बॉम्बे लीक्स ,नई दिल्ली
पूर्व कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने देश के वकीलों को लेकर उनके राजनीतिक होने पर अपनी बात रखी।उन्होंने मौजूदा वक्त पर अपनी राय रखते हुए कहा कि मौजूदा वक्त में मैं कॉलेजियम सिस्टम को प्राथमिकता देना चाहूंगा, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि सरकार का किसी भी तरह का दखल हो।कपिल ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि आज भाजपा सरकार ने हर तरह के संस्थाओं पर कब्जा कर लिया है और न्यायपालिका आखिरी ऐसी संस्था है जो अभी भी स्वतंत्र है।कपिल ने बार एंड बेंच को दिए साक्षात्कार में कॉलेजियम सिस्टम और एनजेएसी पर अपनी बात रखी। कहा कि मेरा मानना है कि दोनों सिस्टम में कुछ न कुछ खामियां हैं। लेकिन न्यायाधीशों की नियुक्ति में सरकार का कोई दखल हो, मैं इसके बिल्कुल खिलाफ हूं। यह देश के लिए आपदा जैसा होगा।सीनिया वकील कपिल सिब्बल ने वकीलों की चुप्पी पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि कुछ वकीलों का राजनीतिकरण हो गया है, मैं समझता हूं। लेकिन अभी भी ज्यादातर ऐसे वकील हैं जो किसी राजनीतिक खेमे में नहीं बंटे हैं। उन्हें न्याय के लिए आवाज उठानी चाहिए। सवाल किया कि आखिर भारत के वकील इतने चुप क्यों हैं।कहा कि कॉलेजियम सिस्टम जिस तरीके से काम करता है, मैं उसका भी विरोध करता हूं। हाल की कई घटनाएं इस बात का सबूत हैं कि कॉलेजियम कोई खास आत्मविश्वास पैदा नहीं करता है।न्यायपालिका के लिए यह मुश्किल है कि अगर सरकार जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को रोक देती है तो अदालत के पास बहुत कम जज बचेंगे और पूरे कामकाज पर असर पड़ेगा। ऐसे में स्थिति यह होता है कि वे भी कहने लगते हैं कि ‘ठीक है…हम कोई रास्ता निकाल लेंगे। शायद आप इसका मतलब समझ रहे होंगे।एडवोकेट कपिल के मुताबिक मौजूदा वक्त में मैं कॉलेजियम सिस्टम को प्राथमिकता देना चाहूंगा, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि सरकार का किसी भी तरह का दखल हो। उन्होंने (सरकार ने) हर तरह के संस्थाओं पर कब्जा कर लिया है और न्यायपालिका आखिरी ऐसी संस्था है जो अभी भी स्वतंत्र है।ऐसे में कॉलेजियम प्रणाली को “अधिक प्रतिनिधित्व” वाला बनाने की जरूरत है।हमें बार को इसमें शामिल करने और शायद सरकारी प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है।लेकिन प्रक्रिया सर्वसम्मत होनी चाहिए ताकि कोई भी रुक न सके।यदि आप निर्णय लेने की प्रक्रिया एक व्यक्ति को सौंपते हैं, चाहे वह सरकार हो या कोई तीन लोग हों, तो आम सहमति होनी चाहिए।सिस्टम से खामियों को हटाया जाएगा और न्यायाधीशों की नियुक्ति में अन्याय का स्तर बहुत कम होगा। कॉलेजियम प्रणाली के साथ अभी सबसे बड़ी समस्या यह है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश उच्चतम न्यायालय में जाने के लिए उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की ओर देखते हैं। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट में आना चाह रहे हैं. यह अच्छा नहीं है।दूसरी व्यवस्था में हर जज सुप्रीम कोर्ट जाने के लिए सरकार के पास आता था।वह भी भयानक है।हमें एक ऐसी प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है जो इन दोनों विकल्पों की तुलना में अधिक बेहतर हो।
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