सेंट्रल ऑब्ज़र्वर
इसके पूर्व ‘जनमत’ खबरिया चैनल, जो बाद में लाइव इंडिया चैनल बना, का लाइसेंस एक अत्यंत ही आपत्तिजनक गलत खबर चलाने के लिए कुछ सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया गया था। चूंकि, तब खबर पूर्णत: गलत और भयादोहन वाली थी, सभी ने सरकार के कदम की सराहना की थी। आज एनडीटीवी का मामला बिल्कुल अलग है। जिस घटना की रिपोर्टिंग पर उसके खिलाफ कार्रवाई की गई है, अन्य चैनलों व समाचार पत्रों ने भी उसका प्रसारण, प्रकाशन किया था।
विभिन्न खबरिया चैनलों के बीच अपनी विश्वसनीयता के प्रति सतर्क रहने वाला एनडीटीवी चैनल इन दिनों स्वयं सुर्खियों में है। पिछले दिनों अनेक वरिष्ठ संपादकीय सहयोगियों एवं संस्थान के सीईओ की विदाई और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम के साक्षात्कार को लेकर जो खबरें सार्वजनिक हुईं, उन्हें अभिव्यक्ति या मीडिया की आजादी पर कुठाराघात के रूप में निरुपित किया गया। गलत या सही, देश में संदेश गया कि एनडीटीवी सत्ता के आक्रोश का शिकार हो रहा है। आज जब खबरिया चैनलों के बीच सत्ता के प्रति अति उदारता दिखाने की होड़ मची है, एनडीटीवी की कोशिश रही कि वह तथ्यपरक व विश्वसनीय खबरें प्रसारित करे। जाहिर है, इसे समय-समय पर केंद्रीय सत्ता ने अपने लिये असहजता के रूप में लिया। ‘दबाव’ बनाए गए, नतीजतन पूरे के पूरे एनडीटीवी संस्थान में घोर अव्यवस्था का आलम बन गया। अब जब, सरकार की ओर से एक दिन के लिए एनडीटीवी के प्रसारण पर रोक लगाने का फैसला लिया गया है, फुसफुसाहट शुरू हो गई है कि एनडीटीवी के बहाने ‘अन्य असहज चैनलों’ को चेतावनी दी गई है। चेतावनी कि या तो वे ‘सत्ता मार्ग का अनुसरण करें, या फिर दंडित होने के लिए तैयार रहें।’ अगर इसमें सच्चाई है तो इस कदम को घोर अलोकतांत्रिक कदम के रूप में ही चिह्नित किया जाएगा। सरकार के अंदर बैठे निर्णायक यह न भूलें कि ऐसे किसी कदम को तात्कालिक सफलता तो मिल सकती है, स्थायी नहीं। क्योंकि देश की जनता को एक पूर्णत: स्वतंत्र, आजाद, निर्भीक मीडिया चाहिए, जो उन्हें हर दिन, हर पल बगैर किसी भय के, बगैर किसी मिलावट के सच से, सिर्फ सच से रू-ब-रू कराता रहे।
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