एसीबी के ज़रिए अजीत पवार को लेकर जिस तरह से अब साफ्ट कॉर्नर रहा इस से साबित होता है कि अब अजीत पवार पर सत्ताधारी सरकार कभी भी शिकंजा कस सकती है और इस से बचने का एकमात्र उपाय यह है कि सत्ताधारी सरकार बीजेपी की जी हुजूरी।
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