शाहिद अंसारी
मुंबई: पंजाब नैशनल बैंक में हुए घोटाले के बारे में जानकारी देने से पीएनबी बैंक ने सीधे तौर पर मना कर दिया है। इस मामले में जिन लोगों के खिलाफ कार्रवाई हुई है उनके बारे में बैंक कोई भी जानकारी नहीं देगा। इस बात का खुलासा मामले से जुडी एक आरटीआई दाखिल होने के मात्र 15 दिनों बाद हुआ।
गौरतलब है कि 2016 में आरटीआई कार्यकर्ता जितेंद्र घाड़घे ने इसी तरह की आरटीआई दाखिल की थी। हालांकि उस समय पीएनबी बैंक ने डिफॉलटर्स की सूची दी थी लेकिन SARFAESI अधिनियम के अनुसार डिफॉलटर्स के खिलाफ कार्रवाई की जानकारी देने से इनकार कर दिया था। प्रतिभूतिकरण और वित्तीय आस्तियों के पुनर्निर्माण और वित्तीय सुरक्षा की दृष्टी से 2002SARFAESI लागू किया गया था।
SARFAESI अधिनियम, 2002 के तहत, बैंकों को उधारकर्ताओं की बकाया राशि निर्धारित करने और ‘सुरक्षित संपत्ति’ के खिलाफ आगे बढ़ने के लिए किसी भी कोर्ट या ट्रिब्यूनल से संपर्क करने की आवश्यकता नहीं है। SARFAESI अधिनियम, 2002 के तहत, यदि एक खाता ‘एनपीए’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है तब बैंक देय राशि वसूल कर सकते हैं। इस अधिनियम के तहत बैंक अधिनियम की धारा 13 (2) के तहत उधारकर्ता और गारंटर को एक नोटिस देगा और वे उधारकर्ताओं के आपत्तियों के साथ भरपाई नोटिस को भी सौंपेंगे और अगर उधारकर्ताओं के आपत्तियों को खारिज कर दिया गया है। फिर बैंक संपत्ति के प्रतीकात्मक कब्जे लेने संपत्ति के भौतिक कब्जे को ले जाने और फिर अधिनियम के नियमों और जुड़े नियमों के अनुसार उसीका निपटारा करेगा।
SARFAESI अधिनियम, 2002 के तहत बैंकों को अपने बकाए की वसूली के लिए किसी न्यायालय या ट्रिब्यूनल से संपर्क करने की कोई आवश्यकता नहीं है और संपत्ति के कब्जे को लेते समय उन्हें अधिनियम की धारा 14 के तहत मजिस्ट्रेट न्यायालय की सहायता लेनी होगी।
मामले में सभी बैंकों को रिज़र्व बैंक को डिफॉलटर्स के खिलाफ की गई कार्रवाई के बारे में सूचित करना होगा। यह सुचना तिमाही आधार हुई कार्रवाई पर आधारित होनी चाहिए। लेकिन जब जनता को उक्त मामले की जानकारी देने की बात आती है तो पीएनबी जैसे बड़े बैंक गैरजिम्मेदाराना तरीके से मामले को अनदेखा कर देते हैं। घाड़घे ने कहा कि ऐसे समय में जब बैंकों और आम जनता के बीच भरोसे का रिश्ता हो तो यह सही समय है जब बैंकों को खुद ही अपनी वेबसाइटों पर इस जानकारी को प्रकाशित करनी चाहिए।
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