शाहिद अंसारी
मुंबई: धार्मिक भावना भड़कने के मामले में पत्रकारों पर मामला दर्ज करने के लिए मशहूर नागपाड़ा पुलिस थाने को एक बड़ा झटका लगा इस बार यह झटका मुंबई के किला कोर्ट से लगा।मुबंई के किला कोर्ट ने नागपाड़ा पुलिस थाने के ज़रिए दाखिल की गई एक अर्ज़ी जिसमें उन्होंने उर्दू अख़बार सीरत का लाएसेंस रद्द करने की अर्ज़ी दी थी लेकिन कोर्ट ने उस अर्ज़ी को ही रद्द कर दिया जिसके बाद नागपाड़ा पुलिस थाने की चारों तरफ़ थू थू हो रही है।
तीन साल तक चलने वाली इस सुनवाई में कोर्ट ने नागपाड़ा पुलिस को आड़े हाथ लेते हुए सवाल किया कि पुलिस के ज़रिए किसी अख़बार का लाएसेंस कैंसल कराने का प्रावधान किस पीआरबी ऐक्ट के तहेत आता है नागपाड़ा पुलिस इस सवाल का जवाब देने के बजाए कह रही थी कि इस अख़बार के ख़बर लिखने से लॉ ऐंड ऑर्डर की समस्या पैदा होती है और आज़द मैदान दगों के आरोपी तथाकथित स्वयं घोषित धर्मधुरंधर श्री मुईन अशरफ़ उर्फ़ बाबा बंगाली के भक्तों की भावना भड़क जाती है।
एडोकेट क़ैसर रज़ा नक़वी ने बताया कि कोर्ट ने सवाल किया कि क्या नागपाड़ा पुलिस थाने में मात्र एक ही FIR है या और भी जिसके जवाब में नागपाड़ा पुलिस थाने ने बताया कि उनके पुलिस थाने में अख़बार के एडिटर के खिलाफ़ धार्मिक भावना को आहत करने का एक मामला दर्ज है और बाकी के दूसरे पुलिस थाने मे हैं।इस बात को देख कोर्ट ने पूछा कितने मामले में कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई नागपाड़ा पुलिस के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था इसलिए उन्होंने यह कहकर अपना दामन बचाने की कोशिश की कि मामले में फाइल मंत्रालय में भेजी लेकिन मंत्रालय में आग लग जाने की वजह से अब तक चार्जशीट नहीं दाखिल की गई।
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने नागपाड़ा पुलिस को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि आप अपने पुलिस थाने के ज़िम्मेदार हैं या पूरे महाराष्ट्र के और अगर पूरे महाराष्ट्र का लॉ ऐंड ऑर्ड़र का मसला है तो इस मामले में डीजी महाराष्ट्र को आवेदन देना चाहिए था।कोर्ट में नागपाड़ा पुलिस बिना सरकारी वकील के ही पहुंची थी जिसके बाद कोर्ट ने सरकारी वकील को तलब किया तकरीबन डेढ़ घंटे तक कोर्ट ने सरकारी वकील को पीआरबी ऐक्ट की किताब थमा दी लेकिन डेढ़ घंटे तक किसी तरह का कोई कानून उनके हाथ नहीं लगा जिसको लेकर वह कोई ऐसा सुबूत बता पाते जिसकी वजह से अखबार के लाएसेंस रद्द किया जा सके।पुलिस के ज़रिए इस तरह के जवाब को देख कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए नागपाड़ा पुलिस थाने की अर्ज़ी ही खारिज कर दी।नक़वी ने कहा कि हम जल्द ही मानहानि का दावा ठोकने वाले हैं।
मामला है साल 2014 का है जब उर्दू अख़बार सीरत ने आज़द मैदान दगों के आरोपी तथाकथित स्वयं घोषित धर्मधुरंधर भूमाफिया श्री मुईन अशरफ़ उर्फ़ बाबा बंगाली के बहनोई डा. सय्यद मनाज़िर हसन जिस पर यूपी में रेप केस दर्ज हुआ था उसकी ख़बर प्रकाशित की थी।जबकि इस खबर को यूपी और महाराष्ट्र के कई अखबारों ने प्रकाशित की थी लेकिन नागपाड़ा पुलिस थाने ने बाबा बंगाली के इशारे पर केवल सीरत अख़बार के एडिटर के खिलाफ़ धार्मिक भावना को आहत करने का मामला दर्ज कर लिया और नागपाड़ा पुलिस मामला दर्ज करने के बाद से ही सीरत उर्दू के एडिटर मुईनउद्दीन शेख के पीछे हाथ धो कर पड़ गई उस दौरान उनके दो बेटों की शादी थी और पुलिस ने परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
एडिटर मुईनउद्दीन शेख ने गिरफ्तारी पूर्व जमानत के लिए मुबंई सेशन कोर्ट में अर्ज़ी दी सेशन कोर्ट ने अग्रिम जमानत दे दी और मुंबई हाईकोर्ट की जस्टिस मृदुला भाटकर ने उन्हें ज़मानत पर रेहा कर दिया।इसके बाद नागपाड़ा पुलिस ने बाबा बंगाली को फिर से खुश करने की एक और नाकाम कोशिश की और सीरत अखबार का लाएसेंस रद्द कराने के लिए कोर्ट को अर्ज़ी दे दी।लेकिन तीन साल तक चलने वाले इस मामले में पुलिस की दलील कोर्ट में टिक न सकी और कोर्ट ने कल खारिज कर दिया।इस तरह से नागपाड़ा पुलिस को और बाबा बंगाली दोनों को फिर एक बार नाकामी हाथ लगी।
एडिटर मुईनउद्दीन शेख ने बात करते हुए कहा कि मैंने सच लिखा और सच लिखने पर बंगाली बाबा ने और नागपाड़ा पुलिस थाने ने ज़ुल्म के पहाड़ तोड़े लेकिन इसके बाद भी सीरत सदा सच लिखते रहेगा और बेबाकी से लिखते रहेगा और समाज और कौम के पाखंडियों और मोलवियों को जो कि कौम की ठेकेदारी करते हुए अपनी दुकानदारी चला रहे हैं उन्हें बेनाकाब करते रहूंगा।
अजमेरी ने दर असल बाबा बंगाली के उस घिनावने चेहरे को बेनक़ाब किया था जो कि समाज में रह कर समाज की ठेकेदारी के नाम पर गोरखधंधा की दुकान चमकाए बैठा था और सीरत अखबार की खबरों के बाद बंगाली बाबा का दुकानदारी और बंद होते नज़र आ रही थी और जनता के बीच में बंगाली बाबा के पाखंड और माफिया कनेक्शन बेनाकाब हो चुका था।इसलिए पहले तो उन्होंने सीरत के एडिटर के खिलाफ़ धार्मिक भावना को आहत करन का झूटा मामला दर्ज कराया और फिर उनके अख़बार को बंद करने की कोशिश की लेकिन वह कामयाब न हो सके।अब ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि अब नागपाड़ा पुलिस पत्रकारों पर ऐसा कौनसा पैंतरा अपनाती हैं कि सच्चाई लिखने वाले पत्रकारों की कलम तोड़ी जा सके।
कोर्ट ऑर्डर की कॉपी
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