बॉम्बे लीक्स, दिल्ली
दिल्ली हाई कोर्ट ने लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के छह अधिकारियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं करने के एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर मंगलवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इन अधिकारियों को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सरकारी आवास के नवीनीकरण में नियमों के ‘घोर उल्लंघन’ के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था।
गौरतलब है कि सतर्कता निदेशालय और विशेष सचिव (सतर्कता) वाई.वी.वी.जे. राजशेखर की ओर से दायर अपील में उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के 15 सितंबर के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया गया था। आदेश में कहा गया था कि कोई भी प्राधिकारी याचिकाकर्ता पीडब्ल्यूडी अधिकारियों के खिलाफ 12 अक्टूबर तक दंडात्मक कार्रवाई नहीं करेगा। अपील मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ के समक्ष आई, जिसने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।दरअसल दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के आधिकारिक आवास के नवीनीकरण पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाने को लेकर विवाद के बीच, एलजी सक्सेना के बीच अधिकारियों को खर्च के रिकॉर्ड सुरक्षित करने का आदेश दिया था। और 15 दिनों के भीतर मामले पर रिपोर्ट मांगी है। भाजपा ने केजरीवाल और आप पर हमला करते हुए कहा था कि 2020-22 के दौरान मुख्यमंत्री आवास 6, फ्लैगस्टाफ रोड के नवीनीकरण पर 45 करोड़ रुपये खर्च किए गए।जवाब में आप ने पलटवार करते हुए कहा था कि बीजेपी इस मामले को उठाकर असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश कर रही है।मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों से पता चला है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास के “अतिरिक्त/परिवर्तन” पर 43.70 करोड़ रुपये की स्वीकृत राशि के मुकाबले कुल 44.78 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।दस्तावेजों के अनुसार, कुल खर्च में आंतरिक सजावट पर 11.30 करोड़ रुपये, पत्थर और संगमरमर के फर्श पर 6.02 करोड़ रुपये, आंतरिक परामर्श पर 1 करोड़ रुपये, विद्युत फिटिंग और उपकरणों पर 2.58 करोड़ रुपये, अग्निशमन प्रणाली पर 2.85 करोड़ रुपये शामिल हैं। अलमारी और सहायक उपकरण फिटिंग पर 1.41 करोड़ रुपये, और रसोई उपकरणों पर 1.1 करोड़ रुपये।इसमें दिखाया गया कि 9.99 करोड़ रुपये की स्वीकृत राशि में से 8.11 करोड़ रुपये की एक अलग राशि मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास पर उनके कैंप कार्यालय पर खर्च की गई।फिलहाल इस मामले में हुई सुनवाई के बीच कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।उम्मीद जताई जा रही है कि फैसला आने पर दिल्ली सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती है।
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