बॉम्बे लीक्स ,बिहार
बिहार में जाति गणना की मुश्किलें खत्म हो गई हैं। अब जनगणना होने में शक-संदेह की कोई गुंजाइश नहीं बची। पटना हाईकोर्ट ने अपने फैसले में जाति गणना जारी रखने की बात कही है। इससे पहले पटना हाईकोर्ट ने बिहार सरकार की जाति आधारित गणना पर अंतरिम रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया इसे जाति आधारित जनगणना बता कर अंतरिम रोक लगा दी थी। जाति गणना पर अंतरिम रोक के बाद राज्य सरकार ने पहले हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। फिर सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी। दोनों जगहों से सरकार को कोई राहत नहीं मिली।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट की दी तारीख के अंदर बिहार में जातीय जनगणना को लेकर उठ रहे सवालों पर सुनवाई कर ली। चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन व जस्टिस पार्थ सार्थी की खंडपीठ ने लगातार पांच दिनों तक (3 जुलाई से लेकर 7 जुलाई तक) याचिकाकर्ता और बिहार सरकार की दलीलें सुनीं। कोर्ट ने जाति आधारित जनगणना बताने वालों की भी पूरी दलील सुन ली और फिर सरकार के उस दावे का पक्ष भी सुना, जिसके अनुसार यह जाति आधारित सर्वे है। आज पटना हाईकोर्ट ने सीएम नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी है। कोर्ट ने इसे सर्वे की तरह कराने की मंजूरी दे दी है। जल्दी ही बिहार सरकार फिर से जातीय जन-जनगणना शुरू करवाएगी। हालांकि कोर्ट के इस फैसले से याचिकाकर्ता नाखुश हैं। उनका कहना है कि अब वह इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। इधर, हाईकोर्ट के आदेश के बाद बिहार सरकार ने फिर से जाति जनगणना शुरू कराने का एक आदेश जारी किया। इसमें लिखा है कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद सभी जिलों के डीएम को जाति आधारित गणना फिर से शुरू करने के दिशा-निर्देश दिया जाता है। दरअसल पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सारथी की खंडपीठ ने 3 से 7 जुलाई तक लगातार पांच दिनों तक इस मामले में दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज हाईकोर्ट ने जाति जनगणना कार्य से रोक हटाने का निर्णय सुना दिया। यानी अब बिहार में जातियों की गिनती का रास्ता साफ हो गया है। पहली नजर में यह नीतीश सरकार की बड़ी जीत मानी जा रही है। वैसे तो आरंभ में जब जाति गणना की बात उठी थी तो बीजेपी भी नीतीश के साथ थी। इसलिए कि तब नीतीश ने सिर्फ भाजपा सहयोगी बल्कि एनडीए में थे। तेजस्वी यादव के आग्रह पर नीतीश ने उनकी बात मानते हुए जाति गणना की शुरुआत 7 जनवरी से कराई थी।बता दें कि केंद्र सरकार ने बिहार सरकार की जातीय जनगणना का प्रस्ताव तकनीकी कारणों का हवाला देकर ठुकरा दिया था। बिहार के साथ कुछ और राज्यों ने भी इसकी मांग की थी। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर बताया था कि जाति आधारित विभिन्न तरह के ब्योरे जुटाने के लिए जनसंख्या जनगणना उपयुक्त साधन नहीं है। इसलिए जनगणना के माध्यम से जाति आधारित जनगणना कराना संभव नहीं है। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा था कि आगामी जनगणना में पिछड़े वर्ग के नागरिकों (बीसीसी) के बारे में जानकारी एकत्र करना संभव नहीं है। ओबीसी/ बीबीसी की गणना को हमेशा प्रशासनिक रूप से जटिल प्रक्रिया माना गया है। पिछड़े वर्ग की पहचान का स्टैंडर्ड सुनिश्चित करने में व्यावहारिक कठिनाइयां भी हैं। महाराष्ट्र सरकार द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में केंद्र ने हलफनामा दायर किया था।
Post View : 68758