साहेब-ए-आलम अंसारी (कुवैत)
भारतीय उच्चतम् न्यायालय द्वारा बाबरी मस्जिद मामले में पक्षकारों को यह सुझाव देना कि यह आस्था व धर्म का गम्भीर मामला है इसे अदालत के बाहर आपसी सहमति से हल कर लेना चाहिए। अदालत के इस सुझाव को हम सम्मान के साथ अस्वीकार करते हैं। दशकों पुराने इस मामले में एक बार अदालतों को बताना चाहते हैं कि बाबरी मस्जिद मुसलमानों के लिए धार्मिक है और यह क़यामत तक धार्मिक ही रहेगी, परन्तु अदालत में मामला बाबरी मस्जिद के स्वामित्व व आराज़ी का है। भारत में कट्टरवादी व्यक्तित्व एवं संगठनों द्वारा जिस बाबरी मस्जिद को 6 दिसम्बर 1992 ई॰ को शहीद किया गया और मस्जिद की ज़मीन व जायदाद पर क़ब्ज़ा किया, उसी मस्जिद की ज़मीन व जायदाद का मामला अदालत में लम्बित है। जिस पर अदालत के फ़ैसले का दशकों से मुसलमान शान्तिपूर्ण तरीक़े से प्रतीक्षा कर रहें हैं।
पूरी दुनिया जानती है कि कट्टरपंथियों ने दिन के उजाले में ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद को शहीद किया है। मस्जिद की शहादत के बाद 16 दिसंबर 1992 भारत सरकार द्वारा बाबरी मस्जिद की शहादत की जाँच पड़ताल के लिए भारतीय उच्चतम् न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मनमोहन सिंह लिब्रहान की अध्यक्षता में ‘लिब्रहान अयोध्या आयोग’ का गठन किया। ‘लिब्रहान अयोध्या आयोग’ को तीन महीने के भीतर पाँच बिन्दुओं पर अपनी रिपोर्ट पेश करनी थी। वह पाँच बिंदु हैं; (एक) 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में राम जन्म भूमि – बाबरी मस्जिद के विवादित परिसर में घटीं प्रमुख घटनाओं का अनुक्रम और इससे संबंधित सभी तथ्य और परिस्थितियां जिनके चलते राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे का विध्वंस हुआ। (दो) राम जन्म भूमि – बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे के विध्वंस के संबंध में मुख्यमंत्री, मंत्री परिषद के सदस्यों, उत्तर प्रदेश की सरकार के अधिकारियों और गैर सरकारी व्यक्तियों, संबंधित संगठनों और एजेंसियों द्वारा निभाई गई भूमिका। (तीन) निर्धारित किये गये या उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा व्यवहार में लाये जाने वाले सुरक्षा उपायों और अन्य सुरक्षा व्यवस्थाओं में कमियां जो 6 दिसम्बर 1992 को राम जन्म भूमि – बाबरी मस्जिद परिसर, अयोध्या शहर और फैजाबाद मे हुई घटनाओं का कारण बनीं। (चार) 6 दिसम्बर 1992 को घटीं प्रमुख घटनाओं का अनुक्रम और इससे संबंधित सभी तथ्य और परिस्थितियां जिनके चलते अयोध्या में मीडिया कर्मियों पर हमला हुआ। (पाँच) जांच के विषय से संबंधित कोई भी अन्य मामला। लेकिन ‘लिब्रहान अयोध्या आयोग’ तीन महिने में अपनी रिपोर्ट पेश नहीं कर सका। इसका कार्यकाल अड़तालीस बार बढ़ाया गया और 17 वर्ष के लंबे समयांतराल के बाद अंततः आयोग ने 30 जून 2009 ई॰ को अपनी रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंप दी।
न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह लिब्राहन द्वारा लिखी गयी रिपोर्ट में मस्जिद की शहादत के लिए 68 लोगों को दोषी ठहराया गया है। इनमें ज्यादातर भाजपा के नेता और कुछ नौकरशाह हैं। रिपोर्ट में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी,उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी इत्यादि कट्टरपंथियों को लिब्रहान आयोग की रिपोर्ट में दोषी ठहराया गया है। आडवाणी की सुरक्षा प्रभारी एक भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी अंजू गुप्ता की गवाही भी रिकॉर्ड है कि बाबरी मस्जिद की शहादत वाले दिन वह मौजूद थीं। उन्होंने खुलासा किया कि आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी ने भड़ाकाऊ भाषण दिए थे।
खुफ़िया ब्यूरो के पूर्व संयुक्त निदेशक मलय कृष्ण धर ने भी एक पुस्तक में दावा किया कि बाबरी मस्जिद की शहादत की योजना 10 महीने पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिन्दु परिषद् के शीर्ष नेताओं द्वारा बनाई गई थी और इन लोगों ने इस मसले पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पी॰वी॰ नरसिंह राव द्वारा उठाये गए क़दम पर सवाल उठाया था। धर ने दावा किया है कि भारतीय जनता पार्टी व संघ परिवार की एक महत्वपूर्ण बैठक की रिपोर्ट तैयार करने का प्रबंध करने का उन्हें निर्देश दिया गया था और उस बैठक ने इस शक की गुंजाइश को परे कर दिया कि उन लोगों अर्थात् राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिन्दु परिषद् ने आने वाले महीने में हिंदुत्व हमले का खाका तैयार किया और दिसंबर 1992 में अयोध्या में ‘प्रलय नृत्य’ का निर्देशन किया। बैठक में मौजूद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिन्दु परिषद् और बजरंग दल के नेता काम को योजनाबद्ध रूप से अंजाम देने की बात पर आपसी सहमति से तैयार हो गए।
बाबरी मस्जिद का मामला अदालत के बाहर आपसी सहमति से निपटाने की अब तक दस कोशिशें हो चुकी हैं लेकिन कुछ लाभ नहीं हुआ। बाबरी मस्जिद की ज़मीन का एक इंच भी किसी को नहीं दिया जाएगा। समझौता सिर्फ़ और सिर्फ़ इस बात पर हो सकता है कि बाबरी मस्जिद की ज़मीन पर से हिन्दु अपना ग़ैर-क़ानूनी, अप्राकृतिक, तर्कहीन व अज्ञानतापूर्ण दावा छोड़ दें और देश में शान्ति से रहें। देस के अन्य नागरिकों को भी शान्ति से रहने दें। बात-चीत की अब कोई गुन्जाइश बाक़ी नहीं रही। मुसलमान भारत की अदालतों पर सदैव भरोसा करते रहें हैं। मुसलमानों को अदालत पर पूरा भरोसा है। अदालत के फ़ैसले का मुसलमानों को मान्य होगा। बाबरी मस्जिद मामले में उच्चतम् न्यायालय अपना फ़ैसला सुनाते हुए ‘लिब्रहान अयोध्या आयोग’ की रिपोर्ट के मुताबिक़ बाबरी मस्जिद की शहादत के दोषी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी इत्यादि समेत 68 कट्टरपंथी आरोपियो को सज़ा देना चाहिए।
Post View : 2