शाहिद अंसारी
मुंबई:रेलवे के डब्बे में सुबह कल्ल्याण से सीएसटी के आने वाली लोकल ट्रेनों में 10 बजे से 12.30 तक और सीएसटी से कल्याण की तरफ़ जाने वाली लोकल ट्रेन में दोपहेर 2 बजे से लेकर 4.30 के लिए एक डब्बा रिज़र्व किया गया है उस दौरान अगर कोई यात्री उसमें गलती से या जान बूझ के चढ़ते हुए पाया जाता है तो उसके खिलाफ़ कार्रवाई की जाती है।लोकल ट्रेन के इस तरह से डब्बे डब्बा वालों के लिए रिजर्व करना यह अवैध बताते हुए आरटीआई कार्यकर्ता सपन श्रीवास्तव ने मुंबई हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की है।श्रीवास्तव के मुताबिक रेलवे की तरफ से इस तरह की स्वीधा डब्बा वालों को देने के लिए किसी तरह का कोई सरकारी कानून ही नहीं बनाया गया जिसकी वजह से किसी शख्स को अगर नहीं पता और वह गलती से इन में चढ़ गया तो उसके खिलाफ़ कार्रवाई की जाती है।पहली बात तो यह है कि रेलवे की ओर से लोकल ट्रेन का यह डब्बा डब्बा वालों के लिए रिज़र्व करने का जब कोई नियम कानून ही नहीं है तो लोगों पर जो कार्रवाई की जाती है वह खुद गैर कानूनी है।इस बात को देख श्रीवास्तव ने मुंबई हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर रेलवे,जीआरपी,और संबंधित न्यायालय जिसने इन सब पर कार्रवाई की है उनके खिलाफ़ कार्रवाई की मांग की है।
डब्बा वालों के लिए रेलवे की ओर से साल 2008 से यह स्वीधा मुहय्या कराई जा रही है जबकि साल 2007 में डब्बा वाला यूनियन की ओर से रेलवे को मात्र एक लेटर दिया गया था जिसके बाद रेलवे ने यह सुझाव दिया कि वह इस समय अपना डब्बा या सामान ला सकते हैं लेकिन इसे लागू नहीं किया जा सकता।बावजूद इसके रेलवे ने जिस समय के दौरान का सुझाव दिया उसी समय का बाकायदा डब्बे के बाहर बोर्ड लगा दिया गया।और उसके बाद इस दौरान कोई दूसरे यात्री इसमें दाखिल होते हैं तो उनसे जबरन दंड भरवाया जाने लगा यह सिसिला लंबे समय से चला आरहा है जबकि इसे डब्बा वालों के लिए रिज़र्व करने की मांग को खुद रेलवे ने खारिज किया।ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि आखिर डब्बे पर इस तरह के डब्बा वालो के लिए रेजर्व का बोर्ड किस ने लगाया और रेलवे इस डब्बे में आम यात्रियों के घुस जाने से दंड कैसे वसूल रही है।
मध्य रेलवे की ओर से साल 2012 से लेकर अक्तूबर 2015 तक 90000 हजार ऐसे लोगों के खिलाफ़ कार्रवाई की गई है जो इन डब्बों वालों के डब्बे में उस समय गलती से या जानबूझ के मौजूद पाए गए जो समय मात्र डब्बा वालों के लिए था जिसके बाद रेलवे नियम 155 के तहेत के इन पर कार्रवाई की गई है और अब तक इस तरह की कार्रवाई में रेलवे द्वारा 3 करोड़ से ज्यादा की बड़ी रकम वसूली जा चुकी है।श्रीवास्तव के मुताबिक जब इनके लिए किसी तरह का नियम कानून ही नहीं बनाया गया तो इस तरह कार्रवाई के नाम पर लोगों से रेलवे पैसे कैसे वसूल कर सकती है अपनी याचिका में श्रीवास्तव ने इस बात की मांग की है कि रेलवे अपनी गलती स्वीकार करे और जिन लोगों के खिलाफ कार्रावाई की है उन्हें बतौर हरजाना 5000 रूपए देकर डब्बा वालों के लिए रिज़र्व किए गए डब्बे को या तो नियामानुसार करे या उनमें चढ़ने वाले दूसरे यात्रियों पर किसी तरह की कार्रवाई न करे।
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