मुबंई:सुनील पारस्कर प्रकरण में आखिर ऐसा क्या हुआ जो रेप की शिकायत को कोर्ट ने खारिज कर दिया।दर असल किसी भी केस या किसी भी बयान में पीडिता की शिनाख्त से कहीं ज्यादा उसकी उम्र को अहमियत दी जाती है अगर पीडिता नाबालिग है तो आरोपी पर पोस्को ऐक्ट के तहेत कार्रवाई होती है। पारस्कर केस में पीडिता माडल ने अपनी उम्र 26 साल बताई थी।लेकिन BOMBAY LEAKS की छानबीन मे इस बात का खुलासा हुआ कि पीडिता ने अपनी उम्र गलत बताई थी।और केवल एक जगह नहीं बल्कि हर जगह पीडिता ने अपनी उम्र की जो जानकारी दी वह पूरी तरह से गलत थी।पीडिता के पास्पोर्ट और ड्राइविंग लाएसेंस जिसे मुंबई क्राइम ब्रांच ने सत्यापित कर कोर्ट में पेश किया है उसमें और FIR में लिखी गई उम्र में 13 साल का फर्क है।
24/07/2014 को मुबंई के मालवानी पुलिस थाने में दर्ज FIR संख्या 328/2014 जिसमें पीडिता की उम्र मुबंई पुलिस ने 26 साल बताई है पीडिता की मेड़िकल रिपोर्ट में भी इसी 26 साल का जिक्र किया गया।लेकिन कोर्ट मे फाइल किए गए एफीडेविट में पीडिता की उम्र 27 साल बताई गई है।उससे भी चौंका देने वाली बात यह की पीडिता के पास्पोर्ट संख्या G5607756 जिस पर मुबंई क्राइम ब्रांच ने खरी नकल या फोटो कापी का ठप्पा मारा है उसमें पीडिता माडल की जन्मतिथि 15/03/1976 बताई गई है इस पास्पोर्ट के हिसाब से पीडिता की उम्र तकरीबन 39 साल है।जबकि क्रार्इम ब्रांच के जरिए ही कोर्ट में जमां किए गए पीडिता माडल के ड्राइविंग लाएसेंस जिस पर जन्मतिथि 27/08/1982 है।इस हिसाब से पीडिता की उम्र 33 साल है।
अब ऐसे मे सवाल यह उठता है कि पीडिता की सही उम्र क्या है क्या पीडिता ने जो बताया है वह है या पीडिता के पास्पोर्ट पर जो दर्ज है वह या पीडिता के ड्राइविंग लाएसेंस पर है वह है।लेकिन सोचने वाली बात यह है कि क्या बयान दर्ज करते समय क्राइम ब्रांच ने अपनी आँखें बंद की थी जिन्होंने बिना उम्र का सुबूत देखे 26 साल लिख दिया।जबकि वहीं पुलिस कोर्ट में उम्र से संबंधित पीडिता के हर वह दजस्तावेज जमां करती है जिसमें पीडिता की उम्र अलग अलग बताई गई है।अब ऐसे मे यह फैसला करना मुश्किल हो रहा है कि पीडिता की सही उम्र क्या है क्या जो पास्पोर्ट पर लिखी गई है वह है या ड्राइविंग लाएसेंस पर है वह है या जो कोर्ट में पीडिता की दाखिल एफीडेविट में है वह है या पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज की वह है या पीडिता ने मेडिकल के दौरान दर्ज कराई वह है।
एडोकेट रामेश्वरम गिते ने कहा कि ऐसे रेप के मामले अकसर झूटे होते हैं मामले को पुलिस कितना भी संगीन बताए लेकिन मामले की सच्चाई से पर्दा कोर्ट मे उठ जाता है।इस मामले में अगर पीडिता ने अपनी उम्र गलत बताई है और बावजूद इसके पुलिस ने वह सारे दस्तावेज कोर्ट में दाखिल किए जिससे पीडिता की सही उम्र का पता चलता है तो यह खुद पुलिस की तरफ से जानबूझ के किसी ओरोपी के खिलाफ केस मजबूत बनाने की कोशिश होती है।ऐसे में अगर केस कोर्ट से खारिज होजाता है तो आरोपी को पूरा अधिकार है कि वह इसके लिए मुआवजे की मांग कर पीडिता के जरिए उम्र की गलत जानकारी देने और पीडिता के दस्तावेजों पर अलग अलग जन्म तिथि होने को लेकर उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई के लिए पुलिस को अवगत कराये।इसके साथ साथ पुलिस के उन अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए जो कि बिना जांच के ही पीडिता के बोलने पर मन चाही उम्र लिख कर कोर्ट मे दस्तावेज जमा करते हैं।ऐसे में यह फैसला करना मुश्किल होगया है कि क्या सुनील पारस्कर को लेकर मुंबई पुलिस ने जो FIR दर्ज की है उसमें गलती हुई है या केस को मजबूत करने के लिए जानबूझ कर पीडिता की असल उम्र छुपाई गई है।
Post View : 26