शाहिद अंसारी
मुंबई:7 मई 2016 को ऐंटी करप्शन ब्युरो ने रायगढ़ के डी.वाई एसपी सुनील कलगुटकर लगे आरोप सिद्ध होने के बाद का तबादला ऐंटी करप्शन ब्युरो मुख्यालय कर दिया और इस तबादले के बाद से ही एसीबी वाहवाही लूटने की फिराक में है ताज्जुब इस बात का कि एसीबी डीजी सतीष माथुर अभी भी मामले से बेखबर हैं।लेकिन यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या कलगुटकर जैसे वसूली जगत के बेताज बादशाह को क्या रायगढ़ से एसीबी मुख्यालय में तबादला करना यह सज़ा है या मज़ा।क्योंकि कलगुटकर के खिलाफ़ डिपार्टमेंटल जांच में यह सिद्ध हो गया है कि नई मुंबई के पटबंधारे विभाग के इंजीनियर सुभाष झगड़े के साथ ट्रैप का घिनावना खेल कर अपहरण कर उन्हें 6 घंटे सराकारी गेस्ट हाउस में बंदी बनाकर 34,87,407 लाख रूपए की वूसली की गई वह गैर कानूनी थी।और इसी आधार पर कलगुकर का तबादला रायगढ़ से वरली मुख्यालय हो गया।लेकिन ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि क्या वसूली करने वाले के लिए यही नियम है कि उसे विभाग से सस्पेंड करने के बजाए विभाग के ही मुख्यालय में लाकर उसे बचा लिया गया।बचाने की यह प्रक्रिया की शुरूआत कैसे हुई।
झगड़े के साथ वसूली की घटना 2 जून 2015 को हुई झगड़े ने इसकी शिकायत 6 जून को ऐंटी करप्शन ब्योर मुख्यालय वरली में की और वरली से यह शिकायत थाने ऐंटी करप्शन ब्योर को सौंपी गई।और इसपर सोने पे सोहागा यह कि इस जांच की ज़िम्मेदारी भी कलगुटकर को ही सौंपी गई थी।मतलब शिकायत कलगुटकर के खिलाफ़ थी और जांच भी कलगुटकर ही कर रही था।इस बात की जानकारी जैसे ही झगड़े को हुई झगड़े ने 2 और शिकायत की जिसके बाद जांच में थोड़ी गंभीरता आई।लेकिन कलगुटकर की ओर से लगातार झग़ड़े को धमकियां मिल रहीं थी।और एसीबी की तरफ़ से किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं हुई जिसके बाद शिकायतकर्ता ने 5 फरवरी 2016 को महाराष्ट्र ह्युमन राइट्स कमीशन की दहलीज़ पर दस्तक दी।
महाराष्ट्र ह्युमन राइट्स कमीशन ने जब एसीबी से मामले की रिपोर्ट मांगी तब एसीबी को मजबूरन इसकी रिपोर्ट महाराष्ट्र ह्युमन राइट्स कमीशन को सौंपनी पड़ी।इस रिपोर्ट के बाद एसीबी ने देखा कि अब महाराष्ट्र ह्युमन राइट्स कमीशन कोई गंभीर फैसला सुनाए उस से पहले ही कुछ ऐसा कर दिया जाए जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे।इसलिए कलगुटकर को बचाते हुए और खाना पुरी करने के लिए एसीबी ने उसे रायगढ़ से बुलाकर मुख्यालय में नियुक्त कर दिया।ताकि उसकी नौकरी सलामत रहे और वसूली का गोरख धंधा भी चलते रहे।
पूर्व आईपीएस अधिकीर वाईपी सिंह का कहना है कि ऐसे अधिकारी जिस पर विभागी जांच में यह साबित हो जाता है कि उसने पद का दुरउपयोग करते हुए गैर कानूनी गतिविधियों को अंजाम दिया है तो उसे निलंबित कर उसे नौकरी से निकाल देना चाहिए या तो उसके वेतन और प्रमोशन को रोक देना चाहिए इस तरह के तबादले को सज़ा का रूप नहीं दे सकते बल्कि यह एक प्रकार से उसे बचाने का तरीका होता है।एसीबी के ज़रिए कलगुटकर को बचाने के पीछे की वजह यह मानी जाती है कि खुद एसीबी के वरिष्ठ अधिकारियों का स्वार्थ है इसी लिए बैक डोर से उसे मदद की जारही है जबकि इसी एसीबी ने प्रवीण दिक्षित के समय में एसीबी मे मौजूद काली भेड़ों को बाहर का रास्ता दिखाया था।
इस से पहले पूर्व एसीबी प्रमुख प्रवीन दिक्षित की छानबीन में इस बात का पता चला था कि रिश्तखोरी और वसूली मामले में ताड़देव आरटीओ के कई बड़े अधिकारियों की गर्दन तक एसीबी के हाथ पहुँच चुके थे।लेकिन उन अधिकारीयों की और एसीबी अधिकारी एसएस गावस की सांठगाठ होने की वजह से उन पर कार्रवाई नहीं की बदले में उनसे मोटी रकम वसूली कर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।एसीबी ने पहले गावस को मुबई एसीबी से महाराष्ट्र एसीबी में तबादला किया और जाँच बिठाने का विचार बना लिया।लेकिन जाँच पूरी होने से पहले ही गावस ने एसीबी से खिसकने का मन बना लिया।गावस ने एसीबी में खुद को एसीबी से मुंबई पुलिस में जाने का आवेदन दिया ताकि उसपर कार्रवाई ना हो सके।इससे पहले की एसीबी की जाँच पूरी होती गावस ने खुद ही आवेदन कर खुद को एसीबी से अलग करने में ही अपनी भलाई समझी।हालाँकि ताड़देव में हुए इस ट्रैप को लेकर गावस और आरटीओ अधिकारीयों के बीच साठगांठ का राज़ राज़ नहीं रहा यह बातें जंगल ले आग की तरह फैल चुकी थीं।जिसे एसीबी ने गंभीरता से लेकर गावस को मुंबई पुलिस में वापस जाने का रास्ता दिखाया।गावस के मुबंई पुलिस में वापस आने के बाद भी एसीबी इस मामले की छानबीन कर रही है।
लेकिन अब हालात बदल चुके हैं प्रवीन दिक्षित के जाने बाद एसीबी में वसूली और सेटिंग का कारोबार फिर से पहले के जैसे शूरू होते हुए नज़र आरहा है।और कलगुटकर पर कार्रवाई ना होने के मतलब यह सिद्ध करता है कि अब एसीबी मे दिक्षित के ज़रिए जो मेहनत और सख्ती बरती गई थी वह खतम होगई।अब ऐसे में एसीबी का चोला पहन कर भ्रष्टाचार को खत्म करने के नाम पर एसीबी में मौजूद काली भेड़ें फिर से अपना गोरख धंधा चमकाने की फिराक में हैं।
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