दलगत राजनीति और विचारधारा की लड़ाई से परे नैतिकता ही नहीं, न्याय का भी तकाजा है कि राजनीतिक दलों को मिलनेवाले सभी चंदों की पारदर्शी जांच हो। यह कोई गुप्त रहस्य नहीं कि करोड़ों -अरबों-खरबों के कालाधन राजदलों के पास आते हैं, जिनका कोई हिसाब नहीं रहता। हिसाब लिया भी नहीं जाता, कालाधन के खिलाफ अभियान चलाने का दम भरनेवाले सत्ताधारी भी इस बिंदु पर मौन साध जाते हैं। कौन नहीं जानता कि चुनावों के दौरान हजारों करोड़ के काले धन का इस्तेमाल खुलेआम किया जाता है। काले धन के ऐसे उपयोग में चोर-चोर मौसेरे भाई की कहावत को चरितार्थ करते हुए पक्ष-विपक्ष एक हो जाते हैं। ऐसे में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कालेधन के खिलाफ चोरों के सरदारों पर हाथ डालने की बातें कर रहे हैं, तब उनसे यह अपेक्षा की ही जाएगी कि कम से कम अब तो राजदलों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। उनके खातों की पारदर्शी जांच हो जिससे देश की जनता को पता चल सके कि उनके द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि और सरकार कितनी साफ है, कितनी दागदार है।
पिछले दिनों बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती के भाई और पार्टी के खाते में नोटबंदी के बाद 104 करोड़ रुपए से अधिक की राशि के जमा किए जाने पर सरकार की ओर से पूछताछ की बातें की जा रही हैं। इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। किंतु, न्याय का तकाजा है कि अन्य सभी राजदलों के खातों की भी जांच की जाए। मायावती की बसपा और उनके भाई की तरह पूरे देश को यह बताया जाना चाहिए कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और पूर्व सत्ताधारी कांग्रेस सहित अन्य दलों के खातों में पिछले एक वर्ष के दौरान कितनी धनराशि जमा की गईं। मायावती की तत्संबंधी मांग पूर्णत: जायज है, न्याय-संगत है।
वर्तमान कानून के अनुसार एक निश्चित राशि तक राजदलों को प्राप्त चंदे के विषय में कोई पूछताछ नहीं की जा सकती। अनेक बार चंदे के स्रोतों की जानकारी के लिए जरूरी कानून बनाए जाने की मांगें उठ चुकी हैं। सच तो यह है कि अदालती आदेश के बावजूद न तो भाजपा और न ही कांग्रेस अपने स्रोत बताने को तैयार हैं। चंदे के रूप में ये दल न केवल देश में बल्कि विदेशों से भी चंदे प्राप्त करते रहे हैं, कड़वा सच यह भी है कि चंदे के रूप में प्राप्त अधिकांश धनराशि कालेधन के रूप में हुआ करती है। प्रधानमंत्री अगर कालेधन के खिलाफ अभियान के प्रति गंभीर हैं, ईमानदार हैं तो पहल करते हुए वे ऐसे कानून को मूर्त रूप दें, जिससे कोई राजदल कालाधन को स्वीकार नहीं कर पाए। कोई राजदल चंदे को गुप्त न रख पाए। सभी राजदलों के लिए चंदे का स्रोत बताने को अनिवार्य कर दिया जाए। अब बातें जब डिजिटल युग की हो रही हैं, तब राजदलों के लिए भी चेक द्वारा ही चंदा लिया जाना और खर्च किया जाना अनिवार्य कर दिया जाए। चुनाव या अन्य भुगतानों के लिए भी सभी राजदल चेक या अन्य डिजिटल तकनीक का प्रयोग करें। चुनौती है प्रधानमंत्री को, कि इस दिशा में कदम उठाएं।
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