शाहिद अंसारी
मुंबई:रायगढ़ ज़िला के कर्जत इलाके में पत्थर पत्थर उत्खनन माफिया द्वारा अवैध खनन मामले में पत्थर माफिया और एसीबी के ज़रिए 800 करोड़ रूपए के घोटाले का मामला सामने आया है।रायगढ़ ज़िला के कर्जत इलाके में सिधुं समिधा स्टोन प्रा.ला.कंपनी के मालिक विनीत चिरमाडे के ज़रिए कर्जत के सावर गांव में 50000 ब्रास पत्थर का अवैध खनन किया गया।ऐसी जानकारी ज़िला खनन अधिकारी रोशन मेशराम ने दी है और इस अवैध उतखनन करने वाले पत्थर माफिया विनीत चिरमाडे के खिलाफ़ किसी तरह की कार्रवाई न की जाए ऐसा ऐंटी करप्शन ब्युरो के एक वरिष्ठ अधिकारी ने लिखित रूप से आदेश जारी कर दिया जिसकी कॉपी Bombay Leaks के पास मौजूद है।
सरकार के ज़रिए पत्थर के अवैध उत्खनन पर जो कार्रवाई का आर्थिक दंड का कानून बनाया है इस कानून के तहेत इस पर तकरीबन 800 करोड़ रूपए से भी ज्यादा का जुर्माना वसूल किया जाना है जिसे न देकर सिधुं समिधा स्टोन प्रा.लि ने राज्य सरकार को जमकर चूना लगाया है।इस चूना लगाने के पीछे ऐंटी करप्शन ब्युरो के वसूलीबाज़ अधिकारी सुनील कलगुटकर का हाथ है।खनन अधिकारी रोशन मेशराम ने जानकारी देते हुए बताया कि 800 करोड़ का घोटाला करने वाली कंपनी के खिलाफ़ किसी भी तरह की कार्रवाई न करने के लिए ऐंटी करप्शन ब्युरो के अधिकारी सुनील कलगुटकर ने पत्र लिख कर कार्रवाई न करने के लिए जमकर प्रेशर बनाया है।यही वजह है कि सिधुं समिधा स्टोन प्रा.लि.कंपनी के मालिक विनीत चिरमाडे ने अब तक कोर्ट का बहाना कर जुर्माने की रकम डकारने में कामयाबी हासिल की।आलम यह है कि अधिकारियों के बीच में ऐंटी करप्शन ब्युरो के इस अधिकारी की ज़बरदस्त दहशत है जिसकी वजह से पत्थर माफिया जमकर अवैध उत्खनन कर रहे हैं।

सुनील कलगुटकर और उसका भाई संदेश कलगुटकर
साल 2016 में रायगढ़ की कलेक्टर शीतल तेली उगले के आदेश के बाद तहसीलदार के जरिए पूरे ज़िले में जो सर्वे किया गया उसमें यह पाया गया कि 1999 से लेकर साल 2016 तक सिधुं समिधा स्टोन प्रा.लि.कंपनी ने 85000 ब्रास का पत्थर खनन किया है जबकि उसे इस दरमियान मात्र 35000 ब्रास की ही अनुमित दी गई थी।इस अवैध उत्खनन करने वाले पत्थर माफिया को सरकार के ज़रिए अवैध खनन के लिए बनाए गए कानून के अनुसार तकरीबन 800 करोड़ रूपए बतौर जुर्माना भरना है क्योंकि सरकार के ज़रिए बनाए गए कानून की नजर से देखा जाए तो जुरमाने की यह रकम अब 5 गुना ज्यादा वसूल की जाती है।दर असल पत्थर की इस अवैध उत्खनन के पीछे ऐंटी करप्शन ब्युरो का पूरा सहयोग है अवैध उत्खनन को लेकर सिधुं समिधा स्टोन प्रा.लि.कंपनी को साल 2013 में कर्जत के तहसीलदार युवराज बांगर ने अपने मंडल अधिकारी की रिपोर्ट के बाद 14 अक्तूबर 2013 को 8490 ब्रास अवैध पत्थर खनन को लेकर कार्रवाई का नोटिस जारी किया।जिसके बाद 17 अक्तूबर 2013 को सिधुं समिधा स्टोन प्रा.लि.कंपनी के मालिक विनीत चिरमाड़े ने 15 दिनों की मोहलत मांगी और फिर उसके बाद ऐंटी करप्शन ब्युरो की ऐंट्री होती है।
एसीबी और पत्थर माफिया की मिली भगत
कार्रवाई की नोटिस देने वाले तहसीलदार को 28 अक्तूबर 2013 को उनके पहचान वाले अशोक सावंत नाम के शख्स के ज़रिए दीवाली की मिठाई देने के बहाने फर्ज़ी ट्रैप लगाकर ऐंटी करप्शन ब्युरो ने रिश्वत के मामले में गिरफ्तार किया।इस दौरान रवींद्र बाविस्कर नाम के दूसरे तहसीलदार ने चिरमाड़े को फिर से नोटिस जारी कर इस अवैध खनन मामले में 2 कोरड़ 83 लाख रूपए का आर्थिक दंड (जुर्माना) भरने को कहा जिसके बाद चिरमाडे ने स्वीकार न करते हुए कर्जत के तत्कालीन एसडीएम राजेंद्र बोरकर के पास अपील की।
इस अपील के बाद ऐंटी करप्शन ब्युरो के रायगढ़ के वसूलीबाज़ डीवाई एसपी सुनील कलगुटकर ने एसडीएम राजेंद्र बोरकर को एक पत्र लिखा जिसमें चिरमाडे को बचाने के लिए और कार्रवाई न करने की बात कही गई।यह पत्र युवराज बांगर की चार्जशीट के साथ कोर्ट में नहीं दाखिल किया गया क्योंकि इस तरह के आदेश और अधिकार एसीबी को हैं ही नहीं।इस आदेश के बाद एसीबी के दबाव में आकर एसडीएम राजेंद्र बोरकर ने आर्थिक दंड भरने से रोक लगा कर सरकार को करोड़ों रूपए का चूना लगया।
अवैध उत्खनन पर कार्रवाई का प्रावधान
राज्य सरकार द्वारा 8 मार्च 2010 को राज्य के मुख्य सचिव जेपी डांगे द्वारा जारी किया गया आदेश जिसमें स्पष्ट लिखा हुआ है कि अवैध खनन मामले में आरोपी अगर अपील में जाता है तो उस से दंड (जुर्माना) का 50% रूपया पहले ही सरकारी खाते में जमां करवाया जाए।लेकिन इस मामले में एसीबी की दादागिरी की वजह से अब तक पत्थर माफिया नें एक रूपए भी नहीं जमां किए।
एसीबी अधिकारी कलगुटकर की दादागिरी
कलगुटकर ने चिरमाडे पर हुई अवैध खनन की कार्रवाई को लेकर उसे झूटा साबित करने के लिए मंडल अधिकारी विश्वास गड़दे द्वारा 24 सितंबर 2013 को खान में जा कर अवैध खनन का जो पंचनामा किया था(जिसके आधार पर चिरमाडे पर कार्रवाई की गई थी)उसे झूटा साबित करने के लिए उसने तहसील दार युवराज बागंर और विश्वास गड़दे के खिलाफ़ आठ महीने बाद आईपीसी सेक्शन (465,467,468,471,109) के तहेत पंचनामे और अवैध खनन को गैर कानूनी बताते हुए राज्य सरकार से इनके खिलाफ़ चार्जशीट दाखिल करने के लिए सेंकशन रिपोर्ट मांगी।लेकिन राज्य सरकार ने दोनों के ऊपर से लगी आईपीसी की धाराओं को लेकर ऐंटी करप्शन ब्युरो से सुबूत मांगा।ऐंटी करप्शन ब्युरो सुबूत देने मे नाकाम रही और इस पर तत्कालीन एसीबी के वरिष्ठ अधिकारी रजनीश शेठ ने तहसीलदार युवराज बांगर के खिलाफ़ आईपीसी की धाराओं को हटाने का आदेश दिया जबकि पंचनामा करने वाले अधिकारी विश्वास गड़दे के खिलाफ़ आईपीसी की धाराऐं बरकरार रखी गई।लेकिन सुबूत न होने की वजह से एसीबी आज तक विश्वास गड़दे के खिलाफ़ कोर्ट में चार्जशीट जमा करने में नाकाम रही।पंचनामा करने वाले अधिकारी विश्वास गड़दे की सर्वे रिपोर्ट पर ही कार्रवाई की गई थी।इस लिए कलगुटकर का प्लान था कि तहसीलदार को गिरफ्तार करने के बाद कलगुटकर के साथी पत्थर माफिया चिरमाडे के खिलाफ़ कार्रवाई रूक जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।इसलिए कलगुटकर इस बार निशाना सर्वे करने वाले अधिकारी गड़दे को 8 महीने बाद आरोपी बना दिया।और उनके ज़रिए किए गए पंच को झूटा साबित करने की कोशिश की।ताकि यह पंच झूटा साबित हुआ तो पत्थर माफिया के खिलाफ़ तहसीलदार नें जो कार्रवाई की वह रुक जाएगा।और करोड़ों का जुर्माना बरने से पत्थर माफिया चिरमाडे बच जाएगा।
झूटी साबित हुई पत्थर माफिया की दलील
ताज्जुब इस बात कि विनीत चिरमाडे ने खुद को बचाने के लिए अवैध खनन की बात झूटी बताई और एसीबी में इस बात की शिकायत की थी कि उस दौरान उसकी खान बंद थी।यह बात झूटी तब साबित हुई जब इस दौरान एसीबी ने खुद उसकी खान की लाइट बिल की जांच की जिसमें इस अवैध खुदाई के दौरान यानी अप्रेल 2013 से लेकर सितंबर 2013 तक इस्तेमाल की गई लाइट बिल 18 लाख रूपए थी।चिरमाडे ने अपनी शिकायत में कहा था कि इको सेंसेटिव रिपोर्ट को लेकर मंडल अधिकारी गड़दे ने उनका और उनके कर्मचारियों का सादे काग़ज़ पर दस्तखत लिया है।लेकिन इको सेंसेटिव की रिपोर्ट कार्रवाई से पहले ही भेजी जा चुकी थी और सब से खास बात यह कि चिरमाडे का इलाका इको सेंसेटिव ज़ोन मे आता ही नहीं। चिरमाडे पर इस से पहले अवैध खनन मामले में साल 2007 में 3495000 रूपए का आर्थिक दंड (जुर्माना)वसूली गया था क्योंकि उस दौरान चिरमाडे ने खान में जो ब्लास्टिंग की थी उसके बाद आस पास के 7 से 8 गावों में 400 से ज्यादा घरों में दराड़ें पैदा हुई थी और लोग घबरा गए थे।इस बात को लेकर महसूल विभाग ने कार्रवाई करते हुए उसका पत्थर खनन प्रमीशन रद्द कर दिया था।इस हादसे को लेकर विधान परिषद में एमएलए रमेश निकोसे ने आवाज़ उठाई थी।इस मामले में इसपर FIR भी दर्ज हो चुकी है।
करोड़ों के करप्शन में एसीबी अधिकारी शामिल
दर असल इस पूरे मामले में कार्रवाई की नोटिस के बाद जिस तरह उस अधिकारी को पर ACB ने ट्रैप लगाया उसके पीछे एक बहुत बड़ी सोची समझी साज़िश है और इसके पीछे रायगढ़ के तत्कालीन एसीबी अधिकारी सुनील कलगुटकर ने अहम भुमिका निभाई है।कलगुटकर के भाई संदेश कलगुटकर और विनीत चिरमाडे दोनों दोस्त हैं और दोनों का व्यवसाय भी पत्थर खनन का है।पहली बार जब तहसीलदार युवराज बांगर ने कार्रवाई की नोटिस जारी की तो उस दौरान कलगुटकर ने मामले में दखल दी और फिर फर्ज़ी ट्रैप लगाए।ताकि कार्रवाई करने वाला अधिकारी ही जेल जाएगा तो विनीत चिरमाडे के खिलाफ़ कौन कार्रवाई करेगा।और फिर उसके बाद खुद ही पत्र लिख कर कार्रवाई न करने का आदेश जारी कर दिया।जबकि कलगुटकर को ऐसी कोई पावर नहीं है कि किसी भी अवैध खनन माफिया पर कार्रवाई न करने के लिए ऐसा आदेश जारी करे।कलगुटकर ने एसीबी का चोला पहन रखा था और इस आंड़ से इस मामले में उसने ट्रैप लगाया और उसकी दहशत की वजह से अवैध खनन करने के मामले में विनीत चिरमाडे के ज़रिए अबतक 800 करोड़ की रकम वसूल करने में खनन अधिकारियों की हिम्मत नहीं हो रही कि वह वसूल कर सकें।क्योंकि कलगुटकर ने अवैध पत्थर खनन माफिया पर कार्रवाई ना करने के लिए जो अवैध पत्र सम्बंधित विभाग को लिखा है उसकी वजह से पूरे विभाग में कलगुटकर की दहशत है।अब सोचने वाली बात यह है कि 800 करोड़ रूपए की महाराष्ट्र सरकार को चपत लगाने वाले खनन माफिया विनीत चिरमाडे से कलगुटकर ने कितनी मलाई खाई है और किस हद तक यह डील कामयाब हुई है।कलगुटकर का इससे पहले रायगढ़ के पाटबंधारे विभाग के एक इंजीनियर से वसूली के मामले में और फर्ज़ी ट्रैप लगाने के मामले में तबादला किया था।हालांकि यह पैसे जो वसूले गए थे यह भी सरकारी पैसे थे जिसे कलगुटकर ने एक ठेकेदार से साठगांठ कर अंजाम दिया था।ठेकेदार और कलगुटकर के करीबी सम्बंध हैं।इस वारदात को खुद एसीबी ने अवैध करार दिया लेकिन आज तक एसीबी कलगुटकर के खिलाफ़ कार्रवाई करने से कांपती है।हम ने इस बारे में एसीबी प्रमुख सतीष माथुर से बात कर यह जानने की कोशिश की कलगुटकर और पत्थर खनन माफिया ने 800 करोड़ का जुर्माना न भर कर सरकार को जो चूना लगाया है और इस का ठेका कलगुटकर ने ले रखा था इस पर उसके खिलाफ़ किसी तरह की कार्रवाई की गई है या नहीं।कलगुटकर का नाम सुनते ही वह दहशत में आगए और उन्होंने फ़ोन काट दिया।माथुर के ज़रिए फोन काटने के पीछे की एक बड़ी वजह यह भी हो सकती है कि कलगुटकर के खिलाफ़ वसूली की जो शिकायतें आई हैं और उसके ज़रिए अवैध तरीके से झूटे केस में फंसाने के मामले जो बेनकाब हो चुके हैं उसे खुद एसीबी बचाने की कोशिश कर रही है क्योंकि संभव है कि एक ही हमाम में सब नंगे हों।
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