
लोढा़ कंपनी के चेयरमैन ऐंड डायरेक्टर मंगल प्रभात लोढ़ा
शाहिद अंसारी
मुबंई:मुबंई हाई कोर्ट ने लोढ़ा बिल्डर के खिलाफ़ काला धन की हेरफेर करने के मामले में दाखिल की गई चायिका को खारिज कर दिया है अपने आदेश में हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता याचिका दाखिल करने के बाद सुनवाई के दौरान कोर्ट में सुनवाई के दौरान हाज़िर नही हुए इसलिए कोर्ट ने खारिज कर दी।
मामले की कानूनी लड़ाई लड़ने वाले एडोकेट भावेश परमार से जब इस बारे में बात चीत की गई तो उन्होंने कहा कि हमने इस मामले की सच्चाई कोर्ट के सामने रखी कि किस तरह से लोढ़ा बिल्डर के ज़रिए काले धन को सफेद करने का फंडा अपनाया जा रहा है और यह हमने इंकम टैक्स की रोपोर्ट के आधार पर कोर्ट में सच्चाई को बयान किया लेकिन जैसे ही इंकम टैक्स ने इस सच्चाई को लेकर कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया उसके बाद से ही याचिकाकर्ता गैर हाज़िर हो गए। याचिकाकर्ता को कई बार नोटिस भी जारी की गई लेकिन वह कोर्ट में नहीं आए जिसकी वजह से कोर्ट ने जनहित याचिका को खारिज कर दिया।
दर असल 10 जनवरी 2011 को लोढ़ा ग्रुप की ऑफिस में इंकम टैक्स द्वारा छापे मारी की गई थी।जिस कंपनी में छापे मारी की गई उसमें कार्रावाई के दाएरे में ग्रुप के मुख्य तीन डायरेक्टर शामिल थे इनमें ग्रुप के चेयरमैन ऐंड डायरेक्टर मंगल प्रभात लोढ़ा,ग्रुप एमडी अभिषेक लोढ़ा,अभिनंदन लोढ़ा डिप्टी एमडी के खिलाफ़ कार्रवाई का दाएरा सख्त किया गया था।
इंकम टैक्स को मिली शिकायत के मुताबिक इस कंपनी के पास कार पार्किंग सेल अनउकाउंटेंट थी,फ्लैट को बेचने के लिए ज़्यादा पैसे लिए गए उसका कोई रिकॉर्ड ही नहीं था,जो बड़ी लैंड बैकिंग ज़मीन की खरीदारी या इनवेसमेंट हुई उसकी कोई जानकारी नहीं थी,कंपनी के पैसों को इधर उधर घुमा कर हेरफेर की गई थी उसका भी कोई हिसाब किताब नहीं था यहां तक कि बिल्डिंग के कबाड़ का भी कोई रिकार्ड नहीं था।यह सारे फंड़े करोड़ों रूपए के टैक्स की चोरी के लिए इस्तेमाल किए गए थे।
इस शिकायत के बाद इंकम टैक्स विभाग ने सर्च ऑपरेशन शुरू किया जिसके बाद इंकम टैक्स ने 94,502,576 रूपए कैस और 52,355,668 की ज्वेलरी ज़ब्त कर कार्रवाई की।सर्च के दौरान इंकम टैक्स के हाथ पार्किंग की जो जगह इन्होंने बेची उसका कोई हिसाब किताब नहीं था और न ही उसके किसी तरह के कोई दस्तावेज़ थे।इसका मतलब है कि यह लेनदेन पैसों से लिए या वह चेक कंपनी के नाम से नहीं लिए गए बल्कि बेनामी नाम से ले कर दलाल के द्वारा कैश करवाए गए जबकि इस अनअकाउंटेंट पार्किंग को लेकर 107.80 करोड़ इन्होंने इंकम टैक्स में सटलमेंट के लिए जाहिर किया।

एडोकेट भावेश परमार
सब से खास बात तो यह है कि लीगल टैक्स चोरी करने के लिए जो तरीके लोढ़ा ग्रुप ने गैर कानूनी तरीके अपनाए थे वह खुल कर सामने आगए थे।इस जांच में कई सालों में तकरीबन 1000 करोड़ रूपए का लोधा ग्रुप ने इंकम टैक्स को चूना लगाया है।हैरान करदेने वाली बात यह है कि छापेमारी के दौरान जो रकम थी तकरीबन 200 करोड़ थी जबकि लोधा ग्रुप ने इसे सटलमेंट ट्रयुबनल में मात्र 78 करोड़ ही ज़ाहिर किया जबकि इंकम टैक्स डीपार्टमेंट के हिसाब करने का बाद तकरीबन 2000 करोड़ के आस पास बताया गया।
साल 2011 की इस छापेमारी के बाद साल 2013 में मुंबई हाई कोर्ट में जनहित याचिका फाइल की गई थी।याचिका दाखिल करने मे कई लोग थे लेकिन मामला जैसे ही अपनी चरमसीमा पर पहुंचा तो एक भी कोर्ट मे नहीं आया इस से यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि या तो इस मामले में याचिकाकर्ताओँ ने संबंधित ग्रुप से समझौता कर लिया है या तो संबंधित ग्रुप के दबाव में आकर कोर्ट का रुख करना ही छोड़ दिया है।एडोकेट भावेश प्रमार ने कहा कि इस मामले में अगर काले धन के लिए लड़ाई लड़नी है तो इंकम टैक्ट की छापेमारी के दौरान लोढ़ा ग्रुप का जो भ्रष्टाचार सामने आया है उसके लिए कोर्ट में फिर से जनहित याचिका दाखिल करनी होगी।तकि काला धन को सफ़ेद करने वाले लोढ़ा बिल्डर के खिलाफ़ सरकार ठोस कार्रवाई करे।
एक तरफ़ मोदी सरकार काले धन के विरुद्ध मुहिम चला रही है तो दूसरी तरफ़ उनकी ही पार्टी के नेता काले धन की कुबेरों की फहरिस्त में शामिल हैं।हालांकि यह कार्रवाई साल 2011 में उस वक्त हुई जब राज्य और केंद्र मे कांग्रेस सरकार थी।भले ही कोर्ट में जनहित याचिका खारिज कर दी गई लेकिन लोढ़ा ग्रुप के खिलाफ़ इनकम टैक्स ने कार्रवाई तो की है तो सरकार की चुप्पी कैसी।
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