शाहिद अंसारी
मुंबई:बीमार कर्मचारियों से जबरन काम करवाने के मामला अब तक पुलिस विभाग में देखा गया है। लेकिन यह बात झूटी है यह मात्र पुलिस विभाग तक ही सीमित नहीं बल्कि राज्य के कई विभाग के अधिकारी इस ज़ुल्म का शिकार हो चुके हैं।ऐसा ही मामला मुंबई महानगर पालिका के कर्मचारियों के बीच देखने को मिला।
Bombay Leaks के हाथ लगे एक पत्र जिसमें मुंबई महानगर पालिका यह बात लिखती है कि “उनके यहां ऐसे कर्मचारी काम करते हैं जो कि शुगर,ब्लड प्रेशर,और हार्ट अटैक जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं और वह इस विभाग में काम करते हैं”यह मामला है मुंबई महानगर पालिका में काम करने वाले विभाग जी नार्थ का।जहां रामशंकर सरोज नाम के आरटीआई एक्टिविस्ट ने विभाग से सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहेत कुछ जानकारियां मांगी।जानकारी देने के बजाए विभाग के वरिष्ठ अधिकारी ने जवाब दिया कि ” इस विभाग में आप जानकारी मांगने के लिए खुद न आया करें क्योंकि विभाग में मौजूद कर्मचारी इस तरह की बीमारी से जूझ रहे हैं और आपके आने से उनकी बीमारी बढ़ सकती है।”अपने पत्र में बीएमसी ने यह भी लिखा है कि ” हाईकोर्ट कोर्ट,सेशन कोर्ट और कार्यालय के काम काज की वजह से कौन मानसिक रूप से बीमार रहता है।”
बीएमसी के इस जवाब से रामशंकर सरोज खुद परेशान हैं कि आखिर जानकारी न देने के लिए बीएमसी अधिकारी इस तरह के जवाब कैसे दे सकते हैं ? इसलिए उन्होंने बीएमसी में फिर से शिकायत की है कि बीएमसी इस तरह के बीमार कर्मचारियों से कैसे काम करवा सकती है ? उनका एलाज क्यों नही करवा रही ? रामशंकर सरोज का आरोप है कि अगर इस तरह के गंभीर बीमारी से ग्रसित कर्मचारी बीएमसी में काम करेंगे तो वह भला जनता की सेवा कैसे कर पाऐंगे ? इसलिए बीएमसी को चाहिए कि वह उनका जल्द एलाज करवायें और जब वह पूरी तरह से स्वस्थ हो जाऐं तो उन्हें काम पर रखें।यदि वह इस तरह से गंभीर बीमारी के साथ काम करेंगे तो वह न सिर्फ जनता बल्कि खुद अपनी सेहत के साथ भी खिलवाड़ कर रहे हैं।
कानून के जानकार वरिष्ठ वकील वाई.पी.सिंह का कहना है कि ” अगर इस तरह की बीमारी से अधिकारी जूझ रहे हैं तो उनको सब से पहले मेडिकल बोर्ड के सामने पेश करना चाहिए, और उन्हें ऐसा काम नहीं देने चाहिए, जिससे वह सीधे सीधे जनता के संपर्क में आते हैं और अगर इस तरह के बहाने करते हैं तो वाकई यह शर्म की बात है।कोई कर्मचारी किसी को जानकारी देने के लिए इस तरह के बहाने करते हैं उसकी तो पहले जांच होनी चाहिए कि क्या वाकई वह इस तरह की बीमारी से ग्रसित है या नहीं ?अगर बीमारी का हवाला देकर किसी को कोई जानकारी नहीं देता तो फिर हर विभाग में मौजूद अधिकारी इस तरह के बहाने कर के लोगों को गुमराह करने की ही कोशिश करेंगे।कोई भी कार्यालय किसी आवेदक को ऐसे कहकर सूचना देने से इंकार या उस विभाग में किसी के प्रवेश पर पाबंदी नहीं लगा सकता। ” आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल गलगली ने कहा कि “अक्सर कई विभाग ऐसे होते हैं जो आरटीआई एक्टिविस्ट को जानकारी देने के बजाए उन्हें तब तक धक्के खिलाते रहते हैं जबतक वह अपील में न जाए और आलम यह होता है कि कभी कभी अपील में बैठने वाला अधिकारी भी चूंकि संबंधित विभाग का होता है इसलिए वह भी अपने विभाग के अधिकारियों की तरफदारी करते हुए जानाकारी देने से इंकार करते हैं या टाल मटोल करते हैं।यह करने में तकरीबन 3 महीने का समय चला जाता है ऐसे में जानकारी मांगने वाले का को जानकारी तो नहीं मिलती,लेकिन उसका समय ज़रूर खराब होता है।और इस तरह की बीमारी का मतलब यही होता है कि किसी को भी जानकारी न देने के लिए सोचा समझा बहाना करना। हालांकि हमने इस बारे में जी नार्थ के वार्ड ऑफीसर रमाकांत बिरादर से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने किसी तरह का कोई उत्तर नहीं दिया।
शिकायतकर्ता सरोज आटोरिक्शा चलाते हैं और सोशल एक्टिविटी में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं बीएमसी समेत कई ऐसे विभाग जहां जनता को बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है उन जगहों पर वह लोगों के लिए हमेशा खड़े रह कर उनकी मदद करते हैं।दरअसल आरटीआई के जवाब में उन्हें बीएमसी ने इस तरह का मनमानी और गैर कानूनी नोटिस और जानकारी देकर उनपर बीएमसी में दाखिल होने पर पाबंदी लगाने की नाकाम कोशिश कर रही है इसलिए बीएमसी के वरिष्ठ अधिकारियों ने बीमारी का हवाला देते हुए इस तरह उन्हें जो जनता को अधिकार दिए गए हैं उसे छीनने की कोशिश की जा रही है शिकायतकर्ता कहते हैं कि आरटीआई से जवाब मांगने पर उन्हें मानसिक रूप से पागल तक घोषित करने की कोशिश की गई लेकिन बीएमसी कामयाब नहीं हो सकी।उन्हों इस तरह के जवाब को लेकर महाराष्ट्र ह्युमन राइट्स कमीशन की दहलीज़ पर भी दस्तक दी है जिसको लेकर बीएमसी के वरिष्ठ अधिकारी जिन्होंने अपने अधिकारियों की बीमारी की बहाना कर जानकारी देने और उनके दाखिले पर पाबंदी लगाने की गैर कानूनी कोशिश की है उसपर उन पर शिकंजा कसा जा सकता है।कमो बेश मुंबई के बीएमसी के हर विभाग का यही हाल हैं जहां आरटीआई के द्वारा किसी भी तरह की जानकारी मांगी जाती है तो जानकारी देने के बजाए अधिकारी कन्नी काटते नज़र आते हैं और 30 दिनों तक आवेदक को चक्कर कटाने के बाद उसे जानकारी न देते हुए कुछ न कुछ बहाना कर टाल मटोल कर देते हैं।अपने जवाब में बीएमसी ने शिकायतरकर्ता को तथाकथित आरटीआई कार्यकर्ता बताया है लेकिन बीएमसी को यह बात जान लेना चाहिए कि आरटीआई का जो कानून बना है वह आम आदमी को लिए ही बना है इसके लिए किसी तरह की डिग्री हासिल करने की ज़रूरत नही हैं।
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