अब्बास नकवी: सन्देह जब पैदा किया गया है।संदेह जब हक़ीक़त बन चुका है।सन्देह जब पारदर्शिता की दीमक को चट कर चुका हो।ऐसे में सवाल उठना तो वाजिब है।
सवाल सत्ता से होंगे।सवाल सत्ता में बैठे मठाधीशों से होंगे।सवाल 56 इंच का दंभ रचने वाले से होंगे।
जी हां बात पूर्णतया कड़वी लेकिन सच से अछूती कदापि नही होगी। एक अटूट विश्वाश की बुनियाद जब परत दर परत उधड़ने लगे। तो सन्देश किसी बड़ी अनहोनी की दस्तक होती है।अलबत्ता देशवासियो के अटूट विश्वास की उम्मीदों को लगातार कुचलने के दुस्साहस किया जाता रहा।परत दर परत भरोसे धज्जियां उड़ती रही।जो एक दस्तक थी एक संदेश था ।लेकिन नीतियों को छुपाने के लिए सत्ता का दुरूपयोग कर सभी सीमाएं लांधने का कुचक्र रचा जाता रहा।आज याद दिलाने का समय है। जब नमोकरण का उदय हुआ था। देश में जगी थी उम्मीदों कि एक नई किरण।नए राष्ट्र की-नए निर्माण की।क्योंकि देश ने नरेंद्र मोदी पर भरोसा किया था।70 साल कि सत्ता को उखाड़ फेंका था। जुमले पर नही बल्कि एक नए भारत के लिए नमोकरण पर विश्वाश किया गया था।
बतौर पीएम जब नरेंद्र मोदी ने पारदर्शिता की कसमें खाई थी। वो भी आरएसएस द्वारा उपजे किसी बाज़ार में नही, गुजरात के सीएम हाउस में नही बल्कि राष्ट्र की संसद के उस दहलीज़ पर पटका गया था पीएम ने अपना माथा।नतमस्तक होकर ,नमन करके।जोकि एक संदेश था प्रथम द्रष्टया कि सच में बदलेगा हमारा देश। संसद की पवित्र कुर्सी पर विराजमान थे ।वो पहली बार था जब पीएम के संबोधन पर मौजूद आरएसएस विचारक अध्यापक गगन चुम्भी तालियों से संसद को गुंजायमान कर रहे थे।उस दौर के हर एक संबोधन के शब्दों की याद दिलाना जरूरी है।संसद में वो पहला दिन और संबोधन का पहला पन्ना 2014 । पहला सराहनीय कदम ब्लेक मनी पर सख्ती के साथ एसआईटी की तर्ज पर स्पेशल टॉस्क फ़ोर्स का गठन। मानो ऐसा लगा कि हर रोज़ दिवाली आएगी।संसद के अंदर बैठे सफेद क्रिमनलो पर एक साल के अंदर पटल को स्वच्छ करने का पीएम का धमाके दार संबोधन अच्छा लगा था।देश को लगा पारदर्शी दृष्टिकोण उज्जवलता का प्रतीक है। देश के सबसे बड़े सेंट्रल हाल में मजदूर किसानो का झूठा ज़िक्र हो रहा था। लेकिन उनसे कोई जुड़ाव नही था।क्योंकि उनके पीछे चेहरा तो कारपोरेट जगत का था। क्रिमिनल लोगो के साथ खड़े होने का था। क्योंकि मकसद करप्शन को खत्म करना नही बल्कि करप्शन को आर्गेनाइज क्राइम में बदलने का था।
70 साल 70 साल का गला फाड़ फाड़कर देश को गुमराह किया गया।दो भाइयों के बीच नफरत का बीजांड ब्लेक वोट बैंक पर धड़ल्ले से काम हुआ।क्योंकि मकसद देश सेवा नही अपितु सत्ता की पवित्र कुर्सी हथियाकर संघी सेवा की पाठशाला में गोडसे की फौज तैयार करना था। ब्लेक मनी, ब्लेक मनी चिल्ला चिल्लाकर देश को मरने के लिए लाईन में खड़ा कर दिया। संस्कार यह नही सिखाते कि जवान बेटे की मौजूदगी में वृद्ध माँ 500 रुपये के लिए कड़ी धूप में लाईन में खड़ी कर दी जाय। यह महज एक प्रयोग था या संयोग वाह वाही खूब बटोरी लेकिन बेटे की नालायकी की श्रृंखला में देश इसे याद रखेगा। जनता भरोसा करके लाईन में डटी रही मरती रही। लेकिन नए नॉट छपने से पहले बक्से भर भर बीजेपी नेताओ की कारों से जब्त होते रहे।करोड़ो लोगो की नौकरियां गई , प्याज़ सेब का भाव फांदकर चार गुना हो गया, रसोई गैस का भाव डबल हो गया, तेल का भाव सबसे निचले स्तर पर होने के बावजूद देश में मनमाने भाव में बिकता रहा। नरेंद्र मोदी के राज में बेशर्मी तो देखो पूर्व सरकार में सिलेंडर ,प्याज़ ,आलू ,सब्ज़ी को लेकर सड़क पर छाती पीटने वालो का कंठा तक नही फूटा। आज देश में अंधभक्ति का डंका पिटने लगा है। अंधभक्तो ने खुलेतौर पर सत्ता के दुरुपयोग को राष्ट्रभक्ति समझा या उन्हें समझाया गया। देश के लिए सत्ता पर आवाज उठाने वालों पर नरेंद्र मोदी शासन में देशद्रोह का स्टैम्प लगाने का दौर चला। इन सबके बावजूद इस देश ने पुनः सत्ता सौंपी विश्वाश की एक और उम्मीद के साथ।
चाईना भारत सरहद विवाद कोई नया मामला नही है। 2014 तक देश से चीनी निवेश बिल्कुल समाप्त हो चुका था। गुजरात में सीएम की भूमिका के दौरान देश के पीएम पर ओछी टिप्पड़ी का दौर शुरू करने वाला कौन था। याद आया कुछ “देहाती औरत’ मौनी बाबा वगेरा वगेरा ,क्योंकि देश के सच्चे पढ़े लिखे ,विश्व अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह बोलते कम करते ज्यादा थे। उन्हें मालूम था कि चाईना को विश्राम देने का समय आ गया है।इस विश्राम को मुद्दा किसने बनाया था ! मित्रो इस में कोई निवेशक आने को तैयार नही है। मेरे साथ चीन जैसा देश निवेश का इच्छुक है। ज़बरदस्त भाषण हुआ करता था उस दौर में।कागज़ किसी से पढ़वा लेना।2014 के बाद चीनी निवेश का देश में ग्राफ क्या रहा! 2017 में सबसे ज्यादा 50 मिलियन डॉलर का निवेश। लेकिन दोषी नेहरू जी है कांग्रेस है।
वास्तव में कांग्रेस ही दोषी है इंदिरा ही दोषी है जो देश पर कुर्बान हो गए। जीवित होते तो अमेरिका आज आदेश न जारी करता बल्कि आदेश पर अमल करता। 70 सालों में किसी प्रधानमंत्री ने प्राइवेट केयर फंड बनाने का दुस्साहस नही उठाया। लूट हुई कांग्रेस राज में इस बात को नजरअंदाज नही किया जा सकता। किंतु अफसोस कांग्रेस राज में हुए घोटालों में आरोप किसी पर साबित नही हुए। 2014 में पीएम पर देश का भरोसा टिका था। लेकिन शासन के दौरान सत्ता खुलकर दुरुपयोग होता रहा। करप्शन का ग्राफ कई हाथ आगे छलांग लगा चुका है।दिनों सरकारों में फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि कोई मिलकर खाता था और कोई अकेला खाता है। माना कि सत्ता के इर्द गिर्द मंडराते कीधड बीजेपी के फ़ंडर है ऐसे में उन्हें खिलाना सत्ता की मजबूरी है ।तो फिर क्यों गला फाड़ा जाता है 70 -70 साल के गड़े मुर्दे उखाड़कर।
एक फ़ंडर बाबा टैक्स छुपाने के लिए पतंजलि का ट्रस्ट खड़ा कर अपने बिजनेस का व्यापार छेत्र को कई हजार गुना बढ़ा देता है। 50 हजार के व्यापार पर खड़ा अमित शाह का बेटा जय शाह अचानक से 2015 में 80 हजार करोड़ से ऊपर की छलांग लगा देता है। भारतीय कम्पनी से छीनकर अंबानी को राफेल का ठेका थमा दिया जाता है। अंबानी बंधु को राफेल का कखहरा आता था या अब आता है। सबका साथ सबका विकास का नारा गला फाड़कर चिल्लाने में अच्छा लगता है। ज़मीनी हक़ीक़त पर विकास जय शाह, पतंजलि बाबा , अडानी ,अंबानी पर कृपा करता आ रहा है। माना कि देश की सभी एजेंसियों पर नकेल कसी है तुमने।किंतु सुप्रीम कोर्ट को तो बख्स देते आम जनता का अटूट विश्वाश सिर्फ माननीय न्यायालय पर ही टिका था।
कोरोना काल मे जब देश को भूख मिटाने की जरूरत थी तो घरों में अचानक से कैद कर दिया। भूखा देश जब भोजन की तलाश में बाहर निकले तो अवैध लाठियों की बौछार करवाते रहे। देश को गुमराह करने के लिए कोरोना जैसी आपात स्थिती में भी नफरत का ज़हर बोने से बाज़ नही आये। मरकज़ मामला दबा कर रखा गया अपनी नाकामयाबियों को छुपाने के लिए बातोर कार्ड इस्तेमाल किया। CAA मुद्दे पर सड़क पर निकली गोडसे भाषा पर तालिया बजवाई और गांधी भाषा पर लाठियां।
कोरोना देश मे लाने वाला कोई और नही बल्कि खुलेरूप से पीएम है। जिसने खुद की अपनी पर्सनल दोस्ती को मजबूत करने और वाहवाही लूटने के इरादे से बतौर नमस्ते ट्रंप का मनोरंजन रखा अपितु आम जनता की कमाई को पानी की तरह बहाया गया।उस दौर में जरूरत थी कोरोना से निपटने के लिए ठोस रणनीति कि तब पीएम अपने संपूर्ण मंत्रिमंडल के साथ नमस्ते ट्रंप और एमपी में कमलनाथ सरकार गिराने की रणनीति में व्यस्त रहे। अचानक से हुए लाकडाउन में देश अपनी जगह थम गया। कही महफ़िल थी तो कही आरती तो कही नमाज़।लेकिन देश का पीएम अपनी नीतियोँ को छुपाता रहा। ताली बजवाकर ,कैंडल जलवाकर, समुदाय विशेष को छुपा हुआ बताकर।
आत्मनिर्भर शब्द का झुनझुना खेलने में कुछ दिन बहोत अच्छा लगा । खाली पेट इस देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए किसी अन्य प्रयोग की जरूरत पीएम को महसूस नही हुई। साहब देश को आपके इस सलाह की जरूरत नही है।इस देश में हर कोई आत्मनिर्भर है।आज से नही बल्कि जब संघ का उदय भी नही हुआ था। देश आत्मनिर्भर न होता तो मुगलों ,पुर्तगालियों अंग्रेज़ो से कभी हमारी विरासत आज़ाद न होती।इस देश का हर एक नागरिक आत्मनिर्भर है। इस देश का किसान किसान ,मज़दूर ,गरीब ,भिखारी, मोची ,पुजारी ,मौलवी , दूध वाला ,चाय वाला डाक्टर इंजीनियर, अधिकारी ,पोलिस, न्यायालय सभी तो आत्मनिर्भर है।परिवार का मुखिया यदि इमामदारी से मेहनत करके अपने परिवार को 2 जून की रोटी खिला रहा है तो क्या वो आत्मनिर्भर नही हुआ।साहब आत्मनिर्भरता की यही परिभाषा होती है। और यही सच्ची राष्ट्रभक्ति भी होती है।यदि संघ पाठशाला में आत्मनिर्भरता को अलग तौर पर परिभाषित किया गया है तो इसे देश कभी स्वीकार ही नही कर सकता।
आज देश में क्या हो रहा है।नीतियों को कमियों को छुपाने के लिए नफरत का बीजांड खड़ा कर दिया गया है।सवाल करना ,सवाल उठाना मानो देश के साथ गद्दारी कर दिया गया हो।ऐसा कभी 70 सालों में हुआ क्या संघ पाठशाला को इसे अपने पाठ्क्रम में शामिल करने का आप सुझाव दीजे।नेपाल चीन अमेरिका पाकिस्तान चारो तरफ से देश को दबाने की कोशिश हो रही है।नेपाल जैसा देश आंखे दिखा रहा है।चाईना ने घर के अंदर घुस कर कब्ज़ा कर बैठा है ,हमारे जवानों को शहीद कर गया ,नेपाल जैसे देश ने फायरिंग कर जान ले ली। अमेरिका आंखे दिखा रहा है आदेश पारित कर रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है जो पहले कभी नही हुआ।
चाईना के कुकर्म को लेकर शहीद हुए भाइयों के लिये निंदा का एक ट्यूट भी आपको डराता रहा। ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ है जब पूरे देश के साथ साथ विपक्ष भी आपके साथ खड़ा हुआ है।फिर वो चाहे कोरोना महामारी हो या चीन नेपाल को पाक को सबक सिखाने की जरूरत हो।अफसोस होता है कि कोरोना कॉल में ताली बजवाने और कैंडल जलवाने के लिए आपको समय मिल जाता था क्योंकि सत्ता कि नीतियों से ध्यान भटकाने का मकसद था। आज चाईना नेपाल ने आपकी सत्ता को नही बल्कि इस देश को ललकारा है। हमारे जवानो को हमारे ही घर में घुसकर शहीद कर दिया। नेपाल जैसा देश अंधा धुंध फायरिंग करके अपनी ताकत दिखाने लगा है।आपकी तरफ से निंदा का एक शब्द तक कंठे से नही फूटा। ये देश की एकता और अखंडता है कि बिना मन की बात सुने , बिना सत्ता के किसी आदेश से चाईना प्रोडक्ट का बायकॉट स्वयं किया जा रहा है।
चाईना का यदि इतना खौफ है तो कम से चाईना प्रोडक्ट के बायकॉट को लेकर एक ट्यूट ही करना होगा आपको।देश को लगना तो चाहिए कि आप देश के साथ खड़े हो। क्या पीएम का 56 इंच सिर्फ देश के अंदर विशेष समुदाय के लिए ही है या फिर देश के दुश्मनों के लिये कभी होगा। आज जब देश को 56 इंच की दहाड़ सुनने का वक़्त है तो पीएम “देहाती औरत’ मौनी बाबा (मनमोहन सिंह) बने बैठे है । पीएम को इस देश की रक्षा के लिए स्वाभिमान के लिए क्या बाहर नही निकलना चाहिए। देश में उपजा आरएसएस एक राष्ट्र सेवा के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। मोदी जी को इस बात का भी जवाब देना होगा कि संघ को आर्मी प्रशिक्षण किस काम के लिए दिया जाता है। संघ किसके लिए किसकी हिफाज़त के लिए है संघ !देश सेवा राष्ट्र सेवा ही करता है ना संघ तो क्या आज जहां लाठी डंडों का युद्ध छिड़ा है तो वहां इस देश के योद्धाओं की जरूरत नही है। क्या देश के पीएम संघ पर एक आदेश पारित नही कर सकते कि अब संघ को अपनी राष्ट्रसेवा और देशभक्ति का असल परिचय देने का समय आ चुका है या फिर संघ की असल सेवा सिर्फ देश के अंदर मौजूद विशेष समुदाय के खिलाफ करना ही देशभक्ति होती है। आर्मी प्रशिक्षण से लैस संघ क्या देश में मौजूद समुदाय विशेष भाइयो के खिलाफ ही आग बरसाने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। पीएम को इन सभी सवालों के जवाब देने होंगे क्योंकि देश मांग रहा है हर सवाल का जवाब।
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