अब्बास नकवी
मुंबई : अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम एक ऐसा नाम जिसे दुनिया दहशत और आतंक के नाम से जानती है. ये नाम खुद अपने आप में अनगिनत अपराधों का बहीखाता ब्यान करता है. जिसके रुतबे में दर्ज है, जुर्म और दहशत की अनगिनत पाठशालाये. गुनाहो की फेहरिश्त लम्बी इतनी कि कई मुल्को की पुलिस और इंटरपोल की रडार पर है डॉन. जिस शहर में उसने अपराध का कखहरा सीखा आज उसी मुंबई का वो सबसे बड़ा गुनहगार है.10 भाई बहनो से भरे कुनबे के बीच पलने वाले डॉन का बचपन बेहद साधारण से परिवार में गुज़रा. खेलकूद में रुझान के चलते वो अपने स्कूल में बास्केट बाल का चैम्पियन हुआ करता था. पिता का सपना था बेटे को एक बड़ा पुलिस आफिसर बनाना. फिर दाऊद के साथ ऐसा क्या हुआ होगा, जो खेल का चैम्पियन अपराध की ऐसी ऊँची सीढियाँ चढ़ा कि फिर कभी मुड़कर नहीं देखा. वो डॉन जिसके बारे में अपराध जगत में चर्चा है ,कि वो आपराधिक पृष्ठ भूमि के ऐसे मैप पर खड़ा है, जहाँ पहुंचने के लिए किस्मत की देवी का बेटा बनना पड़ता है।क्या दाऊद ने कभी ये नहीं सोचा होगा कि बास्केट बाल के ग्राउंड का खिलाड़ी कल अपराध के मैदान का शहंशाह होगा। दिसंबर 1955 से शुरू हुई दाऊद की कहानी आज डी कंपनी के नाम से खौफ के सिलसिले में बदस्तूर जारी है। चलिए आज हम आपको यही कहानी सुनाते है।
अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद एक बार फिर से सुर्ख़ियों में है.कारण मोस्ट वांटेड डॉन को लेकर पूर्व सुपर कॉप बी वी कुमार ने अपनी पुस्तक में उसे डरपोक करार दिया है.कुमार का दावा है कि दाऊद सामान्य सा दिखने वाला एक बेहद डरपोक सा शख्स है.क्युकी 80 के दशक में कानूनी शिकंजों में फसने के बाद दाऊद ने अपने गुनाहो का इक़बाले जुर्म किया था. हालांकि जानकार इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते कि गुनाहो का इक़रार इस बात का संकेत है कि दाऊद डरपोक है.
दाऊद और बंबई :
दाऊद की कुंडली का सर्च आपरेशन करने के लिए आपको चलना होगा पचास के दशक की तरफ. जब मुंबई को बंबई नाम से पुकारा जाता था, बम्बई से मुंबई बनने का सफ़र सुहाना जरुर-लेकिन खून से सना है. बम्बई की परवरिश में आज कई नाम देश-विदेश की शोहरत बने है तो,कई नामो पर आतंक और खौफ की बेमिसाल गाथा पुराने दिनों की यादें ताज़ा कर देती है. वो बंबई जिसपर कभी हाजी मस्तान और करीम लाला जैसे माफिया सरगनाओं का एकछत्र राज हुआ करता था. उस दौरान बंबई के डोंगरी में एक छोटी सी दूकान से इब्राहिम कासकर अपना परिवार चला रहा था. सब कुछ सामान्य तो था, लेकिन बदलते वक़्त की तस्वीरें बंबई में एक इतिहास बनने की तरफ बढ़ रही थी. मामूली सी दूकान चलाने वाले इब्राहिम कासकर की महाराष्ट्र पुलिस में तैनाती होना उसके परिवार के लिए दुगनी ख़ुशी लेकर तब आई ,जब साल 1955 में महाराष्ट्र के रत्नीगिरि में इब्राहिम कासकर के यहाँ दाऊद का जनम हुआ.
इस दौरान बदलते वक़्त के थपेड़ो के साथ आहिस्ता आहिस्ता बंबई गैंगवार की तरफ खिसक रही थी. शहर पर एक साथ राज करने वाले हाजी मस्तान, वर्धा राजन और करीम लाला की तिकड़ी के बीच किसी बड़ी अनहोनी का संकेत बहोत ख़ामोशी से तय होने लगा था. तिरभुजनुमा अपराध के इन स्वामियों की दुनिया को आबाद करने के लिए महारास्त्र के रत्नागिरी से एक साधारण परिवार का कुनबा दाऊद के साथ बंबई पहुंचता है. जानकार बताते है कि दाऊद का पिता इब्राहिम कासकर एक ईमानदार पुलिस कर्मी था. बंबई सीआईडी में तैनाती के बाद तस्कर किंग माफ़िया हाजी मस्तान से कनेक्शन के चलते उसे अपनी नौकरी गवानी पड़ी. हालांकि इब्राहिम ने समय रहते बंबई के क्राफर्ड मार्किट में एक इम्पोर्टेड दूकान खड़ी कर ली थी. भाई साबिर के साथ दाऊद का दाखिला भिंडी बाज़ार के अहमद सेलर स्कूल में जरूर हुआ था. लेकिन साथ में क्राफर्ड मर्केट की इम्पोर्टेड दूकान चलाने की ज़िम्मेदारी भी दोनों भाइयों के कंधो पर थी.उस दौर में बंबई का क्राफर्ड मार्किट तस्करी बाज़ार के नाम से विख्यात हुआ करता था. तस्करी के इस बाज़ार से दाउद के अपराध का श्री गणेश तब हुआ, जब पास की एक स्ट्रीट में रहने वाले आलमजेब, अमीरजादा और शाहजादा से उसकी दोस्ती हुई . तस्कर के बाज़ार में दाऊद के बने ये दोस्त कोई और नहीं बल्कि हाजी मस्तान के कांट्रेक्ट किलर थे. जिनकी शह पर दाऊद ने अपनी इम्पोर्टेड दूकान को एक आयाम देना शुरू कर दिया.
साल 1972 के आस पास मस्तान संपर्को के कारण न सिर्फ दाउद की दूकान चल निकली, बल्कि इलाके में दाउद का रुतबा भी छाने लगा. अब दोनों भाइयो ने हाजी के लिए काम भी करना शुरू कर दिया था. ये वो वक़्त था जब बंबई शहर में हाजी मस्तान के नेतृत्व में करीम लाला और उनके कांट्रैक्ट किलर्स गिरोह का आतंक फैला हुआ था.
अब तक दाउद आलमजेब, अमीरजादा, शाहजादा और बड़े भाई साबिर के साथ मिलकर खुद का अपना सिंडिकेट खड़ा कर चूका था. दाऊद के इस सिंडीकेट को शुरू में मिली सफलताओं ने और भी दुस्साहसी बना दिया. उधर करीमलाला के उम्रदराज हो जाने के बाद लाला की विरासत का जिम्मा भतीजा समद खान उठा चूका था. यही वो वक़्त था जब बंबई की धरती पर उपजे दोनो गिरोहों का नेतृत्व दुस्साहसी युवकों के हाथों में आ गया.जहाँ से इन दोनों गिरोहों के बीच आपसी टकराव और प्रतिद्वंद्विता का जो बीज पड़ा, वह आगे चलकर हिंसा का वटवृक्ष बन गया. जिसका आभास न तो उन दुस्साहसी युवकों को था और न तो बम्बई की पुलिस को.
साल 1975 में एक डील को लेकर दाऊद का अपने ही सिंडिकेट में बिखराव हो गया. जिसके बाद आलमजेब, अमीरजादा और शाहजादा दाऊद से अलग होकर पठान गिरोह में शामिल हो गए. अब तक दाऊद बंबई में कई खतरनाक लड़को की फौज खड़ी कर चूका था. समद खान के नेतृत्व वाले पठान गिरोह के पंजो से दाऊद ने शहर के कई ठेके हथिया लिए थे. जिसके बाद दोनों गिरोहों के बीच महज़ वर्चस्व की जंग गैंगवार की तरफ तेज़ी से बढ़ने लगी. बंबई दो खुनी गिरोहों के चलते गैंगवार की दूसरी दहलीज पर खड़ी हो चुकी थी . साल 1979 में दाउद की जिंदगी में भूचाल तब आया ,जब शहर के प्रभा देवी में बड़े भाई साबिर को पठान गैंग ने गोलियों से भुन कर रख दिया .बम्बई में हुई गैंगवार की दूसरी दस्तक ने शहर में अपराध का भविष्य यहीं सी तय कर दिया था. यक़ीन मानिये उस दिन दाऊद की भाईगिरी का भी द एन्ड होना तय था. अगर भाई की हत्या का बदला लिए दाऊद ने मौके की नजाकत को भांपते हुए अपने कारोबार की ज़मीन न बदली होती.
साबिर की हत्या को भुला पाना दाऊद के लिए मुमकिन नहीं था. साल 1983 में दाऊद ने भाई के हत्यारे अमीरजादा को बंबई की भरी अदालत में गोलियों से भुनवा दिया. अब बंबई में खूनी इंतकाम के चलते दो गिरोहों की दुश्मनी सडको पर गैंगवार में बदल चुकी थी .दाऊद के बदले का दूसरा मोहरा था करीम लाला का सबसे करीबी समद खान , समद पठान गैंग का सरगना था जिसे साल 1984 में दाउद ने मरवाकर भाई साबिर के इन्तेक़ाम की आग को ठंडा कर लिया . समद की मौत के बाद करीम लाला के अपराधिक साम्राज्य का किला ध्वस्त हो चूका था .क्युकी शहर में दाऊद के नेतृत्व में डी कंपनी का उदय हो चूका था. जिस कंपनी का सरगना कोई और नहीं बल्कि खुद दाऊद था.
इसके बाद दाऊद ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वो एक के बाद एक अपराध की सीढिया चढ़ता गया. आज दाऊद अपराध के एक ऐसे पायदान पर खड़ा है, जहाँ उसे अपनी अनगिनत पहचान को लेकर जीना पड़ता है. आज दाऊद पकिस्तान में आईएसआईएस की पनाह में अपने 21 नाम और तीन पतों पर जिंगदी जी रहा है. वो अब सबरी दाऊद, हाजी साहब ,मुच्छड़ भाई और बड़ा सेठ जैसे नामो से अपनी अलग पहचान बनाने की जुगत में है . देश विदेश में दाऊद कि कई सम्पत्तियाँ ज़ब्त हो चुकी है, बावजूद इसके कराची में उसके कई बेशुमार महलो का ज़िक्र आता है.
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