• क्या पूरा होगा कांग्रेस का धरातल से शिखर का सपना- पीके में दिखी कांग्रेस में पार होने की संजीवनी।
नई दिल्ली : राजनीति में मोदी के आगे चारो खाने चित्त हुई काँग्रेस ने सियासत में वापसी की संजीवनी तालाश ली है। लंबे दौर से चल रही उठापटक के बीच बीजेपी को फर्श से अर्श पर लाने वाले देश की सियासत के रणनीतिज्ञ पीके की सलाह के बाद राहुल और प्रियंका ने पीके को ओके कर दिया है। कांग्रेस को फिर से धरातल से उबारने के पीछे कई राजनीतिक दिग्गज़ों का समावेश है। ऐसा तब हुआ जब पीके के सामने मोदी को मात देने के लिए तीसरे मोर्चे को लेकर समीकरण बनने लगे थे।
पीके ने कांग्रेस को किनारे कर तीसरे मोर्चा बनाने की कवायद में जुटे दिग्गज़ों को साफ सन्देश दे दिया।कि बिना कांग्रेस के क्षेत्रिय पार्टियों का समूह मोदी का मुकाबला नही कर सकता।यही वजह है कि जिस गति के साथ तीसरे मोर्चे के गठन की सुगबुगाहट को चिंगारी आग बनकर फैली थी।ठीक कही उससे अधिक त्रीवता की गति से अब ठंडे बस्ते में पहुँच चुकी है।
बात पीके को किये गए कांग्रेस की ओके पर चल रही है। यह वही पीके है जिन्होंने साल 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की नैया पार कराने का संकल्प लिया था। अखिलेश राहुल की जोड़ी के सहारे “यूपी के भइया’ की तर्ज पर सत्ता में वापसी का ख़ाका तैयार किया था।
ऐसे में पीके के यूपी कैंपन से सब कुछ खो चुकी कांग्रेस का पीके को ओके करने के पीछे भी एक लंबी रणनीति है। साल 2014 के सत्ता परिवर्तन के बाद कई चीज़ों को लेकर वोटर सरकार से नाराज़ है। लेकिन उनके सामने विकल्प के तौर पर सिर्फ मोदी ही है।विपक्ष के पास मोदी को मात देने के लिए कोई चेहरा नही। महाराष्ट्र में तीन मत भेदों वाले दल मिलकर महाविकास अघाड़ी सरकार चला रहे है।शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी की सरकार में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे है।हालांकि शिवसेना सांसद संजय राऊत के कटाक्ष बयानों के चलते कई बार सरकार गिरने की सुगबुगाहटें जोर पकड़ती रही। वहीं शिवसेना नेता संजय राऊत अक्सर मज़बूत विपक्ष की कवायद में सहयोगियों का निशाना बनते है।
लेकिन राजनीतिक के धुरंदर शरद पवार के रहते तीन पहियों पर चल रही महाराष्ट्र की सत्ता को बीजेपी डिगा पाने में असमर्थ रही।हालांकि कहा यह भी जाता है कि महाराष्ट्र सरकार का रिमोट कंट्रोल पवार के हाथों है। पवार और ठाकरे परिवार का पुराना पुश्तैनी संबंध रहा है। विपक्ष की मजबूती को लेकर शिवसेना ने यूपीए की कमान शरद पवार को सौंपने के बयान पर कांग्रेस सेना पर हमलावर हो गई थी।बयानबाज़ी के दौरों के बीच एक बार फिर से महाराष्ट्र की सरकार डगमगाने लगी थी।हालांकि रिमोट पवार के हाथों में है।अब बात है कांग्रेस से पीके को ओके करने की। इस गणित के पीछे भी पवार की चाणक्य सोच है।
पीके के लिए कांग्रेस को तैयार करने के पीछे एक नहीं कई चेहरे है।इसका श्रेय शरद पवार उद्धव ठाकरे और पंजाब से कैप्टन अमरिंदर को जाता है।इसकी रूप रेखा पवार के नेतृत्व में कांग्रेस के वरिष्ठम नेताव में से एक कैप्टन अमरिंदर के साथ मिलकर रची गई।विपक्ष को मजबूत करने के लिए कांग्रेस की मजबूती जरूरी है।ऐसे में अब साथ आये है वो लोग जो एनडीए में है या फिर कांग्रेस को साथ लेकर चल रहे है।
ऐसे में बड़ा सवाल कि क्या प्रशांत किशोर (पीके) की काबलियत पर राहुल प्रियंका ने एक बार फिर से भरोसा जताया है।ऐसे में अहम सवाल कि क्या राहुल गांधी के अंदर पीके को मोदी को मात देने के लक्षण नज़र आने लगे है।यहां पर सवाल खड़ा होता है कि पीके की रणनीति क्या होगी।कयास लगाए जा रहे है कि कांग्रेस के अंदर मोदी के सामने पेश करने के लिए कोई चेहरा तो नही।ऐसे में कांग्रेस सत्ता परिवर्तन तो चाहती है लेकिन मोदी के सामने वोटरों के लिए विकल्प दे पाना उंसके लिए मुश्किल होगा।
वहीं ठाकरे परिवार पवार को नकार नही सकता।तो क्या विकल्प के तौर पर कांग्रेस पवार के बरसों पुराने सपने को पूरा करेगी।
अब रही बात कांग्रेस की मजबूती के बीड़ा उठाने वाले पीके की तो पीके न सिर्फ कांग्रेस को बेहतर करने का टारगेट लेकर चल रहे है बल्कि समूचे विपक्ष को पवार के नेतृत्व में यूपीए की छतरी में भी संजोयेंगे।
पीके को साल 2012 के गुजरात चुनाव के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की ताक़त के तौर पर जाना जाता है। पीके की बनाई हुई रणनीति के चलते ही मोदी शाह ने कांग्रेस के पतन की बुनियाद खोद डाली थी।इसके बाद पीके का बीजेपी से और बीजेपी का पीके से मोह भंग हो गया।पीके ने राजनीति में।किस्मत आजमाई और साल 2015 में नीतीश कुमार की जेडीयू को गले लगा लिया।पीके ने जेडीयू में रहकर रणनीति बनाते हुए नीतीश, लालू और कांग्रेस को एक मंच पर लाकर नीतीश की सत्ता में वापसी कराई।
इस दौरान प्रशांत किशोर उर्फ पीके ने बिहार में जेडीयू के साथ मिलकर सियासत में रहकर नीतीश के बाद एक ताकतवर नेता बनकर उभरे।नीतीश समेत उनके समर्थको को यह बात नागवार गुजरने लगी। संभव था कि दशकों से नीतीश को।अपना नेता मानने वाले पीके को कैसे अपनाते।बिहार में पीके के खिलाफ उठे शोर के बाद अब उनका अगला ठिकाना दिल्ली हुआ। जहाँ से साल 2017 में पीके ने उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के लिए कैम्पन किया। लेकिन अखिलेश राहुल की जोड़ी “यूपी के भईया’ मोदी को डिगा नही सके।हालांकि उसी साल मोदी के गुजरात ।मॉडल के दुर्ग की बुनियाद हिलाने में पीके की मेहनत जरूर रंग लाई।यहां पीके की रणनीति के चलते कांग्रेस ने बीजेपी चने चबवा दिए थे।
पीके तलाशने का काम जारी रहा। साल 2021 में बंगाल चुनाव में पीके को कोलकाता से निमंत्रण मिला। इस दौरान टीएमसी की सत्ता वापसी की सभी ज़िम्मेदारी ममता ने पीके पर छोड़ दी। जिसके बाद पीके के कई कदम को ममता ने खामोश रहकर स्वीकारा।पीके ने बंगाल में जो बोला वह कर दिखाया।पीके की रणनीति के आगे मोदी मंत्रिमंडल का साम दाम दंड भेद ध्वस्त हो गया। अब पीके ने ममता को सत्ता में वापसी के बाद सन्यास का एलान कर दिया।लेकिन अपनी छाप को बरकरार रखा कि पीके एक दमदार रणनीतिकार है।
यह पीके की ही रणनीति थी कि बंगाल फतह के बाद ममता मोदी के विकल्प के रूप में नज़र आई। राष्ट्र में राजनीतिक विकल्प होना जरूरी है।ऐसे में पीके का महाराष्ट्र का दौरा हुआ। मंथन के बाद पीके ने राजधानी दिल्ली का रुख किया।
अब चुनावी चाणक्य के रूप में पीके एक बार फिर से दिल्ली में है।इस बार राजनीति के चाणक्य पीके का मुकाबला बीजेपी के चाणक्य अमित शाह और उनके गुरु मोदी से है।
कहा जाए तो पीके की रणनीति की धार कोई मामूली नही होती। लेकिन इस बार का दावँ एक सवाल है। क्योंकि पीके पवार की मुलाकात के कयास के तौर पर पवार को मोदी का विकल्प माना जा रहा था। वहीं मोदी और पवार की मुलाकात ने सियासत में हलचल पैदा कर दी थी कि महाराष्ट्र में फडणवीस की सत्ता में वापसी के साथ पवार परिवार का केंद्र में मज़बूत होना।
देखा जाए तो पवार की पार्टी के बड़े दिग्गज 100 करोड़ के कांड में जांच एजेंसियों का सामना कर रहे है।तो क्या पवार मोदी का विकल्प बनेंगे।जरूरत के मुताबिक पीके की रणनीति में साम दाम दंड भेद का इस्तेमाल भी होता है।ऐसे में सोचा जाए तो पीके का यह पड़ाव उनकी अपनी सोच है या फिर किसी की सोच पर ओके है।क्योंकि दो ताकतें जब मिलती है तो सफलता की संभावनाएं प्रबल हो जाया करती है।लेकिन जब कमज़ोर लोगों को रणनीति में शामिल किया जाता है तो हर सफलता संदिग्ध नज़र आती है।
मतलब इस बार पीके उस कांग्रेस के साथ खड़े हुए है।जिस कांग्रेस का मकसद पार्टी नही बल्कि राहुल गांधी को मजबूत करना है।राहुल को देखा जाए तो वह सच बोलने वाला निडर व्यक्ति है।राहुल सच और निडर व्यक्ति को ही खुद और पार्टी के साथ देखना भी पंसद करते है।राहुल बनाम।मोदी को परिभाषित किया जाए तो राहुल में कई गुण है जो माफी में नही है। राहुल को एक अच्छे प्राइवेट शिक्षक के तौर समझा जा सकता है।जबकि मोदी को एक सरकारी ठेकेदार। राहुल में कई खूबियां है।राहुल मुद्दों पर बात करना पसंद करते है।कमियों को पकड़ना जानते है।राहुल आने वाले को देखते है। राहुल ऐसा कोई रिस्क लेने वाले व्यक्ति नही जिसका अंदेशा नुकसान से लगाया जा सके।तो वही मोदी में राहुल की तुलना में कुछ कमियां है लेकिन दिखती नही।मोदी में कमियां छिपाने की कला है। मोदी झूठ को भी सच बनाने में माहिर है।मोदी रिस्क लेने वाले व्यक्ति है।लेकिन इसके बाद भी क्या देश का वोटर मोदी और राहुल की तुलना में मोदी के विकल्प के रूप में राहुल को देखेगा।
फिलहाल पतन की ओर सिमटती कांग्रेस को संजीवनी देने की हामी भरने वाले रणनीतिकार पीके के लिए उनकी अब तक कि सबसे बड़ी चुनौती होगी। हालांकि 2024 से पहले 2022 का यूपी रण भी पीके को पार करना होगा।वही यूपी चुनाव के मद्देनजर एक्शन में आई प्रियंका कांग्रेस के लिए माहौल बनाने लगी है। इसी रण के साथ पीके के सामने पंजाब विधानसभा का मैदान भी होगा।जहां सीएम अमरिंदर और सिद्धू का विवाद भी पीके की रणनीति की एक परीक्षा में रहेगा। फिलहाल पीके की रणनीति को मिले ओके के सामने उत्तर प्रदेश और पंजाब का सेमीफाइनल होगा।
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