बॉम्बे लीक्स ,नई दिल्ली
नई दिल्ली : देश में होने वाले राष्ट्रपति पद का चुनाव आगामी 18 जुलाई को होना है।इसके लिये झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा आमने सामने होंगे।क्योंकि 24 जुलाई को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल पूरा होते ही देश को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर नया महामहिम मिलने वाला है।वही राष्ट्रपति पद की रेस के मैदान में दो चेहरे आमने सामने है।
भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने द्रौपदी मुर्मू को एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित कर दिया है।वही यूपीए ने अपने प्रत्याशी के तौर पर यशवंत सिन्हा का नाम फाइनल किया है।लेकिन जीत की तरफ बढ़ता सिर्फ एक ही नाम सामने आ रहा है।जानकारो के मुताबिक राष्ट्रपति चुनाव में इस वक्त रेस में द्रोपदी मुर्मू काफी आगे चल रही हैं।हालांकि मतों की गणित पर गौर किया जाए तो एनडीए के पास बहुमत के आसार नहीं है। वही महाराष्ट्र में गड़बड़ाए राजनीतिक गणित के चलते विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा की संभावनाएं लगातार कमजोर हो रही हैं।सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के उम्मीदवारों में समानता ये है कि दोनों ही झारखंड से ताल्लुक रखते हैं।वही दोनों ही नामों की पहले से कोई चर्चा भी नहीं थी।लेकिन 21 जुलाई को रायसीना हिल्स का रास्ता किसके लिए खुलेगा।इस अंक गणित को समझना काफी जरूरी हो गया है।एनडीए की समर्थन वाली प्रत्याशी आदिवासी समाज से आती हैं।मुर्मू अब तक भारत के सर्वोच्च पद पर कोई आदिवासी नहीं बैठ सका है।ऐसे में अगर एनडीए की जीत होती है, तो द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन जाएंगी।द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के मयूरगंज ज़िले की रहनी वाली हैं।
मुर्मू नगर निगम पार्षद से लेकर विधायक और झारखंड की राज्यपाल रही हैं।चुनावों में इसका सियासी फायदा भाजपा को मिलेगा ही साथ में 2024 के लोकसभा चुनावों में भी उसे इसका पूरा फायदा मिलेगा।भारतीय जनता पार्टी पिछले लंबे वक्त से खुद को आदिवासियों की सबसे भरोसेमंद पार्टी के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रही है।ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू को कैंडिडेट बनाकर आदिवासी समुदाय को साधने का सीधा सियासी दांव चला है। देश में अनुसूचित जनजाति की आबादी 8.9 फीसदी है।जो कई राज्यों में तो सियासी खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं।देश की 47 लोकसभा सीटें और 487 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। हालांकि, सियासी तौर पर आदिवासी समुदाय का असर इससे कहीं ज्यादा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इन 47 आरक्षित सीटों में से 31 सीटों पर जीत हासिल की थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में कई राज्यों में आदिवासी वोटों की नाराजगी के चलते नुकसान भी उठाना पड़ा था। खासकर झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात में है, जिनमें से झारखंड को छोड़कर बाकी राज्यों 2024 से पहले चुनाव होने हैं।
वही यूपीए के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा झारखंड के हज़ारीबाग से हैं।वे जनता पार्टी से लेकर जनता दल और भाजपा के सांसद भी रह चुके हैं। केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में यशवंत मंत्री भी रहे हैं। हालांकि पार्टी से नाराज़ होकर यशवंत सिन्हा ने भाजपा छोड़कर टीएमसी का दामन थाम लिया था। विपक्ष ने कई नामों पर दांव लगाने की कोशिश की लेकिन उन्हें कोई ठीक उम्मीदवार नहीं मिल सका था।एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, महात्मा गांधी के पोते गोपालकृष्ण गांधी और फारुख़ अब्दुल्ला के मना करने के बाद किसी ऐसे शख्स की तलाश थी जो किसी न किसी प्रशासनिक पद पर रह चुका हो। जिसे भाजपा के बारे में भीतर से जानकारी हो। ऐसे में जो नाम सबसे आगे निकलकर आया वो टीएमसी का यशवंत सिन्हा था। हालांकि यशवंत सिन्हा की जीत की उम्मीद कुछ ही प्रतिशत है। जबकि भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए द्रौपदी मुर्मू की अगुवाई में ज्यादा मज़बूत दिखाई दे रही है। क्योंकि राज्यों में विधायकों की संख्या और संसद में सांसदों की संख्या का गणित एनडीए की ओर ही झुकता दिख रहा है।
Post View : 86558