
याचिकाकर्ता रत्नारानी रॉय
शाहिद अंसारी
मुंबई: मुंबई हाईकोर्ट में रत्नारानी रॉय ने एक याचिका दाखिल करते हुए इस बात की मांग की है कि महाराष्ट्र सरकार में कार्यरत OSD गौतम चटर्जी की नियुक्ति गैर कानूनी है और इन्हें गलत तरीके से इस पद पर तैनात किया गया है।याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि राज्य सरकार ने 1 मई 2017 को (रियल स्टेट रेगुलेशन ऐंड डेव्लपमेंट ऐक्ट 2016 ) को लागू किया है इस पर भी सारे नियुमों का उल्लघन करते हुए गौतम चटर्जी को इसका एडिशनल चार्ज दिया गया है उन्हें इस पद से हटाया जाए।
राज्य सरकार के प्रिंस्पल सेक्रेटरी मुकेश खुल्लर ने 26 सितंबर 2016 को सामन्य प्रशासन विभाग (GAD) ने OSD की नियुक्ति के लिए जो सरकुलर जारी किया था उसमें यह आदेश जारी किया गया था कि मंत्रालय में OSD की पोस्ट पर ऐसे सारे अधिकारियों के पद को रद्द कर दिया गया है जो OSD की पोस्ट पर तैनात थे।
इसकी सब से बड़ी वजह यह थी कि इस पोस्ट पर जिन लोगों को नियुक्त किया गया था वह लोग सरकार के द्वारा बनाई गई गाइडलाइंस में फिट नहीं बैठते और उसकी वजह से सरकारी काम काज पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है।खुल्लर की ओर से जारी इस सरकुलर में इस बात का खुलासा हुआ कि OSD की पोस्ट पर ऐसे लोग नियुक्त किए गए हैं जो कि सीधे तरीके से सरकारी दाएरे में नहीं आते लेकिन उन्हें सरकारी दाएरे में लाने के लिए जो मंत्री हैं उनके पहचान और खासमखास होने की वजह से OSD की पोस्ट पर उन्हें नियुक्त कर के सरकारी तिजोरी से उनकी जेबें भरी जाती हैं यही नहीं उन्हें वेतन के साथ साथ सारी सरकारी सुवीधाऐं भी उन्हें मुहय्या कराई जाती हैं।

महाराष्ट्र सरकार के OSD गौतम चटर्जी
OSD गौतम चटर्जी पर पहले ही काफी गंभीर आरोप लगे हैं जिनको लेकर 19 सितंबर 2016 को एडोकेट अनिरबन रॉय ने सरकार और गवर्नर से इनके खिलाफ़ कार्रवाई करने की मांग की थी।रॉय के अनुसार OSD गौतम चटर्जी जब SRA हेड थे उस दौरान बड़े पैमाने पर बिल्डर से साठगांठ कर के बड़े पैमाने पर भ्रष्टाटार किया।
मामला है गोरेगावं में स्थित कन्यापाड़ा इलाके में एक प्राइवेट जमीन का जहां 700 झोपड़पट्टियां थीं यह बीएमसी का (SRD) प्रोजेक्ट था।1993 में प्रोजेक्ट को BMC ने प्लान सेंक्शन किया उसमें से 8 बिल्डिंग झोपड़ा रहिवासियों के लिए बनाई गई थी।और बेचने वाली बिल्डिंग में अर्पण दर्पण नाम की बिल्डिंग बन चुकी थी।यह कार्य 1998 तक पूरा किया गया जिसमें रहिवासियों के साथ साथ बेचने वाली बिल्डिंग के साथा साथ महाराजा टावर नाम की भी दो बिल्डिंगें बन चुकी थीं।
1998 में SRA ऐक्ट लागू किया गया और गौतम चटर्जी को बतौर CO यहां नियुक्त किया गया था।नियुक्ति के तुंरत बाद ही एक दिन के अदंर गौतम चटर्जी ने BMC के इस प्रोजेक्ट को रवी ग्रुप नाम के बिल्डर से मिलकर उसे गैर कानूनी तरीके से SRA में तब्दील कर दिया।इसके पीछे की वजह यह थी कि बीएमसी के प्रोजेक्ट में FSI ज़्यादा नहीं थी इसलिए इसे गैर कानूनी तरीके से SRA में तब्दील कर दिया गया।चूंकि बीएमसी में डेढ़ गुना FSI मिलती थी जबकि SRA में साढ़े तीन गुना FSI मिलती थी।BMC के डेव्लपमेंट में ज़मीन पर भी मालिकाना हक रहिवासियों का रहता है जबकि SRA में ज़मीन पर मालिकाना हक सरकार का हो जाता है।SRA में इस तरह के फाएदे को देख चटर्जी ने बिल्डर के साथ मिली भगत कर जमकर भ्रष्टाचार किया और दर्पण नाम की बिल्डिंग को लेकर पत्र लिखा कि इस नाम की बिंल्डिंग का अस्तित्व ही नहीं है।जबकि BMC ने 1998 में ही इसे बना कर रहिवासियों के सुपुर्द किया था और कई लोग इस में रहने के लिए भी आचुके थे।इसके पीछे की वजह यह थी कि अगर BMC के इस प्रोजेक्ट को SRA में तब्दील करना है तो रहिवासियों की इजाज़त की ज़रूरत पड़ती थी लेकिन चटर्जी ने दो हाथ आगे सोच कर बिल्डिंग के अस्तित्व से ही इंकार कर दिया क्योंकि जब बिल्डिंग ही नहीं तो रहिवासियों से इजाज़त का सवाल ही नहीं उठता।
हैरान कर देने वाली बात यह है कि BMC के द्वारा बनाई गई 8 बिल्डिंगें जो कि पहले ही बन चुकी थीं इस ज़मीन पर पिछले 18 सालो में SRA ने किसी तरह के झोपड़े वाली बिल्डिंग ही नहीं बनाई।जबकि झोपड़े की बिल्डिंगें छोड़कर दो बेचने वाली बिल्डिंग ऐसी हैं जिनको पहले बनाया गया और बनाने के बाद SRA ने उसको IOD दिया जिनके नाम अमिजर्ना और दिव्यस्तुति हैं।
BMC ने जो आठ सलम बिल्डिंगें बनाई थीं उनको बनाने से पहले वहां के रहिवासियों को सेल बिल्डिंग के पास मौजूद जगह में ट्रांजिट कैंप बना कर उसमें शिफ्ट कर दिया और जब यह 8 बिल्डिंग बन कर तय्यार हुई तो उसके बाद इस बिल्डिंग के रहिवासियों को ट्रांजिट कैंप से शिफ्ट करने के बजाए उसे बेच दिया।कलेक्टर के सर्वे के बाद पता चला कि इस बिल्डिंग में रहने वाले लोग यहां के है ही नहीं बल्कि इन्हें बिल्डर ने जिन लोगों को बेचा है वह लोग हैं।इस 8 बिल्डिंग में घरों की संख्या 800 के आसपास है और इनकी कीमत भारती बाजार में 400 करोड़ के आस पास पहुंचती है।हमने इन मामलों को लेकर गौतम चटर्जी का पक्ष जानने की कोशिश की लेकिन उन्होंने इस मामले को लेकर किसी भी तरह की बात करने से साफ इंकार किया है।
याचिकाकर्ता के वकील भावेश परमार ने कहा कि याचिकाकर्ता ने इस भ्रष्टाचार को लेकर कई विभागों के चक्कर काटे लेकिन ऊपर से नीचे तक भ्रष्ट अधिकारियों की भरमार होने की वजह से मामला टस से मस नहीं हुआ इसलिए उन्होंने करोड़ों रूपए के इस भ्रष्टाचार को आधार बना कर गौतम चटर्जी के खिलाफ़ कोर्ट में दस्तक दी है।अब लोगों की निगाहें राज्य के मुख्यमंत्री की पार्दर्शिता पर टिकी हुई हैं और यह सवाल कर रहे हैं कि क्या करोडों के घपले मे घिरे गौतम चटर्जी को वह पद मुक्त करेंगे या उन्हें (रियल स्टेट रेगुलेशन ऐंड डेव्लपमेंट ऐक्ट 2016 ) का मुख्या बनाऐँगे।
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