शाहिद अंसारी
मुंबई: अपनी पावर और ओहदे के दम पर तत्कालीन नेहरूनगर पुलिस थाने के सीनियर पीआई धनंजय भास्कर बागायतकर को गैरकानूनी सज़ा देने के मामले में MAT ने मुंबई पुलिस के ज्वाइंट सीपी लॉ ऐंड ऑर्डर देवेन भारती के ज़रिए दी गई सज़ा को खारिज करते हुए उनके ऊपर ही 5000 रूपए का जुर्माना ठोंक दिया है।रिटाएर्ड एसीपी धनंजय भास्कर बागायतकर ने बात करते हुए कहा कि अगर मैं विभाग मे होता तो शायद मेरे लिए यह लड़ाई आसान न होती लेकिन विभाग में न होने की वजह से मैंने अपनी लड़ाई जारी रखी और जीत मेरे हक में हुई।देवेन भारती ने कोर्ट में ऐसाा हलफ़नामा दाखिल किया जिसमें यह लिखा है कि MAT के 31 मार्च के आदेश से यह तो नहीं साबित होता कि बागायतकर निर्दोष हैं और सभी आरोपों से मुक्त हैं इसलिए MAT ने मेरे सज़ा देने के अधिकारों को लेकर दखल अंदाज़ी की है।इस पर कोर्ट ने लिखा है कि इतने बड़े अधिकारी के द्वारा इस तरह की भाषा का उपयोग हलफनामे में करना यह उचित नहीं है।
मुंबई पुलिस ने नेहरू नगर पुलिस थाने में रिश्वत खोरी के मामले में साल 2013 में 36 पुलिस वालों को तत्कालीन राज्य के गृह मंत्री आर आर पाटिल के आदेश के बाद सस्पेंड किया था।एक घर के अवैध निर्माण के दौरान मुंबई के कुर्ला इलाके में नेहरू नगर पुलिस थाने के पुलिस कर्मियों ने जमकर रिश्वत तलब की थी जिसके बाद तत्कालीन सीनियर पीआई धनंजय भास्कर बागायतकर समेत 36 पुलिस कर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया था।हालांकि सीनियर पीआई के खिलाफ रिश्वत खोरी को लेकर किसी तरह के कोई सुबूत नहीं थे।सीनियर पीआई को सस्पेंड किए जाने के बाद उन्हों ने MAT में गुहार लगाई जहां MAT ने 4 महीनों के अंदर ही सीनियर पीआई के ऊपर लगे आरोपों का निपटारा करने कि लिए मुबंई पुलिस को आदेश जारी किया।क्योंकि सीनियर पीआई के ऊपर जो इल्जाम था वह रिश्वत खोरी का नहीं था।उन पर यह आरोप था कि उनका पुलिस वालों पर कंट्रोल नहीं है जिसकी वजह से वह रिश्वत खोरी करते कैमरे में कैद हुए।MAT के 4 महीने दिए जाने के बाद जब मामले का निपटारा नहीं हुआ तो उन्होंने ने कोर्ट से तत्कालीन मुंबई सीपी राकेश मारिया की शिकायत की जिसके बाद कोर्ट के आदेश के बाद उनकी मुंबई पुलिस में दोबारा एंट्री हुई और यह मामला चलता रहा।
1 जूलाई 2015 को मुबंई पुलिस के ज्वाइंट सीपी ला ऐंड आर्डर देवेन भारती के जरिए पूरे मामले में जो चार्जशीट दाखिल की गई उसमें उन पर रिश्वत खोरी का आरोप नहीं बल्कि उसमें यह कहा गया कि उनका उनके स्टाफ पर निंयत्रण नहीं है जिसकी सजा यह है कि उनके एक साल का इंक्रिमेंट का जो पैसा है वह उनके वेतन से काटा जाएगा और यह तब तक काटा जाएगा जबतक वह रियाएर नही होंगे।इस आदेश के बाद उनका एसीपी प्रमोशन इस लिए रुक गया कि उनकी सर्विस शीट पर यह लिख दिया गया कि जब तक वह रिटाएर नहीं होंगे तब तक उनके वेतन से एक साल का इंक्रिमेंट की राशि काटी जाएगी और यही वजह है कि उनका एसीपी का प्रमोशन नहीं हुआ।हालांकि इस मामले में मुंबई ऐंटी करप्शन ब्युरो ने FIR दर्ज की लेकिन उस FIR में उनका नाम नहीं था।
सबसे चौंका देने वाली बात यह है कि बागायतकर को अपने पुलिस कर्मियों पर नियंत्रण ना रख पाने की जो सजा सुनाई है उस सजा का कोई प्रावधान महाराष्ट्र पुलिस ऐक्ट में है ही नहीं।जिसको देख उन्होंने इस मामले को फिर MAT में चुनौती देने का फैसला किया है।क्योंकि राज्य के किसी भी पुलिस अधिकारी को ऐसे फैसले सुनाने का कोई अधिकार नहीं जो मुंबई पुलिस या महाराष्ट्र पुलिस की किसी भी किताब या किसी भी कानून में नहीं है या जिस का कोई आधार ही ना हो।
हालांकि यह बात हर पुलिस अधिकारी को पता होती है कि रिश्वत लेना और देना दोनों जुर्म है बावजूद इसके पुलिस कर्मी अगर रिश्वत लेते हुए पकडे जात हैं तो इसका यह मतलब नहीं होता कि उनके विभाग के उनके वरिष्ठ अधिकारी उसके लिए उनपर नियंत्रण नहीं रख पाते और इस बात को आधार बना कर उनके खिलाफ ऐसे फैसले विभाग सुनाए जो कानून की किसी किताब में है ही नहीं।तत्कालीन नेहरू नगर सीनियर पीआई धनंजय भास्कर बागायतकर ने BOMBAY LEAKS से बात करते हुए कहा कि मैंने किसी भी अधिकारी को रिश्वत लेने की इजाजत नहीं अगर किसी ने रिश्वत ली तो यह उसकी जवाबदही है जिस पुलिस कर्मी ने रिश्वत ली उसकी वीडियो रिकार्डिंग के आधार पर उसके खिलाफ कार्रवाई की गई है उनके खिलाफ ACB ने भी शिकायत दर्ज की गई थी। बागायतकर ने अपने ऊपर हुई विभागी कार्रवाई को गलत बताते हुए कहा कि दर असल उनके साथ यह कार्रवाई यानी जब तक वह रिटाएर ना हों तब तक उनके वेतन से पैसे काटने का मतलब यह है कि जबतक वह रिटाएर नहीं होंगे उन पर यह दाग लगा रहेगा और इस दौरान उनका एसीपी का प्रमोशन था जो कि इस तरह की सजा सुनाने की वजह से वह प्रमोशन रुक गया।हालांकि इस बारे में उस समय ज्वाइंट सीपी एल ऐंड ओ देवेन भारती ने कहा था कि धनंजय भास्कर बागायतकर के खिलाफ जो कार्रवाई की गई है वह वेतन ऐक्ट के अनुसार की गई है।
इससे पहले इस तरह की डिपार्टमेंटल सजा उत्तर प्रदेश पुलिस में तैनात इंस्पेक्टर विजय सिंह के खिलाफ सुनाई गई थी जिसमें किसी आरोपी को कोर्ट से जमानत मिल गई। उसके बाद विभागी अधिकारियों ने इस बात को आधार बनाया कि 90 दिन के अंदर उस आरोपी की चार्जशीट इस अधिकारी की ओर से कोर्ट में जमां ना होने की वजह से ही आरोपी को जमानत मिल गई।90 दिन के अंदर मामले की चार्जशीट जमां ना करने की सजा उस अधिकारी को इस रूप मे दी गई की उसे साल में जो इंटिग्रीटी सर्टिफिकेट मिलता है उससे वंचित रखा जाए।हालांकि पुलिस विभाग में इस तरह की सज़ा का प्रावाधान उत्तर प्रदेश पुलिस ऐक्ट में नहीं है जिसके बाद कई जगहों पर इंस्पेक्टर विजय सिंह ने इसके खिलाफ आवाज उठाई लेकिन हर जगह नाकामी हाथ लगी आखिरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया। इंस्पेक्टर विजय सिंह के ऊपर पुलिस विभाग के जरिए की गई कार्रवाई को सुप्रीम कोर्ट ने गलत बताते हुए कहा कि जो सजा पनिश्मेंट रूल के तहेत है ही नहीं या जिसका कोई जिक्र और आधार नहीं उन सजाओं को पुलिस विभाग किसी अधिकारी पर कैसे थोप सकता है ?
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