शाहिद अंसारी
मुंबई:मुंबई महानगरपालिका चुनाव की घोषणा के बाद से कांग्रेस के निज़ाम में बड़ा गड़बड़ और दोगला पन दिखाई देने लगा इसी बात को देख छुटभय्ये नेता इधर उधर की खाक छानने मे जुट गए हैं तो कई अपने गॉड फादर के तलवे चाटने में लग गए हैं हालांकि कांग्रेस में कई बीकू मात्रे ऐसे हैं जो अपने अपने गुर्गों या चमचों को टिकट देने के लिए बिल्डरों से रकम वसूल कर गॉड फादर की झोली में डालने को तय्यार हैं।अभी यह मामला चल ही रहा है कि कांग्रेस में अदुंरूनी घमासान बढ़ गया।अचानक अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष निजामुद्दीन राईन ने पद के साथ-साथ पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है।इस संबंध से उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी को अवगत करा दिया है।उन्होंने किसी अन्य पार्टी में जाने से इनकार किया है।राईन ने बताया कि वे राजनीति से दूर रहकर आराम करना चाहते है।राईन पिछले 32 साल से कांग्रेस से जुड़े हुए थे। राईन के इस्तीफा देने से कयास लगाया जा रहा है कि मुंबई कांग्रेस अल्पसंख्यक से कुछ और मुस्लिम नेता पार्टी छोड़ सकते हैं।राईन ने ऐसे समय इस्तीफा दिया है जब मुस्लिमों में हैदराबाद के ओवैसी की पार्टी जड़ जमा रही है। माना जा रहा है कि राईन के इस्तीफे से मुस्लिम समाज में गलत संदेश जाएगा जिसका खामियाजा पार्टी को आगामी महानगरपालिका के चुनाव में भुगतान पड़ सकता है।
दरअसल मामले की पीछे की असल वजह यह मानी जाती है कि वार्ड नंबर 213 से निजामुद्दीन राईन के बेटे नुमान राईन को मुंबई के नागपाड़ा इलाके से टिकिट चाहिए हालांकि इस इलाके से मिलिंद देवरा के करीबी रिज़वान खान रेस में हैं क्योंकि इस इलाके से मौजूदा नगर सेवक उनकी पत्नी शाहिना रिज़वान खान हैं जो कि प्रभाग समिति की चेयरमैन भी हैं जिन्होंने इसी इलाके से 1997 में भी चुनाव लड़ा तब बाकियों का वजूद ही नहीं था ।जबकि अमीन पटेल अपने करीबी नगर सेवक जावेद जुनेजा की फिराक में है जबकि कांग्रेस से ही मौलाना सिराज और मुबीन अंसारी भी रेस में हैं।
निज़ामुद्दी राईन का घर उसी इलाके में है इसलिए राईन ने बेटे को टिकट दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया लेकिन संजय निरुपम के आगे दाल न गली।इसलिए निजामुद्दीन राईन ने यह दिमाग चलाया कि अगर इस्तीफा दे दूंगा तो शायद पार्टी के आला ओहदेदारान मनाने आऐंगे लेकिन आलम यह रहा कि कांग्रेस के किसी भी छुटभय्या नेता के अलावा किसी ने भी राईन को घास तक नहीं डाली इससे साबित होता है कि 32 सालों में निजामुद्दीन राईन के ज़रिए भले ही वफादारी की गई हो लेकिन सच में कांग्रेस का निज़ाम पूरी तरह से बिगड़ चुका है और दोगला हो चुका है।इसी लिए मजबूरन निजामुद्दीन राईन ने इस्तीफा देकर अपनी नीलाम होती इज़्ज़त बचाने की कोशिश की क्योंकि निरुपम के आगे दाल नहीं गल रही इसलिए जनता से जली कटी सुनने से पहले ही इस दोगलेपन की राजनीति से खुद को अलग कर लिया। वैसे भी कांग्रेस पार्टी में किसी के जाने से पार्टी को फर्क नहीं पड़ता यह मिसाल मुंबई में गुरूदास कामत की नौटंकी के समय में लोगों ने देख लिया इधर निजामुद्दीन राईन के इस्तीफ़े के बाद उस पद के दावदारों की संख्या बढ़ने लगी है जिस पर रहकर निजामुद्दीन राईन ने अपनी वफादारी का सुबूत दिया है।
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