एक ओर तो प्रदेश के युवा एवं ऊर्जावान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस प्रदेश को डिजिटल युग में ले जाने कीतैयारी में लगेहैं, भ्रष्टाचार मिटानेकटिबद्ध हैं, दूसरीओर आदिवासीयों का एक वर्ग उनके भ्रष्टाचार विरूद्ध उनके अभियान को विफल करने का षडयंत्र रच रहा है। शासन-प्रशासन में अपनी जड़ें जमा चुका भ्रष्टाचार भले ही भारत की आजादी के साथ उपजा है। इसका प्रमाण है स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रमाण पत्र का बड़े पैमाने पर चल रहे फर्जीवाड़े पर रोक नहीं लगाया जाना और बार-बार मुख्यमंत्री के आदेश के बाद भी भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा पात्र सेनानियों को भांति-भांति के नियमों का हवाला देकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पेंशन से वंचित रखा जाना और उसकी सुनवाई से भी इंकार कर देना, जबकि बड़ी संख्यामेंअपात्र स्वतंत्रतासंग्रामसेनानियोंकोपेंशन सिर्फ इसलिए दी जा रही है क्योंकि उन्होंने इसके लिए अधिकारियों का मुंह पैसे से बंद करने में जरा भी देर नहीं की और जिन्होंने नियमों से चलने या राष्ट्रहित का हवाला दिया, उन्हें खुलेआम धता बताते हुए कहा गया कि प्रशासनिक व्यवस्था में कोई भी काम बगैर पैसे के संभव नहीं है। ऐसा ही एक मामला ‘सेंट्रल आब्जर्वर’ ने उजागर किया है जिसमें गोवा मुक्ति संग्राम में भाग लेने वाले वामनराव राघोबाजी गाणार को पेंशन देने से इसलिए इनकार कर दिया गया और वह भी तब, जबकि स्वयं मुख्यमंत्रीदेवेंद्रफडणवीस ने उनके नाम की सिफारिश की थी क्योंकि वह इसके लिए दस हजार रुपये की रिश्वत देने को तैयार नहीं हुए। हालांकि, श्री गाणार अधिकारियों के चक्कर काटने के बाद थक चुके हैं, लेकिन उन्होंने अभी भी हार नहीं मानी है और ‘सेंट्रल आब्जर्वर’ ने भी प्रण लिया है कि उन्हें इंसाफ मिलने तक हम भी हार नहीं मानेंगे। क्या न्यायप्रिय मुख्यमंत्रीसुनरहेहैं? क्यावहसमस्यापर ध्यानदेंगे?क्यावहभ्रष्टाचार पर लगामकसनेकेलिएकदमउठाएंगे, यापात्र स्वतंत्रतासंग्रामसेनानियोंकोउन्हींकेहालपर छोडक़र उसी तरह इतिश्री कर लेंगे, जैसा कि उन्य नेता करते आए हैं?क्या वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आजादी में योगदान का मूल्य समझेंगे और आने वाली पीढ़ी को भी समझाने के लिए उदाहरण पेश करेंगे? जितना हम देवेंद्र फडणवीस को एक संघर्षशील कारपोरेटर, एक जनप्रिय विधायक और एक विकासोन्मुखी एवं न्यायप्रिय मुख्यमंत्रीके रूपमेंजानतेहैं, उससेआशातोहैकिवहगोवामुक्तिसंग्राममेंभागलेनेवालेवामनरावराघोबाजीगाणार कीसमस्याकानिदानकरेंगे, और यदिवहइसमेंअसफलरहतेहैंतोछविकेविपरीत चलने वाली बात भी लंबे समय तक छुपी नहीं रह पाएगी, आज नहीं तो जनता की अदालत में उन्हें जवाब देना ही होगा कि क्यों आज सिर्फ जनता ही मुसीबतें झेले और शासन की सुविधाओं की बात आने पर उसे ठेंगा दिखा दिया जाए?
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
गृह मंत्रालय की सूचना के अनुसार महाराष्ट्र में कुल 17,581 लोग स्वतंत्रता सेनानियों को दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं। मुख्यमंत्रीदेवेंद्रफडणवीसइसओर भीध्यानदेंकिअबयदिएकजिलेमें 60सेअधिकलोगबोगस स्वतंत्रतासेनानीहैंतोपूरेराज्यमेंकितने होंगे?, अनुमान लगाना मुश्किल भी नहीं है।
69 वर्ष की आजादी 73-75 वर्ष के स्वतंत्रता सेनानी लूट जारी है…
आज 56,000 से अधिक स्वतंत्रता संग्राम पेंशनभोक्ता फर्जी, शहीदों के कफन को नोच-नोच कर खा रहे हैं ये फर्जी पेंशनभोक्ता, हर वर्ष करोड़ों रुपये लूटने में लगे हुए हैं। हाल ही में नागपुर के सामाजिक कार्यकर्ता उमेश चौबे ने इस संबंध में आवाज उठाने के साथ ही दावा किया कि स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर मिलने वाली पेंशन योजना की राशि को दबा कर लूटा जा रहा है और पिछले चार वर्षों में ही यह राशि तकरीबन 480 करोड़ से अधिक पहुंच गई है। श्री चौबे ने ‘सेंट्रल आब्जर्वर’ को बताया कि भारत सरकार की स्वतंत्रता संग्राम पेंशन योजना में उल्लिखित नामों में 30 से अधिक प्रतिशत लोगों का नाम या तो फर्जी है या अपनी उल्लेखित उम्र के कारण शक के दायरे में आते हैं। दुर्भाग्य यह है कि मामले को भारत सरकार अथवा गृह मंत्रालय अथवा राज्य सरकारों की ओर से गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है और ना ही जांच कराए जाने के बाद कोई एक्शन लिया जा रहा है।
हाल ही में जब नागपुर जिले के स्वतंत्रता सेनानियों की लिस्ट मांगी गई तो विविध आंदोलनों में भाग लेने के रूप में 686 लोगों के स्वतंत्रता सेनानियों को दी जाने वाली सुविधाओं का लाभ उठाए जाने की सूचना प्राप्त हुई। इसमें से 183 लोग केंद्र सरकार से पेंशन ले रहे हैं जिसमें 61 लोग अकेले नागपुर जिले से गोवा आंदोलन के हैं। यह एक दिन का आंदोलन था जिसमें श्री गाणार शामिल हुए थे। अब केंद्र सरकार का सर्कुलर है कि जो 6 माह जेल में रहेंगे, उन्हें ही पेंशन मिलेगी, लेकिन गोवा सत्याग्रह तो एक दिन का ही था। मतलब मंत्रालय में बैठे बाबुओं ने 20-20 हजार रुपये लेकर जो आया, उसे पेंशन मंजूर कर दी, जो कभी आंदोलन में न तो शामिल हुए और न ही उम्र के हिसाब से फिट बैठते हैं, तब इनकी जांच क्यों नहीं की जानी चाहिए।
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