शाहिद अंसारी
मुंबई: मुंबई के भाईखला जेल में महिला कैदी मंजुला शेट्टे की हत्या में शामिल जेलकर्मियों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।मामले में जांच कर रही मुबंई क्राइम ब्रांच की जांच को लेकर उस वक्त लोगों ने शक की निगाह से देखना शुरू कर दिया जब मंजुला शेट्टे के मामले में जेलकर्मियों को कोर्ट में पेश किया गया उस दौरान पीड़ित पक्ष के वकील ने कोर्ट में यह खुलासा करते हुए आरोप लगाया है कि क्राइम ब्रांच इस मामले में हत्या से जुड़े सुबूतों को मिटाने की कोशिश कर रही है ताकि हत्यारों को बचाया जा सके।इसी लिए क्राइम ब्रांच अब तक वह डंडा नहीं ढूंड सकी जिसे जेलकर्मी वसीमा शेख ने मंजुला शेट्टे के प्राइवेट पार्ट में दाखिल किया था और उसकी वजह मंजुला के प्राइवेट पार्ट से बल्डिंग शूरू हो गई थी।इस उत्पीड़ना के साथ साथ मंजुला को 6 जेलकर्मियों ने जानवरों के जैसे पीटा था और यही सारी वजहें मंजुला की हत्या का कारण बनी।हालांकि क्राइम ब्रांच ने मंजुला की वह साड़ी बरामद की जो मंजुला ने उस दिन पहनी हुई थी लेकिन जिस डंडे का इस्तेमाल मारपीट के लिए और गुप्तागं मे दाखिल करने के लिए किया गया है उसे क्राइम ब्रांच बरामद करने में अबतक असमर्थ रही।
मंजुला शेट्टे की हत्या के मामले में शुरू से ही जेल से लेकर नागपाड़ा पुलिस थाने का जो रवय्या रहा वह बहुत ही चौंका देने वाला था क्योंकि हत्या के बाद भी नागपाड़ा पुलिस ने मामले को दबाने की हर मुमकिन कोशिश की लेकिन सही समय पर Bombay Leask ने इस ख़बर को जनता तक पहुंचाया जिसके बाद नागपाड़ा पुलिस इस हत्या के रहस्य पर पर्दा डालने मे नाकाम साबित हुई और यह ख़बर जंगल की आग की तरह हर जगह फैल गई और मामले की गंभीरता को देखते हुए यह जांच मुबंई क्राइम ब्रांच को सौंपी गई।उसी दौरान जेल अधिकारी स्वाती साठे ने हत्या में शामिल 6 जेल कर्मियों को बचाने की गुहार सोशल साइट पर लगाई और इस ख़बर को भी Bombay Leask ने सब से पहले प्रकाशित किया जिसके बाद साठे को अपना नाम जांच से वापस लेना पड़ा हालांकि साठे का आचरण पहले से ही बेहतर नहीं रहा।
मंजुला के मामले में नागपाड़ा पुलिस,मुंबई क्राइम ब्रांच के ज़रिए सुबूत नष्ट करने की कोशिश और अबतक वह डंडा बरामद न करना यह बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर पुलिस वाले खुद पुलिस वालों के खिलाफ़ सही जांच कैसे करेंगे।इस बारे मे वरिष्ठ वकील आभा सिंह ने कहा कि यह बहुत ही हैरान कर देने वाली बात है कि जिन मामलों में पुलिस वाले आरोपियों की फहरिस्त में रहते हैं उसकी जांच आखिर पुलिस वालों को ही क्यों दी जाती है।इस तरह के संवेदनशील मामलों की जांच के लिए इसके लिए जांच स्टेट सीबीआई या सीआईडी को सौंपनी चाहिए ताकि जांच निष्पक्ष हो और कुसूरवार पुलिस वालों को सज़ा मिले।
Post View : 16