शाहिद अंसारी
भिवंडी:राष्ट्रीय उर्दू विकास परिषद (NCPUL) के अंतर्गत कोकन एजुकेशन सोसायटी की ओर इस बार भी 18 दिसंबर से उर्दू मेला भिवंडी के रईस हाई स्कूल मैदान में आयोजन हुआ लेकिन जिस प्रकार से मेले को लेकर ढोल पीटा गया था उसी तरह से उर्दू पुस्तक विक्रेताओं में मायूसी देखने को मिली।पूरे देश से आए हुए विक्रेता इस बात का रोना को रहे हैं कि सुबह से लेकर शाम तक यहां बच्चों और महिलाओं की भीड़ तो रहती हैं लेकिन साहित्यिक और दूसरी पुस्तकें के खरीदार नज़र नहीं आते।
मईशत.कॉम के मुताबिक दिल्ली से आए किताब विक्रेता कंपनी न्यु क्रेसेंट पब्लिशिंग कंपनी के मैनेजर अनवर रशीद कहते हैं कि इस बार राष्ट्रीय उर्दू विकास परिषद का उर्दू किताब मेला वास्तव में बच्चों का मेला है जिसमें निकट के रहने वाले बच्चे और बच्चियां बड़ी संख्या में शामिल हो रही हैं उनके साथ उनकी माताऐँ भी होती हैं जबकि जो बच्चे सीधे स्कूल से आरहे हैं उनके साथ उनके अध्यापक रहते हैं इसलिए जहां बच्चों की पुस्तकें उपलब्ध हैं वहां भीड़ खूब दिखाई देती है लेकिन जहां साहित्यिक किताबें हैं वहां कोई पूछने वाला नहीं है।
बीते कई दशकों से किताबों की खरीद-व-फरोख्त करने वाले अनवर रशीद कहते हैं कि राष्ट्रीय उर्दू विकास परिषद के अंतर्गत मुंबई मे उर्दू किताबी मेला को लेकर हम बहुत ही आशाऐं रखते हैं लेकिन इस बार पहला ऐसा मौका है जब मायूसी हमारे हाथ लग रही है।रंगारंग प्रोग्राम के लिए स्टेज के बिल्कुल सामने दुकान सजाए बैठे अब्दुरर्शीद कहते हैं कि चूंकि किताबों के खरीदार नहीं रहते इसलिए मैं सुबह से लेकर शाम तक केवल प्रोग्राम देखते रहता हूं यहां के कार्यक्रम का आरंभ इस्लामिक सिद्धांतों से होता है और अंत शिर्क से होता है।आलम यह है कि कार्यक्रम के दूसरे दिन डांस प्रोग्राम का आयोजन हुआ और आयोजकों ने सीटी बजाकर प्रोत्साहन किया यहां तक कि कहा जारहा था कि आप सीटी बजाऐं यह भेवंडी वासियो की शान है।उन्होंने कहा कि मैं शर्मिंदा हूं कि हमारे यहां इस तरह की सभ्यता का पालन किया जरहा है।
मध्य प्रदेश से उर्दू परिषद की ओर से आए मुईन उद्दीन सिद्दीकी कहते हैं कि मेरे पास साहित्यिक किताबों का भंडारा है और मेरे स्टाल पर आने वालों की संख्या काफी कम है।अलबलाग पब्लिकेशनर नई दिल्ली से आए उन्होंने कहा कि यह बच्चों का मेला है इसलिए बच्चों की किताबें बेचने वाले प्रसन्न हैं चूंकि पिछले वर्ष मुंबई के मेले मे अच्छा प्रतिक्रिया मिली इसलिए इसी उम्मीद से यहां आए लेकिन यहां तो गंभीर दर्शक ही नहीं दिखाई दे रहे बस बच्चों का हंगामा है स्कूल से भर भर के बच्चों को लाया जाता है और धार्मिक पुस्तकों के खरीदार कभी कभी दिखाई देते हैं।अलहदिया पब्लिकेशन कंपनी के मालिक अबुल आला सय्यद सुबहानी कहते हैं कि मेरे पास किताबें हैं लेकिन खरीदार नहीं हैं बस अल्लाह से दुआ करता हूं कि आने जाने का खर्च किसी तरह से निकल जाए वरना यह किताब मेला घाटे का सौदा मालूम होता है।
ध्यान रहे कि 25 दिसंबर 2016 तक चलने वाला 20 वां राष्ट्रीय किताब मेला से लोगों को बड़ी आशाऐं थी लेकिन आयोजकों ने उर्दू से गंभीरता रखने वाले पाठकों की जगह उर्दू स्कूलों के छात्र छात्राओं को सम्मिलित कर उसे सफल बनाने की कोशिश की और कई हथकंडे भी आज़माए लेकिन गंभीर पाठकों तक संदेश पहुंचाने मे पूरी तरह से असफल रहे।
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