बॉम्बे लीक्स ,मुंबई
मुंबई में 1993 में हुए सांप्रदायिक दंगों के मामले में एक विशेष कोर्ट से 46 साल के एक आरोपी को बड़ी राहत मिली है। मुंबई की विशेष कोर्ट ने आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। इस मामले में विशेष कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आरोपी इस मामले में भीड़ का हिस्सा या निर्दोष दर्शक भी हो सकता है।
गौरतलब है कि मुंबई की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ए.ए. कुलकर्णी ने चार मई को राजभर को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया है।बुधवार को विस्तृत आदेश उपलब्ध कराया गया। मामले में अधिकतर अन्य आरोपियों को पहले ही बरी किया जा चुका है।अभियोजन पक्ष के अनुसार, राजभर 30 साल पहले हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान लगभग 300 -400 लोगों की भीड़ में शामिल था, जिन्होंने एक-दूसरे पर पत्थर और कांच की बोतलें फेंकी थीं।अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष तीन गवाहों- दो पुलिसकर्मियों और एक पंच के साक्ष्य पर निर्भर रहा है।न्यायाधीश ने कहा कि तीनों की गवाही के अलावा, “अपराध में अभियुक्तों की संलिप्तता को इंगित करने” के लिए कुछ भी पेश नहीं किया गया और अभियुक्तों की पहचान करने के लिए कोई स्वतंत्र गवाह भी नहीं हैआरोपी शिवपूजन राजभर फरार था। 28 मार्च 2023 को उसे पकड़कर अदालत में पेश किया गया।पुलिस ने हत्या के प्रयास और गैरकानूनी सभा के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत राजभर और दर्जनों अन्य लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था।न्यायाधीश ने कहा, “यद्यपि तर्क के तौर पर यह माना जा सकता है कि वर्तमान आरोपी (राजभर) घटनास्थल पर मौजूद था, यह संभव हो सकता है कि वह एक निर्दोष तमाशबीन हो। रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह पता चले कि आरोपी ने गैरकानूनी सभा में सक्रिय रूप से भाग लिया था।राजभर समेत कई अन्य लोगों के खिलाफ पुलिस ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत हत्या के प्रयास और गैरकानूनी जमावड़े के लिए आरोपपत्र दायर किया था। मामले में सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एए कुलकर्णी ने चार मई को राजभर को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया था। मामले के अन्य आरोपियों में से अधिकांश को पहले ही बरी किया जा चुका है।बता दें कि अदालत में अभियोजन पक्ष ने दलील दी थी कि राजभर 30 साल पहले हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान करीब 300 से 400 लोगों की भीड़ में शामिल था, जो एक-दूसरे पर पत्थर और कांच की बोतलें फेंक रहे थे। वहीं पुलिस ने कहा था कि 1993 में हुए दंगों के दौरान भीड़ अनियंत्रित और आक्रामक थी तथा उसने घटनास्थल पर पुलिस कांस्टेबल की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया। उस समय भीड़ एक दूसरे पर आग और ट्यूबलाइट फेंक रही थी। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज का सहारा लिया था और हवा में फायरिंग भी की।
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