मुंबई : यूसुफ़ अबराहनी और नसीम सिद्दीकी का आधे घंटे वाला सियासी धरना (नौटंकी) के बाद दूसरे दिन मुंबई के उर्दू अखबारों में इस नौटंकी को बहुत ही बढ़ा चढ़ा कर ऐसा पेश किया गया जैसे इन्होंने बहुत बड़ा किला फतेह किया हो और मुसलमानों के लिए बहुत बड़ी जंग लड़ी हो जिससे सरकार इनके सामने झुक गई।
इस सियासी धरना (नौटंकी) को लेकर जिस प्रकार से मीडिया मीडिया पब्लिसिटी पब्लिसिटी करने की कोशिश की गई उससे एक बात साफ़ होगई की सियासी धरना (नौटंकी) स्थल पर मात्र चार लोगो का होना और पुलिस के जरिए खदेड़े जाने के बाद कि मुंबई के मुसलमान इस तरह के नौटंकीबाज़ों , ड्रामेबाज़ों और मीडिया मीडिया पब्लिसिटी पब्लिसिटी करने वालों का साथ न देकर भी अपना विरोध दर्ज करा सकती है।
चूंकि अबहराहनी बंगाली गैंग के हिस्सा हैं और बंगाली कि अब हिम्मत नहीं है कि आजाद मैदान दंगे के बाद दूसरा दंगा कर सके क्योंकि आज तक बंगाली उस एफआईआर से अपनी नाम निकालने के लिए बिन पानी के मच्छली के जैसे फ़ड़फड़ा रहा है इसी लिए बंगाली नहीं गया लेकिन मुसलमानों की खैरवख्वाही की डींगे मारने के लिए जो नाटक किया वह पूरी तरह से फ्लॉप रहा वह अलग बात है कि कुछ झंडूबाम उर्दू अखबार इनके घंटूल चूमने के चक्कर में पत्रकारिता को तवाएफ बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी उर्दू पत्रकारिता के पतन के पीछे की यही हरामखोरी है जिसकी वजह से मुसलमानों का सब से बड़ा नुकसान हुआ है।
अबराहनी की यह कोई नयई ड्रामेबाज़ी नहीं है दरअसल कुरबानी ही नहीं कोरोना ग्रसित एक मुस्लिम मृतक के शव को दफनाने के बजाए जला दिया गया अबराहनी ने जम कर फेसबुक पर बतोलेबाज़ी की लेकिन आज तक उस मामले को लेकर यह एफआईआर दर्ज कराने में नाकाम रहे।
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