शाहिद अंसारी
मुंबई:10 दिसम्बर १९८३ को भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल हुए आईएनएस गोदावरी ने भारत समेत विश्व के कई हिस्सों में सफलतापूर्वक कई मिशन को अंजाम दिया है।तीन दशक से अधिक की सेवा के दौरान युद्धपोत ने कई कीर्तिमान स्थापित किए है।ऑपरेशन जुपिटर १९८८ (श्रीलंका), ऑपरेशन शील्ड एंव ऑपरेशन बोल्स्टर १९९४ ( सोमालिया ), गल्फ आदान की खाड़ी में गस्त (२००९ ) और नौसेना द्वारा वर्ष २०११ में आदान की खाड़ी में समुद्री लुटेरों के खिलाफ चलाया गया विशेष मुहीम शामिल है।
देश के पहले विध्वंशक युद्धपोत के निर्माण कार्य की शुरुआत ३ नवम्बर १९७८ में मुंबई के मंझगाव डॉक यार्ड में शुरू हुआ था।निर्माण कार्य एंव अत्याधुनिक हथियारों से लैश होने के पश्चात १९८३ में इसे सेना में शामिल किया गया था।
नौसेना के वरिष्ठ अधिकारीयों के अनुसार गोदावरी के सेवा मुक्त होने के पश्चात उसे भविष्य के बारे में अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया।गौरतलब है आईएनएस विक्रांत के सेवा मुक्त होने के बाद कई लोगों ने विक्रांत को म्यूजियम बनाने की मांग की थी लेकिन गोदावरी के सेवा मुक्त होने की तारीख 23 दिसम्बर घोषित होने के बाद भी उसके भविष्य के बारे में अभी तक कोई फैसला नहीं लिया गया है।आमतौर पर सेवा मुक्त होने के बाद युद्धपोत के सभी उपकरणों को निकाल उसे भंगार में बेच दिया जाता है इसके लिए सेना द्वारा बकायदा टेंडर निकाला जाता है।
आईएनएस गोदावरी भले ही अब नव सेना में नहीं रहेगी लेकिन गोदावरी में लगे सब से ताक़तवर मिसाइल बराक 1 अब आईएनएस विक्रम आदित्य की ताक़त बढ़ा रहा है और इसी वजह से आने वाले दिनों में भी गोदावरी को याद रखा जायेगा।
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