Bombay Leaks Desk
मुंबई:वक़्फ की ज़मीन को बचाने को लेकर मुईन अशरफ़ उर्फ बंगाली बाबा ने जिस तरह से बांगदार दावे किए उसके पीछे की राजनीति क्या है इससे जनता को वाकिफ़ कराना बेहद ज़रूरी है।Bombay Leaks ने शूरु से ही अंजुमन इस्लाम की जगह पर मुईन अशरफ़ के क़ब्ज़े को लेकर समय समय पर खुलासे किए उसी दिशा में आज फिर एक बार बड़ी बेबाकी से बंगाली बाबा की छुपी हुई मंशा को बेनकाब करेगा। Bombay Leaks आपको फिर से उन जगहों को लेकर आवगत कराएगा जिनपर अवैध क़ब्ज़ा कर करोड़ों रूपए के खेल खेलने की तय्यारी थी लेकिन समय रहते Bombay Leaks ने आवगत कराया और नतीजा यह हुआ कि बाबा बंगाली के पंटरों द्वारा झूटा मामला दर्ज करवा दिया गया।
फिलहाल बंगाली बाबा राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्रे फडनविस के नाम का उपयोग कर लोगों को कहते फिरते हैं कि उन्होंने उनकी सहायता की तो पहले इस रहस्य से पर्दा उठाना ज़रूरी है।3 जनवरी को बंगाली बाबा मुख्यमंत्री से मिलने पहुंचे और फोटो फंडे का इस्तेमाल करते हुए फोटो खिंचवाते उससे पहले मुख्यमंत्री ने उनसे अंजुमन की जगह को लेकर कोई बात ही नहीं की और न ही उनके साथ फोटो खिंचवाई।चूंकि मुख्यमंत्री बंगाली बाबा को पहचानते नहीं इसलिए वहां पहुंचने के लिए वसीले के तौर पर अशीश शेलार और हैदर आज़म का इस्तेमाल किया गया।लेकिन इसके बाद भी मुख्यमंत्री ने इन्हें घास नहीं डाली क्योंकि बंगाली बाबा की काली करतूतों का खुलासा हो चुका था इससे पहले जब बंगाली बाबा ने पत्रकार शाहिद अंसारी पर झूटा मामला दर्ज करवाया था तो उसी दौरान पत्रकारों ने बंगाली बाबा की काली करतूतें से मुख्यमंत्री को आवगत कराया था और इस बार गुप्तचर विभाग ने मुख्यमंत्री को बाबा बंगाली की करतूतों से आवगत करा दिया इसी लिए बंगाली बाबा का फोटो वाला फंडा कामयाब नहीं हो पाया।क्योंकि एक बार अगर फोटो खिचवा लेते तो हमेशा के लिए पुलिस पब्लिक और बिल्डर सब पर उस फोटो के दम पर धौंस जमाते क्योंकि हर एक को पता है कि राज्य के मुख्यमंत्री इन्हें पहचानते भी नहीं हैं और खुद मुख्यमंत्री ने भी यह बात बोली है।
बंगाली बाबा अब हर एक को यह कहते फिर रहे हैं कि मुख्यमंत्री ने उनकी बहुत सहायता की है और अंजुमन की जिस जगह पर उनका क़ब्ज़ा है अब वह जगह उनका ही रहेगी क्योंकि मुख्यमंत्री ने उनका साथ दिया।यह बात बिल्कुल उसी कहावत पर खरी उतरती है कि जंगल में मोर नाचा किस ने देखा।क्योंकि बाबा की गिंती ही मुख्यमंत्री के पास नही की जाती तो भला बाबा क्या शगूफा लोगों के बीच छोड़ते हैं इससे राज्य के मुख्यमंत्री का क्या लेना देना।
सुन्नी मुस्लिम (छोटा क़ब्रस्तान) क़ब्रस्तान ट्रस्ट,छोटा सोनापुर,ग्रांट रोड मुंबई का इतिहास कुछ इस प्रकार है।यह ट्रस्ट लगभग एक सदी से जनता की सेवा के लिए है।तकरीबन 106 साल पहले के मौजूद ट्रस्टियों ने 1910 में मुंबई हाईकोर्ट में याचिका (692/1910) दाखिल की थी सुनवाई के बाद मुंबई हाईकोर्ट ने 13 जनवरी 1912 में हाईकोर्ट ने अपने फैसले में इस ट्रस्ट को कैसे चलाया जाए और कैसे संभाला जाए यह निर्धारित किया।इसके बाद भारत के आज़ाद होने के बाद 1957 में 4 ट्रस्टियों के रिटाएर होने के बाद सैफ़ बद्रुद्दीन तय्यब अली राजबली,रफीक़ जकरिया,मुहम्मद अब्दुल रज़ाक ने इसे चैरिटी कमिश्नर में रजिस्टर करवाया।और यह जगह तब से चैरिटी कमिश्नर के अंतर्गत चल रही है।आजतक जो भी ट्रस्टी रहे इनमें अधिकतर अंजुमन इस्लाम के ओहदेदारान रहे।इसके बाद कई लोगों की मृत्यु हुई और कई नए लोगों की नियुक्ति भी हुई लेकिन अंत में अब्दुल ए खतखते (06/11/2001),डा.ए मजीद फटका (04/09/2007),डा.इसहाक़ जमखाना वाला (31/08/2008) इन तीनों ट्रस्टी की मौत के बाद इसके लिविंग ट्रस्टी अब्दुल कादर चोरवाडवाला अकेले सरवाविंग ट्रस्टी के रूप में ट्रस्ट के कार्य को अंजाम दे रहे थे।अगस्त / सितंबर 2014 में पीलिया की बीमारी की वजह बहुत कमज़ोरियों ने उन्हें घेर लिया जिसका फाएदा बाबा बंगाली ने उठाते हुए बिलाल मस्जिद और मैदान पर क़बज़ा कर लिया।
खुद ज़हीर काज़ी कहते हैं कि मुईन अशरफ़ नें 2 घंटे के बच्चों के कार्यक्रम के लिए उनसे मौखिक रूप से मस्जिद मांगी और उन्होंने बच्चों के हित को देख दे दिया।यही गलती अंजुमन इस्लाम की थी जिसकी सज़ा आज अंजुमन इस्लाम भुगत रहा है।2 घंटे की इस मेहरबानी की वजह से आज मस्जिद समेत पूरे मैदान और ट्रस्ट की ऑफिस पर बाबा बंगाली का गैर कानूनी तरीके से क़ब्ज़ा हो गया।इसकी जानकारी अंजुमन इस्लाम के चेयरमैन ज़हीर काज़ी को चोरवाडवाला ने पहुंचाई लेकिन ज़हीर काज़ी बाबा बंगाली के इस क़बज़े से हटाने में नाकाम रहे।जिसके बाद उन्हें इस बात का अंदाज़ा हुआ कि उनके ज़रिए बाबा बंगाली को दी गई इजाज़त बहुत बड़ी गलती थी।क्योंकि इसकी आड़ में बाबा बंगाली ने अपने उस मंसूबे को अंजाम दिया जिसकी साज़िश काफ़ी पहले से रची जा रही थी और उसे अंजाम देने के लिए ज़हीर काज़ी के कंधे का इस्तेमाल किया।
चूंकि 3 ट्रस्टी की मृत्यु के बाद वह जगहें खाली थीं और बाबा बंगाली ने कई बार कोशिश की थी की उस जगह पर उन्हें और उनके लोगों का चयन किया जाए इसके बाद चोरवाडवाला ने हाईकोर्ट की स्कीम के तहेत 3 लोगों की नियुक्ति की जिसको उन्हों डीड ऑफ़ ऑपवाइनमेंट को रजिस्टर किया और चैरिटी ऐक्ट के तहेत शैड्युल 3 में चेंज रिपोर्ट भी चैरिटी कमिश्नर में जमा की।
जैसे ही इसकी जानकारी मुईन अशरफ़ को मिली उन्होंने फिर तांडव करना शुरू किया उन्होंने वक्फ़ के एक सदस्य के ज़रिए सच्चाई और दस्तावजों पर पर्दा डाल कर झूटे दस्तावेज़ों की बुनियाद पर वक्फ़ बोर्ड में 16 मार्च 2015 को इसका रजिस्ट्रेशन करवाया लेकिन इस दौरान जिस तेज़ी के साथ वक्फ़ बोर्ड ने अपने सारे रुके हुए काम को छोड़कर इसे अंजाम दिया वह सोचने पर मजबूर करती है कि वक्फ़ बोर्ड के खुद कई अधिकारी इस गोरख धंधे मे शामिल हैं।
9 मार्च 2015 को इस जगह का पंचनामा किया गया और रजिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट ने 11 मार्च 2015 को इसे औरंगाबाद वक़्फ़ बोर्ड मुख्यालय में जमा किया जिसके बाद सीइओ सय्यद एजाज़ हुसैन ने 12 मार्च 2015 को रजिस्ट्रेशन का आदेश जारी कर दिया।19 मार्च 2015 को बाबा बंगाली की तरफ से वक्फ़ बोर्ड में जो हलफनामा और रिपोर्ट पेश की गई है उसमें कमेटी में बतौर अध्यक्ष मुईन अशरफ़ हैं जबकि उनके भाई सय्यद अली को सेक्रेटरी,मुहम्मद असलम सत्तार लाखा को बतौर खजांची,मुईन अशरफ़ के दूसरे भाई हुसैन अशरफ और सय्यद हसन को बतौर ट्रस्टी और मुईन अशरफ़ के बहनोई सैय्यद मनाज़िर हसन को भी बतौर ट्रस्टी जाहिर किया गया।उसके साथ साथ एडोकेट यूसुफ अबराहनी के बेटे शहजाद अबराहनी भी बतौर ट्रस्टी हैं और सब से चौंका देने वाली बात यह है कि इस लिस्ट में नथानी बिल्डर के बेटे मकसूद अब्दुलमजीद नथानी भी शामिल हैं।इसे देख कर अंदाज़ा लगाया जासकता है कि इसमें वक्फ़ बोर्ड के सीइओ खुद शामिल हैं और आलम यह रहा कि वह खुद उस जगह पर आधमके जिसका मामला उनके यहां चल रहा था।
लेकिन इन सब के चक्कर में जिस तरह से झूटे हलफ़नामों का सहारा लिया गया वह बहुत ही चौंका देने वाला है हलफनामे में बाबा बंगाली ने साफ़ तरीके से इस बात को माना है कि वह केवल बिलाल मस्जिद और खुले मैदान की सेवाऐं कर रहे हैं जबकि इस ट्रस्ट की हकीकत यह है कि इस ट्रस्ट के नाम से तकरीबन 17001 स्क्वैर यार्ड की जगह ट्रस्ट के नाम पर है।इस हलफ़नामे के साथ साथ उन्होंने अपने साथियों समेत अडॉक कमेटी और नई स्कीम की मंजूरी के लिए 27 मार्च 2015 को अर्जी दाखिल की जिसमें अडॉक कमेटी की मंजूरी 21 मार्च 2015 को वक्फ़ बोर्ड ने दे दी।
जब इस बात की ख़बर चोरवडवाला की बनाई हुई कमेटी को पहुंची तो उन्होंने 5 मई 2016 को वक्फ़ बोर्ड में अडॉक कमेटी के खिलाफ़ स्टे पेटीशन फाइल किया।वक्फ़ बोर्ड को तब तक इस बात एहसास हो चुका था कि उनके द्वारा अडॉक कमेटी की जो अर्ज़ी कुबूल की गई वह सच्चाई पर पर्दा डाल कर बाबा बंगाली ने अपने लाभ के लिए इस रास्ते का उपयोग किया है।जिसके बाद वक्फड बोर्ड ने मामले की सुनवाई बड़ी ही गंभीरता से की और मुईन अशरफ़ की अडॉक कमेटी पर 21 अप्रेल 2015 के अपने ही आदेश पर वक्फ़ बोर्ड ने रोक लगा दी।जिसके बाद मुईन मियां ऐंड कंपनी में खलबली मच गई। बाबा बंगाली इसके बाद वक्फ़ में अपनी पावर और पव्वे का भरपूर उपयोग करने की कोशिश की और लोगों को इस बात को लेकर गुमराह कर उनका इस्तेमाल भी किया।और इसी सच्चाई को सेंट्रल आब्ज़र्वर ने प्रकाशित किया जिसके बाद उनके खिलाफ़ धार्मिक भावना का झूटा मामला दर्ज करवा दिया गया।लेकिन जब पूरे महाराष्ट्र के पत्रकार बाबा बंगाली के विरोध में में उतरे तो इन्हें अंधेरा दिखाई देने लगा।इन्होंने कमिश्नर,मुख्यमंत्री,और एकनाथ खड़से से भी मिले लेकिन वह इनकी सच्चाई जान चुके थे इसलिए वह गुमराह नहीं हुए।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनविस ने बात करते हुए बताया था कि जब मुबंई भर के पत्रकारों ने इनकी सच्चाई उन्हें बताई तो उसके बाद कांग्रेस नेता अमीन पटेल ने उनसे कई बार मिलने की बात की लेकिन उन्होंने समय नहीं दिया लेकिन अमीन पटेल द्वारा यह कहा गया कि वहुत ही अर्जेंट काम है तो उन्होंने कुछ समय के लिए मिलने के लिए कहा।और अमीन पटेल ने बाबा बंगाली को उनके सामने ले जाकर बताया कि यह बहुत बड़े धर्मधुरंधर हैं और वक्फ़ बोर्ड के मामले को बताया लेकिन सच्चाई नहीं बताई।हालांकि मुख्यमंत्री उन्हें पहचानते भी नहीं थे और पत्रकारों की बात पर भरोसा किया इसलिए वहां भी इनकी दाल नहीं गली।लेकिन बिलाल मस्जिद और मैदान पर क़ब्ज़ा करने की आड़ में बाबा बंगाली द्वारा अपना बिलाल मस्जिद और मैदान पर खुद का क़ब्ज़ा दिखाना इस बात का प्रमाण है कि उन्हें वक्फ़ की इस जायदाद की फिकर नहीं बल्कि इस मैदान पर नज़र है जहां पर वह खुद वह टावर खड़ा करना चाहते हैं जिसके लिए नथानी बिल्डर का दामन थाम उन्हें ट्रस्टी बनाया।
अब अवाम इस बात का फैसला करे कि कौम के नाम की दुहाई देने वाले बाबा बंगाली के ज़रिए यह जगह गैर कानूनी तरीके से क़ब्ज़ा की गई है क्या वह असल हकदार हैं क्या अंजुमन इस्लाम का इस जगह से कोई लेना देना नहीं क्या 38 साल के मुईन अशरफ़ का वक्फ की जायदाद को लेकर तांडव करना सामज के लिए जाएज है क्या अंजुमन जैसी एजुकेश्नल इंस्टिट्युट उसे संभालने के लिए असमर्थ है जिसे हाईकोर्ट ने 1912 में नके सुपुर्द किया था।
यह वह दस्तावेज़ जो आप को हैरान करदेंगे कि बंगाली बाबा द्वारा किस तरह से लोगों के नज़दीक एक मैदान को क़ब्ज़ा करने के लिेए क्या क्या झुटे दावे और दस्तावेज़ तय्यार किए गए।

1912 में मुंबई हाई कोर्ट द्वारा बनाया गया नियम

यह कमेटी की लिस्ट जिसमें मुईन अशरफ़ के परिवार के कुल पांच लोग हैं

मुईन अशरफ़ के ज़रिए बनाई गई कमेटी पर वक्फ़ बोर्ड द्वारा स्टे ऑर्डर
Post View : 129