शाहिद अंसारी
मुंबई:महाराष्ट्र में खेल को लेकर एक बड़ा चौकाने वाला मामला सामने आया है जिसमें शहरी खिलाड़ियों को लेकर सरकारी नौकरियों में बड़ा भेदभाव देखा गया।सरकारी नौकरियों में मुंबई या महाराष्ट्र के दूसरे शहरों के खिलाड़ियों को वह प्राथमिकता नहीं दी गई है जो कि ग्राणीण क्षेत्रों के खिलाड़ियों दी गई है।महाराष्ट्र सरकार की ओर से जारी एक सरकुलर ने इन मामलों को बेनक़ाब किया है जो शहर के स्कूल के खिलाड़ियों से जुड़ा हुआ है।
21 जून 2006 को महाराष्ट्र सरकार की ओर से जारी पहले सरकुलर (नंबर 2002/प्र.क्र 68/क्रीयुसी) जिसमें यह कहा गया है कि भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर के स्कूल स्पोर्ट्स में पहली,दूसरी और तीसरे स्थान प्राप्त करने वाले खिलाड़ी छात्र और गोल्ड,सिलवर,कांस्य पदक विजेताओं को सरकारी नौकरियों में क्लास 3 और क्लास 4 में भर्ती होगी और इस भर्ती में इन्हें 5 % आरक्षण मिलेगा।
18 नवंबर 2006 को भारतीय खेल प्राधिकरण और भारती खेल शाला महासंघ के अंतर्गत आने वाले सरकुलर में पहले के सरकुलर मे फेर बदल किया गया और इस नए सरकुलर में जो बदलाव आया वह राज्य /राष्ट्रीय स्तर पर पहले दूसरे और तीसरे स्थान पर पदक प्राप्तकर्ताओं की राज्य सरकार केवल क्लास 3 और क्लास 4 के पद पर नियुक्त हो सकती है और इसमें भी पहले के जैसे 5% की आरक्षण स्वीधा दी गई है।इसके बाद एक और सरकुलर पारित किया गया 6 मई 2008 को इस सरकुलर में पूरी तरह फेर बदल कर शहरी लोगों की पीठ और पेट दोनों पर वार किया गया।यह आदेश चौंकाने वाला था इस आदेश में खेल से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने स्वार्थ के लिए ग्रामीण खिलाड़ियों को महत्व देकर शहरी खिलाड़ियों के साथ अन्याय कर उन्हें सरकारी नौकरी में क्लास 1 और 2 से दूर करदिया।
6 मई 2008 को जिसमें भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा आयोजित ग्रामीण और महिला खिलाड़ों को राज्य/राष्ट्री स्तर के खेलों में पहली,दूसरे और तीसरे स्थान प्राप्त करने वाले खिलाड़ी गोल्ड,सिलवर,कांस्य पदक खिलाड़ी विजेताओँ को महाराष्ट्र शासन द्वारा जारी क्लास 1 से लेकर क्लास 4 तक नौकरियों में नियुक्ति और 5% आरक्षण रखा गया।यहां पर शहर के जो स्कूल के खिलाड़ी हैं उनको क्लास 1 और 2 से हटा कर उनके साथ राजनीति खेली गई।राज्य सरकार की ओर से जारी इस सरकुलर का मतलब यह हुआ कि ग्रामीण इलाकों के खिलाड़ी का चयन हमेशा बेहतर पद के लिए होगा।जबकि शहर में खेलने वाले खिलाड़ी की नौकरी के लिए योग्यता मात्र क्लास 3 और 4 के लिए ही होगी क्योंकि फेर बदल किए गए इस सरकुलर के बाद उसे इसी स्तर की नौकरी मिलेगी।
शासन के आदेश का फर्क
6 मई 2008 का जो आदेश है उसमें भारतीय शाले खेल महासंघ द्वारा आयोजिस राज्य/राष्ट्रीय स्तर की स्पर्धा में ऊंचा स्थान और पदक प्राप्त (खिलाड़ी) हैं उनको सरकार ने ऊंचे ओहदे वाले पद क्लास 1 और 2 से वंचित रखा।जबकि भारतीय खेल प्राधिकरण और भारतीय शाले खेल महासंघ दोनों ही सरकारी संस्थाऐं हैं और दोनों स्कूल स्तर पर अलग अलग विभागों में अलग अलग स्पर्धा आयोजित करती हैं।
ग्रामीण खिलाड़ी शहरी स्पर्धा में भाग ले सकता है लेकिन शहरी खिलाड़ी केवल शहरी स्पर्धा में ही भाग लेने की वजह से उसको मुश्किल मुकाबला करना पड़ता है।ग्रामीण खिलाड़ियों के प्रोत्साहन के लिए काफी ज्यादा स्वीधीऐं सरकार ने दी गई हैं।जबकि शहरों में मौजूद स्कूल के खिलाड़ियों के साथ अन्याय किया गया है भारतीय शाला खेल महासंघ या अन्य शहरी स्पर्धा ग्रामीण स्पर्धा से अधिक मुशिकल होती है।उनकी कठिनाइयों का स्तर ग्रामीण से बहुत ही अधिक है।शहरी स्पर्धा में पदक प्राप्त शहरी खिलाड़ी (पुरुष/महिला)जिनके पास मांसिक और शरीरिक रूप से काबलियत अधिक होने के बावजूद भी वह शासन के उच्च स्तर के आरक्षण (क्लास 1 और 2) से वंचित रहेंगे।क्योंकि उन्हें इस नए सरकुलर की वजह से बांट दिया गया है और क्लास 1 और 2 की सरकारी नौकरियों से दूर कर दिया है।
6 मई 2008 आदेश के बुरे नतीजे
- सरकार के जीआर नियम और कानून का पालन करते हुए ही बनाया जाता है उसे अंदेखा नहीं किया जासकता लेकिन इस सरकुलर में उसका पालन ना करते हुए मनचाहा आदेश जारी किया गया जिसके कारण भारत के राज्य घटना के प्रस्तावना में दिए गए दर्जा (स्टेटस) और संधि (अपॉरचुनिटी) का उल्लघन हो रहा है।
- भारतीय शाले खेल संघ द्वारा आयोजित राज्य/राष्ट्रीय स्पर्धा में पदक प्राप्त खिलाड़ी राज्य शासन के उच्च स्तर क्लास 1 और 2 से वंचित रखा गया है इस आदेश के कारण भारतीय राज्य घटना के कलम 44 (कायदे के सामने ,सब समान) इस नियम का शर्तों का पालन नहीं किया जारहा है।
- यह शासन निर्णय पूर्व प्लानिंग और प्लानिंग के साथ भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा आयोजित ग्रामीण और महिला स्पर्धा में पदक प्राप्त खिलाड़ियों को क्लास 1 से 4 देने के मामले में कुछ ही खिलाड़ियों का फाएदा होजाए इस तरह की बातों को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
- आदेश में 2008 से लेकर अबतक लिया गया है यानी इससे पहले उन्हें फाएदा हुआ है मतलब भारतीय शाले खेल महासंघ द्वार आयोजित शहरी खिलाड़ी 8 साल से उच्च स्तर वाले पद से वंचित हैं।इसके कारण शहर के काबिल और होनहार ऐसे पुरष और महिला खिलाड़ियों में भेद भाव किया गया है।
- इस आदेश में कुछ लोगों को अपने स्वार्थ के लिए उनका फाएदा किया गया है और इससे शहरी खिलाड़ियों को नज़र अंदाज किया गया है जिनकी संख्या काफी ज़्यादा है।
- जो ग्रामीण महिला और पुरुष खिलाड़ी विद्यार्थी जो शहर के स्कूल में पढ़ते हैं और भारतीय खेल महासंघ द्वारा आयोजित / शहरी स्पर्धा में भाग लेते हैं और राज्य/राष्ट्रीय स्तर के खेलों में पदक प्राप्त करते हैं वह भी इस आदेश के बाद उच्च स्तर के पद से वंचित रहते हैं क्योंकि उनका खेल का क्षेत्र शहरी होगया भले ही उनका जन्म ग्रामीण इलाके मे हुआ हो।
- खेल की जो पॉलिसी है वह सबके लिए समान है लेकिन इस आदेश के बाद ग्रामीण और शहरी खिलाड़ियों के बीच भेदभाव किया गया है जबकि पहले ऐसा नहीं था।इस वजह से पढ़े लिखे बेरोजगारों की संख्या ग्रामीण की बनिस्बत शहरों में ज्यादा है लेकिन इस आदेश से शहरो में पढ़े लिखे खिलाड़ियों की संख्या बेरोजगारी में अधिक होती जारही है।
- स्कूल का जो खिलाड़ी है वह शहरी हो या ग्रामीण हो वह कौन सी श्रेणी के लिए खेल रहा है कौनसे स्पर्धा मे खेल रहा है वह किस ने आयोजित की है उस खेल से भविष्य मे क्या फाएदे हैं उसे इसके बारे में उसकी कम उम्र के कारण वह अंजाना रहता है।स्कूल के खिलाड़ी स्कूल स्तर के स्पर्धा में अपने जीवन के 8 से 9 साल खर्च करते हैं।लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं क्योंकि इस सरकुलर के बाद उन्हें क्लास 1 और 2 की नौकरियों से बाहर ही करदिया गया।
- स्पोर्ट्स टीचर अपनी समझ से खिलाड़ी का इस्तेमाल करते है मतलब उस छोटे बच्चे का भविष्य भी वही तय करते हैं।क्योंकि उस छात्र को इस आदेश के बारे में नहीं पता लेकिन उस टीचर को ज़रूर पता होता है।
- स्पोर्ट का जो प्रमाणपत्र है उसपर ‘ क्रिडा युवक सेवा संचालानालय द्वारा आयोजित स्पर्धा ‘ ऐसा उल्लेख है इसके कारण यह नहीं पता चल पाता कि वह भारतीय खेल प्राधिकरण या स्कूल शाले खेल महासंघ का है यह पता नहीं चलता और इसका फायदा अधिकारी और टीचर्स उठाते हैं एक तरह से यह उनके भविष्य से खिलवाड़ किया जाता है।
आदेश के बदलाव के फाएदे
जो आदेश आया है उसे दुरुस्त करके ग्रामीण की तरह जो शहर के स्कूल के खिलाड़ी हैं उनको भी सरकार उच्च स्तर की नौकरी क्लास 1 और 2 में नियुक्त किए जा सकते हैं इस तरह से शासन को सुधार लानी चाहिए। जिस तरह से भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा आयोजित ग्रामीण और महिला स्पर्धा मे राज्य/राष्ट्रीय स्तर पर पदक प्राप्त खिलाड़ी को राज्य सरकार के क्लास 1 से 4 तक 5% आरक्षण के साथ रखा गया है।उसी तरह से भारतीय शाले खेल महासंघ द्वारा आयोजित या अन्य शहरी स्कूल स्पर्धा में राज्य/राष्ट्रीय स्तर पर पदक प्राप्त शहरी खिलाड़ियों को राज्य सरकार क्लास 1 से 4 तक 5% आरक्षण के साथ रखा जाना चाहिए।ताज्जुब इस बात का कि इस सारे सरकुलर को राज्य सरकार के अपर सचिव सतीश जोँधले की तरफ से जारी किया गया है इस तरह के आदेस जारी करने के पीछे की वजह यह मानी जाती है कि खेल की इस अंधेरी दुनिया में वरिष्ठ अधिकारी ग्रामीण क्षेत्रों मे तौनात हैं इसलिए उनके बच्चों को ग्रामीण इलाके से खेल के मैदान मे उतारा जाता है और और इस तरह से इस आदेश का फाएदा सीधे सीधे उनको पहुंचता है।
इस सरकुलर में यदि पूरी तरह से ध्यान मे रखकर अगर इसमें बदलाव कर दिया गया तो यकीनन इसका फाएदा ग्रामीण और शहरी दोनों खिलाड़ी क्षात्रों को होगा जो शहर के छात्रों को पिछले 8 सालों से नहीं मिला यही नहीं इससे सरकारी नौकरियों में काबिल अफसरों की नियुक्ति होगी और शहरी खिलाड़ियों के लिए एक रास्ता खुल जाएग कि वह अपनी आगे की पढ़ाई कर सकते हैं जैसे कि सब इंस्पेक्टर डिप्टी कलेक्टर जैसे पद के लिए वह अपने आपको तय्यार कर अपनी जिंदगी का मकसद भी पूरा करेंगे।
स्कूल में स्पोर्ट्स के जो टीचर्स हैं वह उन शहरी काबिल और जहीन बच्चों का चयन करेंगे जिससे वह राज्य के उन स्थानों में नियुक्त किए जा सकते हैं जिससे वह पिछले 8 या 9 सालों से वंचित रहे और शहर के यही बच्चे दूसरे राज्यों में भी अपनी प्रतिभा के जौहर दिखाते हुए छा जाऐँगें और यही राज्य से निकल कर राष्ट्र स्तर पर महाराष्ट्र का नाम रोशन करेंगे।अगर 6 मई 2008 के इस स्वार्थी सरकुलर में सुधार किया गया तो शहर के ऐसे खिलाड़ी जिनका अबतक चयन नहीं किया गया उन्हें एक बेहतर फाएदा हो सकता है जो अधिकार उनकी पहुंच से बाहर था उन्हें इसके जरिए न्याय मिलेगा।लेकिन अपने फाएदे और अपने स्वार्थ के लिए तत्तकालीन अधिकारियों नें इस तरह का सरकुलर जारी कर ग्रामीण खिलाड़ी छात्रों को बढ़ावा देकर शहरी खिलाड़ियों की जिंदगी से खिलवाड़ कररहे हैं।इस बदलाव से सरकारी नौकरियों में सब को बराबर का मौक़ा मिलेगा इस से और पारदर्शी स्पर्धा बनकर राज्य को काबिल/उचित अधिकारी और कर्मचारी की भर्ती में मदद मिलेगी।
इस बारे में महाराष्ट्र राज्य स्कूल एजुकेशन एंड स्पोर्ट डिपार्टमेंट के प्रिंस्पल सेक्रेटरी नन्द कुमार के खेल विभाग के से जब बात की गई तो उन्होंने पिछले सरकुलर के लागू होने की बात सिरे से इंकार कर दिया।मामले की सच्चाई जानने के लिए जब हमने महाराष्ट्र सरकार की mpsc की वेबसाइट पर https://www.mpsc.gov.in/site/upload/pdf/General%20Instructions%20to%20Candidate%20.pdf पेज नंबर 14 पर देखा गया तो मई 2008 वाला यह आदेश अभी भी पारित किया गया है।इससे साफ समझ में आता है कि इस सरकुलर को अपने स्वार्थ के लिए धड़ल्ले से उपयोग कर शहरी खिलाड़ी छात्रों के साथ भेदभाव किया जारहा है।और इसके पीछे वह सारे अधिकारियों की मिलीभगत है जिन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में तानात किया गया है जिनके बच्चे ग्रामीण क्षेत्रों से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
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