शाहिद अंसारी
मुंबई:राज्य पुलिस डीजी प्रवीण दिक्षित सेवानिवृत्ति हो चुके हैं जबकि उनकी जगह ऐंटी करप्शन ब्युरो के डीजी सतीश माथुर को राज्य के पुलिस डीजी की कमान सौंपी गई है।माथुर से पहले इस जगह पर विजय कांबले की मौजूदगी रही और उनसे पहले प्रवीण दिक्षित के हाथ में ऐंटी करप्शन ब्युरो की बागडोर थी।दिक्षित ने एसीबी के अपने कार्यकाल में रिश्वत खोरों के खिलाफ़ जमकर कार्रवाई की और उन्होंने एक इतिहास रच दिया।भले ही यह सारे मामले कोर्ट में जा कर टांय टांय फिश हो गए।
लेकिन एक बात है ऐसी है जिसकी समान्ता हर के कार्यकाल में पाई गई वह है कि जिस तरह से भ्रष्टाचार में विलीन सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों पर एसीबी ने नकेल कसी है वैसे ही खुद एसीबी में भ्रष्टाटचारियों की लंबी फौज है जो एसीबी का चोला पहेन कर जमकर भ्रष्टाचार और वसूली करते हैं।चूंकि पद और पावर के मिनले के बाद एसीबी में मौजूद भ्रष्ट अधिकारियों ने यह नहीं सोच कर ही बैठ गए हैं कि उन पर किसी तरह कोई कार्रवाई कर ही नहीं सकता।क्योंकि वह खुद ऐंसे विभाग में हैं जहां उन पर कार्रवाई करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।हालांकि एसीबी में मौजूद अधिकारियों को इस बात की जानकारी होते हुए भी उनके खिलाफ़ कार्रवाई नहीं की जाती ताजा मामला है रायगढ़ में कुछ ही महीनों पहले तैनात डीवाई एसपी सुनील कलगुटकर का।
कलगुटकर को रायगढ़ में तैनात करने वाले तत्तकालीन एसीबी डीजी प्रवीण दिक्षित थे जिन्होंने उसे तैनात करने के साथ साथ बालगंगा सिंचाई घोटाले की जांच की जिम्मेदारी सौंप दी।इस ओहदे पर नियुक्त किए जाने के बाद कलगुटकर ने रायगढ़ इलाके मे जमकर वसूली की फर्ज़ी ट्रैप के नाम पर करोड़ों रूपए जमां किए।ताज्जुब इस बात का कि उसके खिलाफ़ दिक्षित के समय मे भी कई शिकायतें आईं लेकिन उस पर कभी कोई कार्रवाई नही की गई।शिकायतों का सिलसिला सिर्फ यहीं नही थमा बल्कि विजय कांबले के समय में भी शिकायतों का सिलसिला जारी रहा लेकिन खुद के इस भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ़ कार्रवाई करने में एसीबी के वरिष्ठ अधिकारी लाचार रहे बल्कि वह कार्रवाई करने में खौफ खाते रहे और उसे बचाने की कोशिश करते रहे।
लेकिन माथुर ने जैसे ही कार्यभार संभाला उस दौरान कलगुटकर के खिलाफ़ शिकयात करने वालों की तादाद में इजाफा हुआ और जांच बैठी फिर कलगुटकर के खिलाफ़ 29 मार्च 2016 को वसंत दिवरकर अपर पुलिस अधीक्षक की जांच रिपोर्ट के बाद कलगुटकर के वह चेहरा बेनकाब हुआ जो लंबे समय से ढका हुआ था और इस दौरान एसीबी में सतीश माथुर की एंट्री होचुकी थी।कलगुटकर ने अपने ओहदे का दुरपयोग करते हुए रायगढ़ पटबंधारे विभाग के इंजीनियर सुभाष झगड़े का अपहरण कर लाखों रूपए के सरकारी पैसे की वसूली की थी और यह जांच रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया था कि यह एसीबी के नाम पर अपनी दुकान चला रहा है इस जांच के पीछे भी एसीबी की मजबूरी थी।
सुभाष झगड़े ने अपनी शिकायत लंबे समय से की लेकिन किसी ने उस पर केई तवज्जह नहीं दी मजबूरन झगड़े ने महाराष्ट्र ह्युमन राइट्स कमीशन की दहलीज पर दस्तक दी और जब वहां से इस पूरे मामले की रिपोर्ट तलब की गई तब जाकर एसीबी ने अपने इस भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ़ जांच कर रिपोर्ट भेजी।लेकिन ताज्जुब इस बात का कि आज तक उसके खिलाफ़ एसीबी ने किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की।बालगंगा सिंचाई घोटाले की जांच करने वाले इस अधिकारी के जरिए फर्ज़ी ट्रैप और वसूली का मामला सामने आने के बाद भी एसीबी इस भ्रष्टाचारी से भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करवा रही है।कलगुटकर के ज़रिए वसूली की और फर्ज़ी ट्रैप की शिकायत प्रवीण दिक्षित से भी की गई थी लेकिन उन्होंने कलगुटकर के खिलाफ़ कार्रवाई तो दूर की बात जांच तक नहीं की और कलगुटकर भ्रष्टाचार का बाजार गरम कर अपने जेब भर रहा था इससे साफ ज़ाहिर होता है कि कलगुटकर ना सिर्फ एसीबी का बल्कि प्रवीण दिक्षित का भी समर्थन था।दिक्षित के ज़रिए कलगुटकर के खिलाफ कार्रवाई न करने की एक बड़ी वजह यह मानी जाती है कि उन्होंने खुद कलगुटकर को रायगढ़ ऐटी करप्शन ब्युरो में नियुक्त किया था और बालगंगा सिंचाई घोटाले की जांच भी इसी के जिम्मे सौंपी थी।जाहिर सी बात है कि खुद के ज़रिए नियुक्त किए जाने वाले अधिकारी के खिलाफ़ एसीबी डीजी कैसे कार्रवाई करेंगे।यही वजह है कि इस कमजोरी का कलगुटकर ने जमकर फाएदा उठाया।कलगुटकर ने हर विभाग से फर्जी ट्रैप कर एक-एक सरकारी अधिकारी और कर्मचारी को मोहरा बना कर बाकी सारे अधिकारियों से वसूली कर जमकर पैसे कमाए।
दिक्षित के बाद विजय कांबले उसी एसीबी के डीजी बनाए गए और प्रवीण दिक्षित राज्य पुलिस के डीजी बनाए गए लेकिन कलगुटकर के खिलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई।और विजय कांबले सेवानिवृत्ति हो गए।विजय कांबले के बाद उनकी जगह सतीश माथुर को नियुक्त किया गया।यह ऐसा समय था कि कलगुटकर के खिलाफ शिकायत करने वालों की तादाद में इजाफा हो रहा था लेकिन एसीबी अपने इस अधिकारी को बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही थी।हालांकि ह्युमन राइट्स कमीशन ने मामले मे सख्ती बरती तब जाकर एसीबी ने कलगुटक की रिपोर्ट भेजी जिसमें कलगुटकर के जरिए नवी मुंबई के पटबंधारे विभाग के इंजीनियर सुभाष झगड़े पर लगाए गए ट्रप की सच्चाई और कलगुटकर के जरिए किए गए गैर कानूनी काम,वसूली की जिक्र था।लेकिन इस रिपोर्ट के बाद भी कलगुटकर के खिलाफ़ किसी भी तरह की कार्रवाई करने में सतीश माथुर भी लाचार रहे।हालांकि माथुर से इस बारे मे जब भी जानकारी ली जाती वह जानकारी देने में लाचारी जाहिर करते थे कलगुटकर का उन पर खौफ़ इथना था कि फोन पर कलगुटकर का नाम सुन कर ही फोन रख देते थे।कलगुटकर का जनरल ट्रांस्फर रत्नागिरी हो गया लेकिन आज भी वह बालगंगा सिंचाई घोटाले की जांच कर रहा है वह एसीबी मुख्यालय मे बैठ कर।ऐसे मे सोचने वाली बात यह है कि आखिर कलगुटकर ऐसी कौन सी पावर और जुगाड़ का उपयोग कर रहा है जिसकी वजह से तीन डीजी इधर से उधर हो गए लेकिन उसके खिलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं हो सकी।
ऐसे में यह सवाल उठना लाज़्मी है कि आखिर बालगंगा सिंचाई की जांच के नाम पर कलगुटकर अपनी दुकानदारी कैसे चला रहा है वह भी एसीबी मुख्यालय में बैठ कर।ऐसा अधिकारी जिसके खिलाफ़ खुद ऐंटी करप्शन ब्युरो की जांच यह साबित हो गया है कि वह भ्रष्टाचार में विलीन है तो उसे इस अहम केस की जिम्मेदारी क्यों सौंपी गई है।इस बात से साफ जाहिर होता है कि 3 डीजी आए और चले गए लेकिन नहीं गया तो भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने वाला खुद एसीबी अधिकारी सुनील कलगुटकर।और अब यह देखना हो गा कि आखिर माथुर के जाने के बाद एसीबी की बाग डोर कौन संभालता है और कलगुटकर को लेकर वह क्या किरदार अदा करता है।
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