शाहिद अंसारी
मुंबई:महाराष्ट्र ह्युमन राइट्स कमीशन में सेवार्थ को लेकर एक बहुत बड़ा घपला सामने आया है ।ह्मुमन राइट्स कमीशन में तकरीबन 40 सरकारी कर्मचारी ऐसे हैं जो इस सेवा से वंचित रहे जिसको लेकर वह सारे कर्मचारी खून के आंसू रो रहे हैं।इस बात को लेकर कमीशन और कमीशन के कर्मचारियों के बीच घमासान छिड़ी हुई है क्योंकि कर्मचारी में इस बात को लेकर ज़बरदस्त गुस्सा पाया जा रहा है उनका गुस्सा भी जायज़ है कि जब सरकार उन्हें यह सेवा दे रही है तो भला ह्युमन राइट्स कमीशन उन्हें इस सेवा से कैसे वंचित रख सकता है।यही कारण है कि इस घपले को ह्युमन राइट्स कमीशन में छुपाने के लिए कर्मचारियों को पे स्लिप तक नही दी जा रही वजह साफ़ है कि कर्मचारियों का जो हक मारा जा रहा है पे स्लिप देने के बाद वह जग ज़ाहिर हो जाएगा इसलिए उन्हें पे स्लिप ही नहीं दी जा रही है।
ह्युमन राइट्स कमीशन के कर्माचारियों का सवाल है कि वेतन से कटी हुई नेशनल पेंशन स्कीम की रकम कहां जाती है इसको लेकर ह्युमन राइट्स कमीशन के पास न तो कोई पुख्ता जानकारी है और न तो कमीशन उन्हें उसकी जानकारी दे रहा है बल्कि इस बारे में सवाल करने से वरिष्ठ अधिकारियों की घुड़की सुनने को मिलती है और तेवर सख्त हो जाते हैं।इसी लिए कर्मचारी यह आशंका जता रहे हैं कि अभी जो हो रहा है वह तो है ही आगे बड़े स्तर का भ्रष्टाचार हो सकता है।
सेवार्थ की नियमानुसार हर विभाग के सरकारी कर्मचरियों की तफ्सील उनके विभाग से भेजी जाती है जिसके बाद राज्य सरकार उन कर्मचारियों को लेकर तय करती है।ह्युमन राइट्स कमीशन में सेवार्थ न देने के पीछे की एक सब से बड़ी वजह यह मानी जाती है कि अगर सरकारी कर्मचारियों को सेवार्थ दिया गया तो आयोग में मौजूद बाहरी(डेली वेजेस) पर काम करने वाले कर्माचारियों के बारे में उन्हें पता चल जाएगा क्योंकि आयोग में ऐसे कई लोग हैं जो नियम और कानून को ताक़ पर रख कर ऐसे बाहरी (डेली वेजेस) लोगों की नियुक्ति कर उन्हें परमानेंट का लॉलीपॉप दे रहे हैं उनमें कई लोगों के सगे संबंधी भी हैं अब उनके और कमीशन के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच में क्या साठगांठ हुई इस बारे में तो वही बता सकते हैं।
सभी सरकारी कर्मचारी सेवार्थ की सेवा से जिस तरह से वंचित किए गए हैं उसके पीछे की एक और बड़ी वजह यह है कि विठ्ठल परुलेकर ( अवर सचिव ) जो कि पिछले 9 साल से मंत्रालय से डिपोटेशन पर काम कर रहे हैं और सेवार्थ के किसी भी कार्य को लेकर वह नहीं चाहते कि यह जानकारी ऊपर तक पहुंचे इनकी इस ढिटाई को लेकर कर्मचारियों में खासी नाराज़गी पाई जा रही है।इस वजह से इनकी लिखित रूप से शिकायत आयोग में मौजूद सरकारी कर्मचारियों ने राज्य सराकर से की है लेकिन अब तक इन पर किसी तरह की कार्रवाई नहीं हुई है।9 साल से इस विभाग में डिपोटेशन पर काम करने का मतलब साफ है कि मलाई खाने का इससे अच्छा मौका और इस से अच्छा जुगाड़ किसी और विभाग में नहीं है और इनके भी सर पर किसी न किसी वरिष्ठ सरकारी अधिकारी हाथ है जिसकी वजह से यह मनमानी और गैर कानूनी काम कर अधिकारियों का खून चूस रहे।
सेवार्थ अगर लागू किया गया तो यकीनन वह कर्मचारी जो गलत तरीके से नियुक्त किए गए हैं उनकी जानकारी सरकार को पहुंच जाएगी और इससे उनकी पोल खुल जाएगी जिसके बाद उनका वेतन रुक सकता है क्योंकि सेवार्थ को लेकर उनकी नियुक्त सही तरीके से हुई इस बात को पूरी तरह से जांचा जाएगा।और यह बात कमीशन में मौजूद वह अधिकारी बेहतर तरीके से जानते हैं कि जांच में पकड़े जाऐंगे क्योंकि इनकी इनकी गलत तरीके से नियुक्ति जो हुई है वह भंडा फूट जाएगा इसलिए इन लोगो को बचाने के लिए सरकारी कर्मचारियों को सेवार्थ से वंचित रखा गया।
ताज्जुह इस बात का कि ह्युमन राइट्स कमीशन जो कि राज्य भर में अपनी बेहतर सेवाओं के लिए सक्रीय है सैकड़ों किलोमीटर दूर घटी घटना पर अपनी पैनी नज़रों के ज़रिए कमीशन तुरंत सुमोटो केस भी ले लेता है लेकिन अपने ही कर्मचारी जो कि उनके ही कार्यालय में मौजूद हैं उनकी समस्याओं का समाधान निकालने में असमर्थ है और उनका हक दबाए बैठा है।अपने ही कर्मचारियों के सेवार्थ यानी उनका हक न देकर चिराग तले अंधेरा वाली कहावत को सच साबित कर रहे हैं।इस बारे में कमीशन के अधिकारी अमिताभ जोशी से बात चीत करने की कोशिश गई लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका।
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